ओटोमन साम्राज्य का उदय और पतन कैसे हुआ?

आटोमन साम्राज्य के संस्थापक आटोमन या उसमानी तुर्क थे जो एशिया माइनर से आए थे। यह लड़ाकू खानाबदोश जाति पश्चिम की ओर बढ़ती गई और जिस किसी ने इनका विरोध किया, उसे इसने रौंद डाला। इसने अफगानिस्तान, इराक, ईरान तथा एशिया माइनर के अनेक प्रदेशों में अपनी सत्ता स्थापित की। इन तुर्कों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर उसका प्रचार-प्रसार बड़े जोरों से किया। 

बगदाद, अफगानिस्तान की पश्चिमी सीमा से रोम सागर के तटवर्ती प्रदेश, एशिया खुर्द पर तुर्कों का अधिकार स्थापित हो गया। 1355 ई तुर्की सेना, डार्डेनल्स दर्रे को पारकर 1360 ई. में एड्रियानोपोल पर अधिकार कर लिया। इसके बाद एक-एक करके गैलीपोली, मेसोडोनिया, सोफिया, सैलोनिका पर इनका कब्जा हो गया। आटोमन साम्राज्य से सारे यूरोप की सुरक्षा खतरे में पड़ गई। चिंतित पोप ने यूरोपीय शक्तियों को धर्म युद्ध के लिए संगठित किया परन्तु इनकी संगठित शक्ति भी आटोमन तुर्कों के सामने नहीं टिक सकी और निकोपालिस के युद्ध में तुर्कों ने इन्हें बुरी तरह परास्त किया। इस जीत के परिणाम स्वरूप सारे बालकन प्रायद्वीप और दक्षिण पूर्व यूरोप में आटोमन शक्ति का विस्तार हो गया और बाइजेन्टियन साम्राज्य उससे पूरी तरह घिर गया। 1453 ई. में कान्स्टेंटिनोपोल (कुस्तुन तुनिया) पर तुर्कों का अधिकार आधुनिक विश्व के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। पूर्वी रोमन साम्राज्य की सत्ता हमेशा के लिए समाप्त हो गई और कुस्तुनतुनिया आटोमन साम्राज्य का नया केन्द्र बन गया। 

आटोमन सुल्तानों ने जिस साम्राज्य की स्थापना की वह एशिया से यूरोप तक फैला हुआ था। तुर्कों का साम्राज्य विस्तार अभियान जारी रहा तथा सर्विया, अल्बानिया, वेनशिया, एशिया, माइनर, फारस, सीरिया, मिस्त्र पर आधिपत्य स्थापित कर आटोमन साम्राज्य के आकार का और अधिक विस्तृत किया। 16वीं शताब्दी के शुरुआत में बेलग्रेड, रोड्स द्वीप तथा हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट भी इस्लामी सत्ता के अधीन आ गए। तुर्कों ने आस्ट्रिया की राजधानी को अपना निशाना बनाया लेकिन विएना पर आक्रमण विफल रहा। इस हार के बाद तुर्कों ने यूरोप में प्रसार का इरादा बदल दिया तथा अल्जीरिया, ट्युनीशिया एवं ट्रिपोली पर तुर्कों ने कब्जा कर पूरी दुनिया को अपने सैन्य कौशल से अवगत करवाया। 

आटोमन साम्राज्य फारस की खाड़ी से कालासागर तक एवं भारत प्रायद्वीप से वाल्कन प्रायद्वीप तथा हंगरी तक फैला हुआ था। 16 वीं शताब्दी के मध्य तक आटोमन साम्राज्य संसार के सर्वाधिक विशाल साम्राज्य के रूप में परिणित हो गया।

ऑटोमन साम्राज्य का पतन कैसे हुआ?

तुर्कोंं का अहंकार इतना बढ़ गया कि किसी की बात सुनने या कोई नई बात ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं होते थे। इससे उनमें प्रमाद, शिथिलता और लापरवाही पैदा होने लगी जिसने समय के साथ-साथ सर्वांगीण पतन का रूप धारण कर लिया। 1506 ई6 में सुलेमान की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी निकम्मे और निर्बल निकले और आमोद-प्रमोद तथा विलासता उनके जीवन का मुख्य लक्ष्य बन गया। वास्तविक राजसत्ता अब वजीरों के हाथ आ गई और जानिसारी सेना (विशिष्ट सैन्य दल) अनियंत्रित, उदंड और अनुशासनहीन हो गई। जानसारियों को शादी की छूट मिल गई और उनके बच्चे उनकी इस सेना में भरती किए जाने लगे। जानिसारी लोग राजनीति में खुलेआम हस्तक्षेप करने लगे। वे हर जगह गड़बड़ी मचाते रहते थे। लोगों से धन ऐंठना और कानून की अवहेलना करना उनके लिए मामूली बात हो गई थी। सुल्तान भी उनकी ज्यादतियों को रोक नहीं सकता था। शहर के घरों में आग तक लगाकर वे अपना विरोध का प्रदर्शन करते थे।

ऐसी स्थिति में आटोमन साम्राज्य का लड़खड़ा गया और बड़ी शीघ्रता से पतन की ओर अग्रसर हुआ। सुलेमान की मृत्यु (1506 ई.) से लेकर अब्दुल हमीद द्वितीय (1876 ई.) के राज्य रोहण तक कुल मिलाकर तेईस सुल्तान गद्दी पर बैठे, जिनमें से दस को गद्दी पर से जबरदस्ती उतार दिया गया। आटोमन साम्राज्य एकतंत्र पर आधृत था, लेकिन इसमें उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम न होने से सुल्तान के मरते ही छीना झपटी, लूट खसोट और हत्याएं शुरू हो जाती थी। यह मामला इतना पेचीदा हो गया थ कि 1603 से सुल्तान के सबसे बड़े पुत्र को या रिश्तेदार को खतरे से बचाने के लिए बंद मकान में कड़े पहरे में रखा जाने लगा। इससे बहुधा उनका मानसिक विकास रूक जाता था सुल्तान अब्दुल हमीद प्रथम (1774-89) 43 वर्ष तक बंद रहने के कारण कुछ खब्सी सा हो गया था और मुहम्मद पंचम रशाद (1908-18) भी आधा पागल सा था।

प्रशासन की शिथिलता और अक्षमता के कारण खेतीबारी, उद्योग-धंधे और व्यवसाय-व्यापार में ढीलापन आ गया। तकनीकी स्तर गिर गया, नए काम करने की आदत न रही और नई बात सोचने की ताकत खत्म हो गई। संसार के व्यापार का बहुत बड़ा भाग यूरोपीय लोगों के हाथों में चला गया। उधर इसारेदारों और जमींदारों का वर्ग गरीब किसानों को चूसने लगा। बद्दू लोग छापे मारकर उनकी फसलों को काफी नुकसान पहुँचाते थे। 1653 ई. में हाजी खलीफा ने अपने ‘दस्तूरुलअलम’ में लिखा है कि किसान खेती क्यारी और गाँव बस्ती छोड़कर कस्बों और शहरों की ओर जाने लगे। कारीगर और दस्तकार ‘ताइफों’ और ‘सिन्फो’ (श्रेणी या निगम) में संगठित थे। उनका विधान इतना कठोर था कि उनके सदस्यों में जो भी सर्जनात्मक प्रतिभा थी, वह रुढि़ और परम्परा के भार से कुंठित हो जाती थी। इस प्रकार आटोमन साम्राज्य 17 वीं शताब्दी के अंत होते-होते तक पतन के गर्त में पहुंच गया और पश्चिम की चुनौती उसे जबर्दस्त झटके देने लगी।

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