मुद्रास्फीति का अर्थ, परिभाषा, प्रकार

मुद्रास्फीति में कीमत स्तर लगातार बढ़ता है। जब कीमत स्तर में वृद्धि होती है, तो धन की क्रय शक्ति में गिरावट आती है। कीमत स्तर में बदलाव को मापने के लिए हम कीमत सूचकांक की मदद लेते हैं। एक सूचकांक अलग-अलग, लेकिन संबंधित, दो या अधिक समय अवधि में चर के समूह की तुलना करने के लिए एक उपकरण है। कीमत सूचकांक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं, थोक कीमत सूचकांक और उपभोक्ता कीमत सूचकांक। अपस्फीति का अर्थ है कीमत स्तर में लगातार गिरावट। अति -मुद्रास्फीति बहुत अधिक मुद्रास्फीति की स्थिति है, जो युद्ध के बाद या किसी अर्थव्यवस्था में गंभीर आर्थिक संकट के कारण उत्पन्न हो सकती है। 

अति मुद्रास्फीति के दौरान मुद्रास्फीति की अधिकांश लागतों की गंभीरता बढ़ जाती है। आमतौर पर अति मुद्रास्फीति के साथ अर्थव्यवस्था में वास्तविक आय की वृद्धि में ठहराव की स्थिति को रुद्ध स्फीति कहा जाता है। 

मूलभूत मुद्रास्फीति एक मुद्रास्फीति माप है जो कुछ वस्तुओं जैसे खाद्य पदार्थों, ऊर्जा उत्पाद आदि के मामले में कीमत उच्चावचन को शामिल नहीं करता है 

मुद्रास्फीति का अर्थ

मुद्रास्फीति शब्दकोश के अनुसार अंग्रेजी भाषा के Inflation शब्द का अर्थ है फैलाव, या वृद्धि जब फुटबाल के ब्लैडर में हवा भरी जाती है तो वह ‘इन्फ्लैट’ होता जाता है। अर्थात फैल जाता है। इस प्रकार कीमत स्तर के सम्बन्ध में ‘इन्फ्लेशन’ का अर्थ है कीमतों में होने वाली निरन्तर वृद्धि। कीमत स्तर में होने वाली निरन्तर वृद्धि को मुद्रास्फीति कहा जाता है। 

मुद्रास्फीति की परिभाषा

विभिन्न विद्वानों ने मुद्रास्फीति को परिभाषित किया है -

प्रो पीटरसन के अनुसार, ‘‘विस्तृत अर्थों में मुद्रास्फीति से अभिप्राय सामान्य कीमत स्तर में होने वाली स्थायी आरै निरंतर वृद्धि से है।’’ सैम्युअलसन के शब्दों में ‘‘मुद्रास्फीति से हमारा अभिप्राय उस समय से है जिसमें कीमतें बढ़ रही होती हैं।’’ शेपीरों के अनुसार, ‘‘मुद्रास्फीति सामान्य कीमत स्तर में होने वाली निरन्तर और अत्यधिक वृद्धि है।’’

पीगू के शब्दों में, ‘‘मुद्रास्फीति तब उत्पन्न होती है जबकि मौद्रिक आय उत्पादन के अनुपात मे अधिक बढ़ रही हो।’’केमर के अनुसार, ‘‘मुद्रास्फीति, मुद्रा या जमा मुद्रा की अधिकता को कहते हैं अर्थात व्यापार की तुलना में मुद्रा की अधिकता।’’

केन्ज के अनुसार - अर्ध-मुद्रास्फीति पूर्ण रोजगार से पूर्व मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने से रोजगार तथा उत्पादन की मात्रा में भी कुछ वृद्धि होती है इसके फलस्वरूप कीमतों में वृद्धि मुद्रा की मात्रा में हुई वृद्धि के अनुपात में नहीं होती। पूर्ण रोजगार स्तर से पूर्व कीमत स्तर पर होने वाली वृद्धि को केन्ज ने अर्ध-मुद्रास्फीति कहा है। यह मुद्रास्फीति मुख्यत: उत्पादन के साधनों की गतिशीलता में अड़चल के कारण होती है। इसे अड़चन स्फीति भी कहा जाता है।

