नेपोलियन के पतन के कारणों की विवेचना

नेपोलियन की गणना विश्व के महान विजेताओं में की जाती है। नेपोलियन अपने युग का यूरोप का समुद्रगुप्त था। नेपोलियन ने फ्रांस में अराजकता का दौर खत्म कर उसे व्यवस्था और स्थिरता प्रदान की। उसके समय फ्रांस ने वे सीमाएं प्राप्त की जिसे लुई चैदहवें जैसे सम्राटों ने भी प्राप्त नहीं की थी। फ्रांस में तो आज भी नेपोलियन के नाम पर रोमांच बरकरार है, शेष यूरोप भी उसका कम एहसानमंद नहीं है जहां-जहां नेपोलियन विजयी हुआ जाने अनजाने में वहाँ राष्ट्रीय भावनाओं का विकास जरूर हुआ। सांमतवाद, दासप्रथा आदि व्यवस्थाएं प्रायः समाप्त हो गई। अतः कहा जा सकता है कि जो गौरव या यश नेपोलियन ने प्राप्त किया उसका राज द्रढ़ निश्चय उच्च कोटि की संगठन शक्ति और कठिन परिश्रम था।

नेपोलियन के पतन के कारण 

नेपोलियन ने स्वयं इस बात को स्वीकार किया कि उसके पतन में तीन शब्द विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। पोप, रूस, स्पेन, पोप का राज्य तथा उसे बंदी बना लेने से यूरोप का कैथोलिक संसार नेपोलियन से नाराज हो गया। स्पेन का युद्ध उसके लिए नासूर के सामन सिद्ध हुआ। तथा मास्को के अभियान ने तो उसके पतन का रास्ता साफ कर दिया।। उसके पतन के निम्नलिखित कारण थे।

1. स्पेन का युद्ध

पुर्तगाल की विजय के उपरांत नेपोलियन में अपनी सेनाएं मित्र राष्ट्र स्पेन पर उतार दी। स्पेन के अयोग्य बूर्बोवंशीय शासक चाल्र्स चतुर्थ तथा उसके पुत्र से सिंहासन परित्याग करवा दिया और अपने भाई जोसेफ को स्पेन का राजा बना दिया। नेपोलियन द्वारा अपने भाई को स्पेन का शासक बनाये जाने पर स्पेन में राष्ट्रीय तूफान सा आ गया। क्रान्तिकारी समितियों का गठन शुरू हो गया। स्वयं सेवकों की एक बड़ी फौज तैयार हो गई। 1808 से 1814 तक यह युद्ध चला। इसे प्रायद्वीपीय युद्ध कहते है। जोसेफ स्पेन को छोड़कर भाग गया। फ्रांसीसी सेना को आत्मसर्मपण करना पड़ा। नेपोलियन ने स्पेन में प्रवेश कर वोगार्स के युद्ध में स्पेनियों को करारी हार दी। 1809 में नेपोलियन वापिस चला गया। 1813 में स्पेनी राष्ट्रवादियों ने अंग्रेजी सेना की मदद से फ्रांसीसी सेना को परास्त कर दिया। 1814 तक स्पेन फ्रांसीसी आक्रमण से पूरी तरह मुक्त हो गया। 

2. स्थायी योजना का अभाव - 

नेपोलियन ने यूरोप के पुर्ननिर्माण की जितनी योजनाएं बनायी वे अस्थायी थी। फिशर के अनुसार - ‘‘नेपोलियन ने अपनी योजनाओं को बच्चों के घरोंदो की भांति बनाया और मिटा दिया। आगे फिशर ने नेपोलियन की असफलता के तीन सूत्रों का जिक्र किया है- मास्को, लिपजिंग, तथा फाउन्टेनब्लू इसके साथ ही वाटरलू की लड़ाई इसका उपसंहर है। 

3. मास्को अभियान - 

टिलसिट की संधि में रूस ने महाद्वीपीय पद्धति को सफल बनाने में नेपोलियन की मदद का वादा किया था। रूसियों की बढ़ती हुई कठिनाईयों के कारण वे ब्रिट्रिश माल का बहिष्कार नहीं कर सके। नेपोलियन को रूस की मित्रता अब समक्ष नहीं आ रही थी। पूरी तैयारी के साथ नेपोलियन ने 1812 में 6 लाख फौज के साथ रूस पर आक्रमण कर दिया। रूसी पीछे हटते गये। 7 सितम्बर 1812 को सोरोडिनों के भीषण संग्राम में लगभग 5 लाख सैनिकों ने भाग लिया। दोनों पक्षों के करीब 70 हजार सैनिक इस युद्ध में मारे गये। इस युद्ध में नेपोलियन सफल रहा किन्तु यह विजय निर्णायक नहीं थी।

