बिस्मार्क की औपनिवेशिक नीति

Otto von Bismarck (बिस्मार्क) ऑटो एडवर्ड लियोपोल्ड बिस्मार्क का जन्म 1815 ई. में ब्रेडनबगर् के एक कुलीन परिवार में हुआ था। बिस्मार्क की शिक्षा बर्लिन में हुई थी। 1862 ई. में वह पेरिस का राजदूत बनाकर भेजा गया। इन पदों पर रहकर वह अनेक लोगों के संपर्क में आया। उसे यूरोप की राजनीतिक स्थिति को भी समझने का अवसर मिला।

बिस्मार्क की औपनिवेशिक नीति 

बिस्मार्क एक महाद्वीपीय कूटनीतिज्ञ के रूप में प्रसिद्ध है। बिस्मार्क यूरोप के बाहर जर्मन साम्राज्य के विकास में अपनी शक्ति और समय नष्ट नहीं करना चाहता था। बिस्मार्क जर्मनी को यूरोप में सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए अब तक क्रियाशील रहा था। यही कारण था कि 1871 में फ्राँस को हराने के बाद होने वाली सन्धि में भी उसने उसके किसी भी उपनिवेश को अधिग्रहित करने की प्रयास नहीं की। बिस्मार्क का विचार था कि उपनिवेश स्थापना से अन्य देशों से युद्ध की सम्भावनाएं बढेंगी। उपनिवेशों की सुरक्षा के लिए एक बड़े जहाजी बेडे की आवश्यकता थी। इसमें भी अधिक चिन्ता उसे इंगलैंड से मुकाबला से दूर रहने की थी। इसलिए 1884 तक उसने कोई औपनिवैशिक योजनाएं नहीं बनाई।

समय के बदलाव और जर्मनी के आर्थिक विकास ने बिस्मार्क की नीति परिवर्तन को प्रोत्साहित किया। उपनिवेश स्थापना राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक था। जर्मन राष्ट्रवादी भी उपनिवेश की मांग कर रहे थे। जर्मनी की व्यावसायिक स्थिति अच्छी हो रही थी उसे कच्चे माल की आवश्यकता तथा तैयार माल की खपत के लिए बाजार की आवश्यकता थी जिसकी पूर्ति उपनिवेश ही कर सकते थे। बढ़ती जनसंख्या और धर्म प्रचारकों के लिये भी उपनिवेश की मांग जोर पकड़ रही थी। जर्मन प्रवासियों के निरन्तर दबाव और यूरोप में 1884 तक कूटनीतिक स्तर पर अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने के पश्चात उसने उपनिवेश स्थापना की ओर ध्यान देना प्रारंभ कर दिया।

जर्मनी की उपनिवेशों के स्थापना का शुरुआत पूर्वी अफ्रीका से हुआ था। डाॅ. पीटर्स जंजीबार ने वहां के सुल्तान से 60 हजार वर्ग मील भूमि चंदा के रूप में प्राप्त करने में सफल हुआ। उसके दो वर्ष बाद सरकारी आज्ञापत्र द्वारा जर्मन पूर्वी अफ्रीका कम्पनी की स्थापना की गई। 1890 में अरबों के विद्रोह के कारण इस कंपनी को बंद कर दिया गया। लेकिन जंजीबार को अपने उपनिवेश के रूप में बनाने में जर्मनी सफल हुआ। 

1883 में दक्षिण अफ्रीका में ओरेन्ज नदी के उत्तर में लुडरिट्स नामक जर्मन व्यापारी ने 200 वर्ग मील क्षेत्र पर अधिकार स्थापित कर लिया और बिस्मार्क ने अगले वर्ष उसको सरकारी संरक्षण प्रदान कर दिया। इसी वर्ष जर्मनी ने कैमेरून (पश्चिमी अफ्रीका) पर अपना अधिकार स्थापित किया जिसे इंगलैंड ने भी स्वीकार कर लिया। 1884 में जब जर्मनी ने न्यूगिनी के उत्तरी क्षेत्र पर अधिकार किया तब इंगलैंड ने शेष न्यूगिनी को अपने अधिकार में लिया। अगले वर्ष फ्रांस तथा इंगलैंड के साथ होने वाले एक समझौते के द्वारा जर्मनी को मार्शल द्वीप तथा मेलेनेशिया (प्रशान्त महासागर में) प्राप्त हुए।

बिस्मार्क की औपनिवेशिक नीति हलांकि विस्तारवादी नहीं कहीं जा सकती क्योंकि वह एक ओर इंगलैंड से किसी भी स्थान पर झगड़ा नहीं करना चाहता था और दूसरी ओर फ्रांस को अपनी हार का बदला लेने का अवसर नहीं देना चाहता था। उसका उद्देश्य केवल जर्मनी की आर्थिक समृद्धि थी। लेकिन आने वाले समय में जर्मनी औपनिवेशिक समस्याओं में फँसता गया और उसके उपनिवेश स्वयं के लिए भार बन गए।

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