मुद्रा स्फीति के प्रकार

1. सामान्य मूल्य मुद्रा स्फीति 

इसे स्वतन्त्र या मंद मुद्रास्फीति भी कहते है। बिना सरकारी नियन्त्रण के होने वाली यह मुद्रास्फीति लोगों की आय के बढ़ने से अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा के उस अनुपात में न बढ़ने पर मूल्यों में होने वाली स्वाभाविक वृद्धि है। यह मन्द मुद्रास्फीति भी है क्योंकि उत्पादन में धीरे-धीरे वृद्धि होती रहती है जिससे अर्थव्यवस्था में कोई हानिकारिक प्रभाव नहीं पड़ता।

2. प्रतिबन्धित मुद्रास्फीति

मूल्यों के वृद्धि में नियंत्रण लगाने से मूल्य स्तर का बढ़ना रूक जाता है जैसे राशनिग या प्रत्यक्ष मूल्य नियन्त्रण रीति से सरकार मूल्यों में होने वाली वृद्धि को रोक देती है। परन्तु भविष्य में यह रोकी गयी मुद्रास्फीति फिर से उत्पन्न होती है। मूल्य में वृद्धि को उत्पन्न होने वाली शक्तियां अर्थव्यवस्था में मौजूद रहती है जिससे कि समय पड़ने पर यह मुद्रास्फीति का रूप धारण कर लेती है।

3. अनियन्त्रित मुद्रास्फीति 

जब मुद्रा का चलन इतना बढ़ जाता है तो प्रायः मुद्रा के मूल्य में भारी गिरावट आ जाती है। सरकार की सारी नीतियां भी कारगर सिद्ध नहीं हो पाती है। शीघ्रता से बढ़ते हुये इस मूल्य वृद्धि का अर्थव्यवस्था पर भीषण प्रभाव पड़ता है। प्रायः सभी बैंक जमाएँ समाप्त हो जाती है और लोग मुद्रा के बदले वस्तुओं ओर सेवाओं को खरीदने लगते है जिससे कि पूर्ति कम होने लगती है और मुद्रास्फीति को पोषित करती है। 1920-23 में जर्मनी में इतनी अत्यधिक मुद्रास्फीति हो गयी कि उसका नियन्त्रण असम्भव हो गया।

4. पूर्ण तथा अर्द्धस्फीति

यह वर्गीकरण केन्स द्वारा किया गया। पूर्ण रोजगार की अवस्था से पहले मुद्रा की मात्रा में वृद्धि रोजगार में बढ़ोत्तरी के साथ उत्पादन लागतो मे वृद्धि करेगा जिससे कीमते भी बढ़ जायेगी। पूर्ण रोजगार की अवस्था से पहले इस स्थिति को केन्स ने अर्द्ध स्फीति का नाम दिया है।

5. कारण के आधार पर मुद्रास्फीति

1. वस्तु स्फीति - कई कारणों से मुद्रास्फीति उत्पन्न हो सकती है। यदि वस्तुओं की पूर्ति में कमी के कारण कीमत स्तर में वृद्धि होती है तो उस स्थिति को वस्तु स्फीति कहते है। 

2. चलन स्फीति - यदि मुद्रा का मात्रा में अत्यधिक वृद्धि के कारण कीमत बढ़ती है तो उसे चलन स्फीति करते है । यदि साख की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि के कारण स्फीति होती है तो उसे साख स्फीति कहा जाता है।

3. वित्तीय स्फीति - करो में वृद्धि अथवा अन्य वित्तीय कारणों से यदि कीमतों में वृद्धि होती है और स्फीति उत्पन्न होती है तो उसे वित्तीय स्फीति कहते है। 

कारणों  के आधार पर स्फीति को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

1. मांग जनित मुद्रास्फीति- जब लोगों की आय बढ़ने के कारण उनके द्वारा वस्तु एवं सेवाओं की मांग अत्यधिक बढ़ जाती है और उसकी पूर्ति उत्पादन में वृद्धि न होने के कारण नही हो पाती है तो इससे कीमतों में अत्यधिक वृद्धि उत्पन्न हो जाती है। मांग में वृद्धि होने के कारण जनित मुद्रास्फीति को मांग जनित मुद्रास्फीति कहा गया है।