14 सितम्बर 1812 को नेपोलियन मास्को पहुंचा उस समय शहर उजाड़ और अधजली हालत में था। पांच सप्ताह तक नेपोलियन के सैनिक लगभग भूखे रहे सैनिक बीमारी आदि से मरने लगे। आखिर नेपोलियन को मास्को से वापिस लौटना पड़ा। निराशा, भूखी, बीमारी से पीडि़त सेना जब वापिस लौट रही थी तो रूसियों ने छिप-छिप कर हमला किए और वहीं वर्फ में लाखों सैनिकों की कब्रें बन गई। नेपोलियन की यह मास्को की वापसी एक दुखद यात्रा थी। पर यह बात ध्यान रखना आवश्यक है कि इतने सब विनाश और असफलता के बाद भी नेपोलियन निराश नहीं हुआ।

4. क्रान्ति की भावना का अंतर - 

नेपोलियन को विश्वास था कि मित्र राष्ट्रों के फ्रांस पर आक्रमण को फ्रांसवासी एक जुट होकर निष्फल कर देगें। परन्तु यह उसका भ्रम मात्र था। फ्रांस की जनता फ्रांस की सुरक्षा हेतु लड़ सकती थी। नेपोलियन की महत्वाकांक्षा के लिए वह अपने प्राण निछावर करने को तैयार नहीं थी। उसका कारण यह था कि जनता निरन्तर युद्धों से तंग आ चुकी थी और शान्ति चाहती थी। क्रान्ति की पुरानी भावना का अन्त हो चुका था। नेपोलियन की अनिवार्य सैनिक सेवा से बचने के लिए नवयुवकों ने अपने दांत तोड़ डाले और हाथ के अंगूठे काटे। यह सिद्ध करता है कि नेपोलियन की निरंकुशता से लोग परेशान थे। 

5. नेपोलियन की हठधर्मिता- 

नेपोलियन के हठ एवं दुराग्रह ने उसके पतन में योगदान दिया। पराजित होने पर भी मित्र राष्ट्र उसको फ्रांस की प्राकृतिक सीमाओं में रखने को तैयार थे। परन्तु उसने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 

6. उग्र सैनिकवादी- 

नेपोलियन एक उग्र सैनिकवादी था। उसका कहना था कि ष्ळवक उवतबीमे ूपजी जीम इपहहमेज इमजंजजपंदष् परन्तु वह यह नहीं समझ सका कि मात्र सेनाओं के बल पर राज्य अधिक दिन तक नहीं टिक सकते थे। 

7. सेना की आंतरिक दुर्बलता- 

नेपोलियन की सेनाओं में आंतरिक दुर्बलता थी। उसकी सेना में विभिन्न राष्ट्रीयताओं के लोग थे। जिनमें राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था। और जिनके लिए जय-पराजय का कोई महत्व नहीं था। विदेशी खर्चो पर पलने वाली सेनाएं क्रमशः अलोकप्रिय होती चली गई। 

8. असीमित महत्वाकांक्षा- 

नेपोलियन एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। क्रान्ति पुत्र होने का दावा करने वाला यह व्यक्ति अपनी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति राष्ट्रीयता की भावनाओं का तिरस्कार करने में संकोच नहीं करता था। यूरोप का अधिपति बनने के लिए उसने अनेक गलत कार्य किये।

9. शक्ति पर आधारित शासन - 

नेपोलियन का विशाल साम्राज्य शक्ति पर आधारित था। परन्तु भीतर से वह खोखला था हवा के एक साधारण झोंके में वह गिर सकता था। वह स्वयं इस बात को भंली-भांति जानता था। उसने कहा था ‘‘वंशानुगत राज्य 20 वार पराजित होने पर भी अपना सिंहासन पुनः प्राप्त कर सकते है। परन्तु मेरे लिए यह असंभव नहीं है। क्योंकि मेरा उत्कर्ष शक्ति के आधार पर हुआ है। 

10. महाद्वीपीय नीति- 

इंग्लैण्ड को पराजित करने के लिए उसने महाद्वीपीय योजना बनाई। उसने इंग्लैण्ड को जीतने के लिए वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया। बाजारों तथा आयात-निर्यात आदि पर प्रतिबंध से यूरोप की जनता क्रोधित हो गई। दूसरी उसे अनगिनत संघर्षो से उलझना पड़ा इस नीति के कारण ही 1812 से 1814 ई. के वर्षो में नेपोलियन की राजनीति और राजनय का ढांचा गिरकर बालू की दीवार की भांति ढह गया। 

11. पोप से संघर्ष -

नेपोलियन ने कैथोलिक विश्व के गुरू पोप को व्यापार बहिष्कार की नीति का पालन न करने का दोषी मानते हुए उसे बन्दी बना लिया। यह उसकी भयंकर भूल थी। क्योंकि इससे समस्त कैथोलिक जगत उसका विरोधी हो गया। 

