मुद्रा का मूल्य क्या है?

mudra ka mulya kya hai मुद्रा का मूल्य के संबंध में अर्थशास्त्रियों द्वारा दो विचार प्रस्तुत किए गए हैं। पहले मत मे एण्डरसन एवं उनके समर्थकों द्वारा पुष्ट किया गया है, मुद्रा के निरपेक्ष मूल्य पर जोर किया गया है। इन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मुद्रा के दो स्वरूप है- धातु मुद्रा एवं पत्र मुद्रा। सोने, चाँदी और बहुमूल्य धातु से बनी मुद्रा का मूल्य अधिक होगा जबकि पत्र मुद्रा या कागज मुद्रा का मूल्य न के बराबर ही होगा। वही दूसरी ओर कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि मुद्रा का मूल्य उसकी क्रयशक्ति के द्वारा निर्धारित होगा। मुद्रा की इकाई के बदले में कितनी वस्तुओं और सेवाओं का क्रय किया जा सकता है, यही मुद्रा की क्रयशक्ति है और यही मुद्रा का मूल्य है।

प्रो. राॅर्बटसन ने अपने पुस्तक में मुद्रा के मूल्य के सम्बन्ध में लिखा है, ‘‘मुद्रा की अपनी कोई उपयोगिता नहीं होती है। इसकी उपयोगिता इसके विनिमय मूल्य से उत्पन्न होती है। 

सामान्य रूप से सबसे प्रचलित अर्थ मुद्रा के मूल्य की मुद्रा की क्रयशक्ति ही है अर्थात् मुद्रा की एक इकाई के बदले में कितनी वस्तुएँ तथा सेवाएँ प्राप्त की जा सकती है। 

मुद्रा का मूल्य के निर्धारक तत्व

मुद्रा के मूल्य के दो निर्धारक होते हैं -
  1. मुद्रा की मांग 
  2. मुद्रा की पूर्ति 

1. मुद्रा की मांग 

विनिमय के माध्यम के लिए मुद्रा की मांग की जाती है। यह एक स्थिर विचारधारा है। प्रावैगिक विचारधारा के अनुसार मूल्य संचय के लिये मुद्रा की मांग की जाती है। स्थैतिक दशाओं के अन्तर्गत ‘‘मुद्रा की लेने देन मांग पर राष्ट्रीय आय के आकार का दो आयो के मध्य अवधि का: भुगतान प्रणाली का और साख के प्रयोग की सीमा जैसे तत्वो का प्रभाव पड़ता है।” उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय आय का आकार जितना बड़ा होगा, मुद्रा की सौदा मांग उतनी हो अधिक होगी। प्रावैगिक दशाओं में मुद्रा की माँग से आशय उस नकद राशि से है जो व्यक्ति अपने पास रखना चाहता है। 

लार्ड कीन्स के अनुसार, मुद्रा की मांग से अभिप्राय तरलता अथवा नकदी की मांग से है। इस दृष्टिकोण को नकद शेष दृष्टिकोण भी कहा जाता है जिसे आगे विस्तृत रूप से सिद्धान्त के रूप में समझाया भी गया है। 

2. मुद्रा की पूर्ति 

मुद्रा की पूर्ति से आशय राष्ट्रीय मुद्रा के उस कुल स्टाक से है जिस पर देश की जनता का स्वामित्व होता है । इस दृष्टि से केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों, केंद्रीय सरकार अथवा राज्य सरकारों की नगद राशियों को मुद्रा पूर्ति का अंग नहीं माना जाता है क्योंकि यह देश में वास्तविक प्रचलन में नहीं होती। 

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