2. लागत जनित मुद्रास्फीति- यह सिद्धान्त मुद्रास्फीति का एक नवीन सिद्धान्त है। 1960 के पश्चात् अमेरिका तथा दूसरे विकसित देशों में पाई जाने वाली विशेष परिस्थितियों के कारण इसका जन्म हुआ। एक तरफ कीमतों में वृद्धि और उत्पादन एवं मांग में कमी, उत्पादन लागतों में होने वाली वृद्धि के फलस्वरूप लागत जनित मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है।

6. क्रियाओं के आधार पर भी मुद्रास्फीति 

क्रियाओं के आधार पर भी मुद्रास्फीति के विभिन्न रूप हो सकते है।

1. घाटा प्रेरित स्फीति - जब सरकार अपनी आय से अधिक व्यय करती है तो उस घाटे की पूर्ति अधिक मुद्रा चलन में जारी करती है तो इस प्रक्रिया तो हीनार्थ प्रबन्धन कहते है। ऐसा करने से मुद्रास्फीति को स्थिति उत्पन्न होती है।

2. वेतन प्रेरित स्फीति - जब मजदूरी में वृद्धि का अनुपात श्रम की उत्पादकता में वृद्धि से अधिक है तो उत्पादन लागत एवं कीमत स्तर में वृद्धि होती है।

3. लाभ प्रेरित स्फीति - उत्पादन लागत में कमी होने पर कीमतों को नीचे गिरने में जब कृत्रिम उपायों द्वारा रोका जाता है तो उत्पादकों के लाभ में वृद्धि होता है। कीमते बढ़ती तो नहीं पर नीचे आ जाती है। इस प्रकार की स्थिति को केन्स ने लाभ प्रेरित स्फीति कहा है।

7. गति के अनुसार मुद्रास्फीति 

गति के आधार पर मुद्रास्फीति को चार भागों में बांटा गया है- 

1. रेंगती स्फीति - जब कीमत स्तर में धीरे-धीरे वृद्धि होती है, तो उेस रेंगती स्फीति कहा जाता है। यह अर्थव्यवस्था के लिये विकासोन्मुख होती है। केन्स का यही विचार है कि ऐसी स्फीति अर्थव्यवस्था के लिये उपयुक्त है। कीमत स्तर मे दो-तीन प्रतिशत तक की वृद्धि को रेंगती हुयी स्फीति कहा गया है। 

2. चलती स्फीति- कीमतों में वृद्धि की गति बढ़ जाने से रेंगती स्फीति चलतीं स्फीति में परिवर्तित हो जाती है। किसी दशक में कीमतों में होने वाली वृद्धि 30-40 प्रतिशत होने पर चलती स्फीति उत्पन्न होती है। 

3. दौड़ती स्फीति - कीमतों में अत्यधिक वृद्धि जिसके फलस्वरूप थोडे ही समय में कीमत पर्याप्त मात्रा में बढ़ जाती है तो उसे दौड़ते स्फीति कहा जाता है। ऐसे में स्थिर आय वालों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। किसी दशक में स्फीति की दर 80 से 100 प्रतिशत होने पर दौड़ती स्फीति उत्पन्न होती है और यह बचतों को हतोत्साहित करती है। इसको थामने के शीघ्र उपाय करना आवश्यक हो जाता है। 

4. सरपट दौड़ती स्फीति - कुछ अर्थशास्त्री इसे मुद्रास्फीति का भयंकर राक्षस कहते है। प्रथम युद्ध के पश्चात् जर्मनी में इसी प्रकार की स्फीति उत्पन्न हुयी। मुद्रा का मूल्य इतना अधिक गिर गया कि मुद्रा पर से लोगो का विश्वास खत्म हो गया। कीमते एक समय एक साल में दस लाख गुना अधिक हो गयी थी। ऐसे में सारी अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। और निर्धन वर्ग के लिये अति हानिकारक हो जाती है।

8. समय के अनुसार मुद्रास्फीति 

समय के अनुसार मुद्रास्फीति को राजनीतिक स्थिति के आधार पर भी वर्गाकृत किया जा सकता है। 