12. राष्ट्रीयता की लहर - 

नेपोलियन के साम्राज्यवाद में राष्ट्रीयता की भावनाएँ फैल रही थी। स्पेन, आस्ट्रिया, प्रथ्षा में यह भावना एक नये जीवन का संचार कर रही थी एवं शान्ति प्रदान कर रही थी और नेपालियन राष्ट्रीयता की इन विद्युतीय तरंगों का सामना करने में असमर्थ सिद्ध हुआ।

13. प्रशा से युद्ध - 

टिलसिट की संधि के अपमान के बाद प्रषा में भी उत्साह की भावना पैदा हो गई। राष्ट्रीय जागृति अभियान प्रारंभ हो गया। नेपोलियन की मास्को यात्रा की असफलता से प्रेरित होकर प्रषा और जर्मनी के कुछ राज्यों में मार्च 1813 में फ्रांस के विरूद्ध युद्ध शुरू कर दिया। मई 1813 में दो युद्धों में प्रषा और रूस की सम्मिलित सेनाओं को नेपोलियन ने हरा दिया। राष्ट्रों का युद्ध (1813-1814) अगस्त 1813 तक नेपोलियन के विरूद्ध चैथा यूरोपीय गुट तैयार हो गया इस गुट में इंग्लैण्ड, आस्ट्रिया, रूस, प्रषा और स्वीडन सम्मिलित थे। सब देशों की सेना मिलकर 5 लाख से अधिक थी। 16 अक्टूबर से 18 अक्टूबर तक लीपजिंग में नेपोलियन के विरूद्ध गुट राष्ट्रों का भीषण युद्ध हुआ। यूरोप के इतिहास में इसे राष्ट्रों का युद्ध (बेटिल आफ नेशनस्) कहा जाता है। प्रषा की सेना का नेतृत्व इसमें मार्शल ब्लूचर ने किया। नेपोलियन इस युद्ध में पराजित हो गया। युद्ध में सभी पक्षों के एक लाख तीस हजार सैनिक मारे गये। नेपोलियन राइन नदी के पीछे हट गया।

मित्र राष्ट्रों ने तीन ओर से फ्रांस पर आक्रमण किया। किन्तु उन्हें मुंह की खानी पड़ी। नेपोलियन ने रूस और आस्ट्रिया की सेना को हरा दिया। मार्च 1814 में गुट राष्ट्रों की दो लाख सेना का पेरिस पर अधिकार हो गया। 11 अप्रैल 1815 की फाउन्टेनब्लू की संधि द्वारा नेपोलियन ने फ्रांस का सिंहासन छोड़ दिया। उसे एल्वा नामक छोटे से द्वीप का राजा बनाकर निर्वासित कर दिया।

14. वाटरलू - 

फ्रांस में पुनः बूर्बोवंश की स्थापना की गई। लुई अठारहवां फ्रांस का राजा बना। यूरोप की पुर्नव्यवस्था के लिए यूरोपीय राष्ट्रों के प्रतिनिधि आस्ट्रिया की राजधानी वियना में एकत्रित हुए। वियेना में मित्र राष्ट्रों के मतभेदों की सूचना पाकर मार्च 1815 में नेपोलियन एल्वा से भाग आया बिना खून खराबे के उसने फ्रांस के सिंहासन पर पुनः अधिकार कर लिया। लुई 18 वां भाग गया। मित्र राष्ट्र अपने मतभेदों को भूलकर नेपोलियन के विरूद्ध युद्ध के लिए एकत्रित हो गये। नेपोलियन ने भी करीब दो लाख सैनिक इकट्ठे कर लिए मित्र राष्ट्रों की दो सेनाओं में एक का कमाण्डर वेलिंगटन का डयूक तथा दूसरी का ब्लूचर था। 18 जून 1815 को वेल्जियम के वाटरलू नामक स्थान पर वेलिंगटन की सेना के साथ सात घण्टे तक नेपोलियन का भीषण युद्ध हुआ। नेपोलियन की कोशिश थी कि किसी तरह ब्लूचर की सेना वाटरलू न पहुंच सके। लेकिन ब्लूचर के 4 बजे वाटरलू में पहुँचते ही युद्ध का पांसा पलट गया। आखिर वाटरलू में नेपोलियन हार गया। और कैद कर लिया गया। दूसरी बार नेपोलियन ने सौ दिन तक राज्य किया। अंटलांटिक, महासागर के एक निर्जन द्वीप सेंट हेलेना में निर्वासित कर दिया गया। 6 वर्ष बाद 5 मई 1821 को सैंट हेलेना में ही नेपोलियन की मृत्यु हो गई।

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