प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण, घटनाएं, महत्व

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण 

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध कंपनी की मद्रास सरकार द्वारा दक्षिण की राजनीति में सक्रिय भाग लेने के कारण हुआ। अंग्रेजों ने बंगाल में सरलता से आशा से अधिक सफलता प्राप्त की थी। मद्रास सरकार भी दक्षिण में अंग्रेजी राज्य के विस्तार की आशा से निजाम और मराठों द्वारा हैदरअली के विरूद्ध निर्मित गुट में सम्मलित हो गयी। 1765 ई. में अंग्रेजों ने हैदरअली के विरूद्ध निजाम से एक संधि की जिसके कारण अनुसार निजाम उत्तरी सरकार नामक प्रदेश के जिले अंग्रेजों को देगा और अंग्रेज उसे हैदरअली के विरूद्ध सैनिक सहायता देंगे। इसी बीच बम्बई के गवर्नर ने भी मराठों को हैदरअली के विरूद्ध भड़काया। 

फलतः मराठे, निजाम और अंग्रेजों का त्रिगुट हैदरअली के विरूद्ध हो गया। किन्तु हैदरअली ने कूटनीति और साहस से इस त्रिगुट को तोड़ दिया। जब मराठों ने आक्रमण किया तो हैदरअली ने 18 लाख रूपये नगद और 17 लाख रूपये के बदले कुछ प्रदेश मराठों को देकर त्रिगुट से उन्हें पृथक कर दिया।

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध की घटनाएं

मराठों के त्रिगुट से निकल जाने पर निजाम और जोसेफ स्मिथ के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने हैदरअली के मैसूर राज्य पर आक्रमण किया। इसी बीच कर्नाटक के नबाव मुहम्मदअली के बंधु महफूज खाँ ने जो मुहम्मदअली और अंग्रेजों का शत्रु था, निजाम को भड़काया और उसे हैदरअली के पक्ष में कर लिया। फलतः निजाम ने 1767 ई. में हैदरअली से समझौता कर लिया। इस प्रकार हैदरअली ने अपनी कूटनीति से मराठों और निजाम को त्रिगुट से पृथक कर अपने पक्ष में कर लिया। अब युद्ध केवल हैदरअली और अंग्रेजों के बीच ही रह गया था। इस पक्ष परिवर्तन के बाद हैदरअली और निजाम दोनों की सम्मलित सेनाओं को 1766 ई. में स्मिथ के नेतृत्व वाली अंग्रेज सेना ने चंगाया घाट तथा त्रिनोपाली के युद्ध में परास्त कर दिया। इसी बीच कर्नल पीच के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने निजाम के राज्य पर आक्रमण किया। अपनी पराजय और इस नवीन अंग्रेज आक्रमण से घबराकर निजाम ने हैदरअली का साथ छोड़ दिया और 1768 ई. में अंग्रेजों से संधि कर ली। इसके अनुसार निजाम ने हैदरअली को विद्रोही माना और अंग्रेजों को हैदरअली के विरूद्ध सहायता देने का वचन दिया। 

इस संधि से हैदरअली अंग्रेजों का कट्टर शत्रु हो गया। उसने बड़े साहस और उत्साह से अंग्रेजों का सामना किया। और मार्च 1769 में बम्बई से भेजी गई अंग्रेज सेना को परास्त कर मंगलौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद हैदरअली तीव्र गति से सेना सहित मद्रास के निकट पहुँच गया और उसे घेर लिया। इससे आतंकित और घबराकर मद्रास सरकार ने हैदरअली से संधि कर ली। 

मद्रास की संंधि (1769 ई.) 

4 अप्रेल 1769 को अंग्रेजों और हैदरअली के मध्य मद्रास की संधि हुई। जिसकी शर्ते थीं-
  1. एक दूसरे के जीते हुए प्रदेश वापिस कर दिये जावेंगे।
  2. हैदरअली के पास करूर का जिला रहने दिया गया। 
  3. कर्नाटक को मैसूर का करद राज्य स्वीकार कर लिया गया। 
  4. हैदरअली ने 205 अंग्रेज बंदियों को मुक्त कर दिया। 
  5. अंग्रेज तथा हैदरअली ने एक दूसरे को किसी भी बाह्य आक्रमण के अवसर पर सहायता देने का वचन दिया। 
  6. अंग्रेज कंपनी को बहुत बड़ी धनराशि युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में हैदरअली को देना पड़ी।

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध का महत्व

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध और मद्रास की संधि से अंग्रेजों के मान और प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा। इसमें हैदरअली की सफलता होने से और उसके द्वारा संधि की शर्ते निश्चित किये जाने से हैदरअली के सम्मान और गौरव में भारी वृद्धि हुई। इससे हैदरअली की शक्ति के विकास का मार्ग भी प्रशस्त हो गया।

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