1. युद्धकालीन मुद्रा स्फीति - ऐसे काल में मुद्रा की मात्रा में वृद्धि उत्पादन के ढाँचे में परिवर्तन तथा विदेशी व्यापार की समस्याओं के कारण मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है। 

2. युद्ध पश्चात स्फीति - ऐसी स्थिति में दो कारणों से मुद्रा स्फीति की प्रवृत्ति जारी रह सकती है। युद्ध के पश्चात नष्ट हुयी मशीनों जहाजों, पुलों, रेलवे लाइनों आदिका फिर से निर्माण करने के लिये सरकार द्वारा अधिक व्यय किया जाता है। सरकारी ऋणो की वापसी के फलस्वरूप भी लोगों के पास मुद्रा का मात्रा बढ़ जाती है। परन्तु उत्पादन में धीमी वृद्धि के कारण वस्तुओं एवं सेवाओं में अधिक वृद्धि नहीं हो पाती है। अतः युद्ध के बाद भी कीमतों में वृद्धि जारी रहती है। 

3. षांतिकालीन मुद्रा स्फीति - आर्थिक विकास के कार्याक्रमों को पूरा करने और आर्थिक नियोजन हेतु सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनानी पड़ती है जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है। फलस्वरूप कीमतों में जो वृद्धि होती है, उसे शान्तिकालीन मुद्रा स्फीति कहते है।

9. आकार के अनुसार मुद्रास्फीति 

आकार के अनुसार मुद्रास्फीति को दो भागों में विभाजित किया जाता है।

1. व्यापक मुद्रास्फीति - जब सभी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो, तो उसे व्यापक स्फीति कहते है।

2. खण्डीय मुद्रास्फीति- जब कुछ विशेष वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो तो उसे खण्डीय स्फीति कहते है। यह प्रायः अस्थायी प्रकार की होती है।

10. निष्क्रिय मुद्रास्फीति 

जब मुद्रस्फीति एक ही दर पर लगातार बढ़ती जाती है तो उसे निष्क्रिय मुद्रास्फीति कहते है। सैम्यूलसन तथा नारडस ने इसकी तुलना एक ऐसे कुत्ते से की है जो एक स्थान पर सोता है, शान्ति भंग की स्थिति में दूसरी जगह चला जाता है और फिर सो जाता है यही दशा निष्क्रिय मुद्रास्फीति की है।

मुद्रा स्फीति के कारण

मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारणों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- (1) मांग पक्ष (2) पूर्ति पक्ष

1.. मांग पक्ष 

इन कारणों से मुद्रास्फीति उत्पन्न होती है।
  1. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि 
  2. घाटे की वित्त व्यवस्था 
  3. सस्ती मौद्रिक नीति 
  4. व्यय योग्य आय में वृद्धि 
  5. काले धन में वृद्धि 
  6. निवेश में वृद्धि 
  7. करों में कमी 
  8. सार्वजनिक ऋण में कमी 
  9. जनसंख्या में वृद्धि 
  10. निर्यात में वृद्धि

2. पूर्ति पक्ष 

पूर्ति पक्ष से अभिप्राय वस्तुओं या उत्पादन की वह उपलब्ध मात्रा है जिस पर लोग अपनी आय व्यय कर सकते है। मुद्रा स्फीति की अवस्था में पूर्ति में उस अनुपात में वृद्धि नही होती जिस अनुपात में मांग में वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में असन्तुलन आ जाता है। इस असन्तुलन के कारण ही कीमतों में वृद्धि होने लगती है। पूर्ति पक्ष पर मुख्य रूप से निम्नलिखित तत्वों का प्रभाव पड़ता है-
  1. उत्पादन में कमी 
  2. कृत्रिम अभाव
  3. सरकार की कर नीति
  4. खाद्यान्न में कमी 
  5. औद्योगिक झगड़े 
  6. तकनीकी परिवर्तन 
  7. कच्चे माल की कमी 
  8. प्राकृतिक विपतितयां
  9. उत्पादन का ढांचा
  10. युद्ध 
  11. अन्तर्राष्ट्रीय कारण 
  12. सरकार की नई औद्योगिक नीति 
  13. उत्पादन में गतिरोध 

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