राजस्व का अर्थ, परिभाषा, विषय-वस्तु

राजस्व का तात्पर्य सार्वजनिक सत्ताओं के आय और व्यय सम्बन्धी विषयों से है। वर्तमान समय में राजस्व की अवधारणायें अधिक विस्तृत हो गयी हैं और  इसके अन्तर्गत अध्ययन सार्वजनिक सत्ताओं जैसे केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा स्थानीय शासन सत्ताओं के आय व्यय से संबंधित ही नहीं किया जाता लेकिन वित्तीय प्रशासन, राजकोषीय नीतियों एवं वित्तीय नियन्त्रण के सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है। राजस्व के अन्तर्गत सरकारों की वित्त व्यवस्था से संबंधित सिद्धान्तों, समस्याओं, नीतियों, प्रक्रियाओं एवं समायोजन व्यवस्था का अध्ययन किया जाता है।

सरल शब्दो में कहा जाये तो राजस्व में यह अध्ययन किया जाता है कि सार्वजनिक अधिकारी किस प्रकार से सार्वजनिक आय प्राप्त करते है और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों व सार्वजनिक कार्यों को पूरा करने के लिए सार्वजनिक आय को किस प्रकार व्यय करते है।

राजस्व का अर्थ

राजस्व शब्द संस्कृत भाषा के दो अक्षरों- ‘राजन्+स्व’ से मिलकर बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ है- राजा का धन। राजस्व के अन्तर्गत राज्य के वित्त सम्बन्धी जैसे- आय का संग्रह, सार्वजनिक व्यय और ऋण से संबंधित सभी गतिविधियाँ का अध्ययन किया जाता है। राजस्व का यह पहलू ध्यान देने योग्य है कि राजस्व शास्त्र के अन्तर्गत जनता के वित्त का नहीं बल्कि जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्थाओं, राज्य या फिर राज्य सरकारों की वित्तीय व्यवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थात् सार्वजनिक सत्ताओं के आय व व्यय सम्बन्धी कार्यों के अध्ययन को ही राजस्व कहा जाता है।

राजस्व की परिभाषा

विभिन्न विद्वानों ने राजस्व को कई तरीकों से परिभाषित किया है। विद्वानों ने राजस्व को अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया है। जोकि इस प्रकार है -

1. डाॅल्टन के अनुसार ‘‘राजस्व के अन्तर्गत लोक सत्ताओं के आय-व्यय तथा उसके पारस्परिक समायोजन और समन्वय का अध्ययन किया जाता है।

2. फिण्डले शिराज के अनुसार ‘‘लोक सत्ता द्वारा साधनों की प्राप्ति एवं व्यय से सम्बन्धित सिद्धान्तों का अध्ययन ही राजस्व कहलाता है।

3. बेस्टेबल के अनुसार ‘‘राजस्व लोक सत्ताओं के आय और व्यय, उनके पारस्परिक सम्पर्क तथा वित्तीय और प्रशासन नियन्त्रण से संबंधित है।

4. रिचार्ड मसगे्रव के अनुसार ‘‘राजस्व सार्वजनिक अर्थव्यवस्था के सिद्धान्तों का अध्ययन है या और स्पष्ट रूप मे, आर्थिक नीति के उन पहलुओं का अध्ययन है जो सार्वजनिक बजट की क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं।

5. जे0 के0 मेहता के अनुसार ‘‘राजस्व राज्य के मौद्रिक तथा साख सम्बन्धी साधनों का अध्ययन है।

राजस्व की विषय-वस्तु

इस तरह लोक वित्त अर्थशास्त्र का वह भाग है जो किसी देश् की व्यवस्था तथा उससे प्रशासनिक एवं अन्य समस्याओं का अध्ययन क्रम को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है।
  1. सार्वजनिक व्यय
  2. सार्वजनिक आय
  3. सार्वजनिक ऋण
  4. वित्तीय प्रशासन
  5. राजकोषीय या वित्तीय- नीति   

1.सार्वजनिक व्यय

लोक वित्त के इस अंग में यह अध्ययन किया जाता है कि सार्वजनिक व्यय किन-किन मदो पर करना आवश्यक है? व्यय का स्वरूप तथा परिणाम क्या हो? व्यय करते समय किन किन नियमों एवं सिद्धान्तो का पालन किया जाए? इन व्ययों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है इससे सम्बन्धित कठिनाइयां क्या है? तथा उन्हें किस प्रकार दूर किया जा सकता है।

राजकीय अथवा सार्वजनिक व्यय का महत्व बढ़ता जा रहा है। जन कल्याण के सभी का सार्वजनिक व्यय पर ही निर्भर करते है। सार्वजनिक व्यय की मदों तथा उन पर व्यय की जाने वाली धनराशि जिसके आधार पर उस देश की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक नीतियों तथा स्थितियों की समीक्षा की जा सकती है।

2. सार्वजनिक आय 

सार्वजनिक आय के अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि सरकार अपनी आय किन किन स्त्रोत से प्राप्त करती  है। उसमें आय के विभिन्न स्रोतों का विश्लेषण वर्गीकरण, साधनों की गतिशीलता और उनके बारे में महत्व एवं सिद्धान्त का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा आय के इन स्त्रोतो का देश के उपभोग, उत्पादन ,वितरण, बचत तथा विनियोग पर क्या प्रभाव पड़ा है का भी अध्ययन किया जाता है।

3. सार्वजनिक ऋण 

सार्वजनिक ऋण के अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि सरकारी ऋण क्यों और किस उद्देश्य हेतु लिए जाते है। राज्य किन सिद्धान्तों के आधार पर सरकारी ऋण प्राप्त करता है? तथा इन ऋणों का भुगता किस प्रकार किया जाता है। ऋणो पर क्या प्रभाव पड़ता है? सार्वजनिक ऋणो से सम्बन्धित विभिन्न समस्याएं क्या है? अल्पकालीन एवं  दीर्घकालीन ऋणों का सापेक्षित महत्व क्या है? इत्यादि।

4. वित्तीय प्रशासन 

वित्तीय प्रशासन के अन्तर्गत इस बात का अध्ययन किया जाता है कि सरकार वित्तीय क्रियाओं का प्रबन्ध किस प्रकार करती है? विशेष रूप से यह अध्ययन किया जाता है। कि बजट किस प्रकार बनाया जाता है बजट बनाने के क्या उद्देश्य है। घाटे के बजट तथा आधिक्य के बजट का क्या महत्व है, इसके अलावा लेखों का अंकेक्षण करना भी इसके अन्तर्गत आता है। वित्तीय प्रशासन लोक वित्त का महत्वपूर्ण विभाग है। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात इसका महत्व काफी बढ़ गया है। प्रो0 बैस्टेबल पुस्तक तब तक पूर्ण नहीं कही जा सकती जब तक तक कि वह वित्तीय प्रशासन और बजट की समस्याओं का अध्ययन नहीं करती।

5. राजकोषीय या वित्तीय- नीति 

लोक वित्त के एक भाग के रुप में राजकोषीय अथवा वित्तीय नीति के महत्व को आधुनिक अर्थशास्त्र ने स्वीकार किया है। स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के लिए आज वित्तीय नीति का सहारा लिया जाता है। वित्तीय नीति से देश में उत्पादत क्रियाओं को नियमित करके राष्ट्रीय आय के विवरण को न्यायपूर्ण बनाकर तथा कीमतों में स्थिरता लेकर आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

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