साख, साख-सृजन, साख निर्माण क्या है ?

जब कोई बैंक किसी व्यक्ति या संस्था को उधार देने पर विचार करती है तब वह उस व्यक्ति या संस्था पर ऋण को वापस करने की क्षमता का आंकलन करती है एक प्रकार से बैंक उस पर इस बात का भरोसा करती है कि उसका ऋण समय से वापस होगा या नहीं। यदि किसी व्यक्ति या संस्था पर बैंक को भरोसा न हो तो वह उसे ऋण देने से मना कर देगी। इस प्रकार से साख से तात्पर्य बैंक द्वारा दिये जाने वाले ऋण की उस मात्रा से लगाया जाता है जो ऋण वापस की क्षमता या भरोसे के बराबर होती है। 

बैंक की अन्य भाषा में यह कहा जाता है कि बैंक के पास ग्राहकों की जो मुद्रा जमा होती है वह उस मात्रा के साथ और अधिक मात्रा में ग्राहकों को ऋण के रूप में मुद्रा उपलब्ध कराती है। बैंक जो मुद्रा बनाते हैं उसे साख कहा जाता है।

साख की परिभाषा

अर्थशास्त्रियों द्वारा साख को परिभाषित किया गया है। अर्थशास्त्रियों द्वारा साख की दी गयी परिभाषाओं को दिया जा रहा है जिससे आप साख के आशय को समझ सकते हैं।

जेवन्स -‘‘साख शब्द का अर्थ भुगतान को स्थगित करना है।’’

टाॅमस -‘‘साख वह विश्वास है जिसके आधार पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपन बहुमूल्य वस्तुऐं तथा सेवाऐं देता है, भले ही ये वस्तुऐं मुद्रा, सेवा तथा साख मुद्रा क्यों न हो और आशा करता है कि वह व्यक्ति इसको वापस लौटा देगा।’’

जी.डी.एच. कोल के अनुसार ‘‘साख वह क्रय शक्ति है जो आय से प्राप्त नहीं होती लेकिन वित्तीय संस्थाओं के द्वारा जमाकर्ताओं की बैंकों में जमा निष्क्रिय आय को सक्रिय बनाकर अथवा कुल क्रय शक्ति में वास्तविक वृद्धि करके इसका निर्माण किया जाता है।’’

चैण्डलर ‘‘किसी व्यक्ति, व्यावसायिक फर्म या सरकार की साख प्राप्त करने की क्षमता ऋणदाताओं के इस विश्वास पर निर्भर करती है कि ऋणी ऋण का भुगतान करने के लिए क्षम्य तथा तत्पर दोनों ही रहेगा।’’

किनले के अनुसार - ‘‘साख से अभिप्राय किसी भी व्यक्ति की उस शक्ति को भविष्य के भुगतान के वादे पर अपनी वित्तीय सामान समर्पित करने के लिए प्रेरित करता है। इस कारण से साख ऋणी का एक गुण अथवा शक्ति है।’’

केन्ट के अनुसार- ‘‘साख की परिभाषा, वस्तुओं के तत्काल स्थानांतरण के कारण, माँग पर अथवा भविष्य में किसी समय पर भुगतान पाने के अधिकार अथवा भुगतान करने के दायित्व के रूप में की जा सकती है।’’

जीड के अनुसार - ‘‘साख एक ऐसा विनिमय कार्य है, जो कि एक निश्चित अवधि के बाद भुगतान करने पर पूरा होता है ।’’

हाम के अनुसार - ‘‘व्युत्पन्न जमा कर निर्माण ही साख का सृजन है।’’

साख-सृजन

साख से तात्पर्य बैंक द्वारा उपलब्ध कराया ऋण की उस मात्रा से है जो ऋणी की ऋण वापसी की क्षमता के बराबर होती है। बैंक किसी को उस सीमा तक ही ऋण/उधार देती है जिसे वह आसानी से वापस कर सके। साख का निर्माण बैंकों द्वारा किया जाता है। बैंकों द्वारा नकद जमा के आधार पर व्युत्पन्न जमा उत्पन्न करती है जिसे साख-सृजन कहा जाता है।

साख सृजन की प्रक्रिया 

साख सृजन की प्रक्रिया को नकद जमा, नकद आरक्षित अनुपात तथा ग्राहकों द्वारा ऋण की मांग आदि तत्त्वों द्वारा एक बड़ी सीमा तक प्रभावित किया जाता है। व्यापारिक बैंकों द्वारा साख सृजन दो प्रकार की स्थिति में किया जाता है। प्रथमतः एक बैंक प्रणाली के अन्तर्गत साख-सृजन, द्वितीयतः बहु बैंक प्रणाली के अन्तर्गत साख सृजन/सामान्य रूप से विशेषकर भारत में बहुबैंक प्रणाली प्रचलित है। अतः साख-सृजन मूल जमा की कई गुना तक निर्मित किया जा सकता है। सामान्य मान्यताओं के अन्तर्गत नकद आरक्षित अनुपात जिनता कम होता है साख का सृजन उतना ही अधिक होता है। साख सृजन को जमा गुणक भी कहा जाता है। 

वाणिज्यिक बैंकों द्वारा साख सृजन की प्रक्रिया बैंक की फर्म नीति, केन्द्रीय बैंक को आर्थिक नीति, ग्राहकों का आर्थिक व्यवहार आदि सीमाओं द्वारा प्रभावित होता है। वाणिज्यिक बैंकों द्वारा किये गये साख सृजन के सामने अनेक प्रकार की समस्यायें भी पैदा होती हैं जिसमें अनेक प्रकार की बैंकिंग परम्परायें, वाणिज्यिक बैंकों पर केन्द्रीय बैंक का अपूर्ण नियन्त्रण, पारस्परिक सहयोग की कमी, साख उपयोग की समस्या तथा साख की विविधता जैसी अनेक समस्याओं को शामिल किया जा सकता है।

साख-सृजन की समस्याएं

आप पर्वू में दिये गये विवरण से वाणिज्यिक बैंकों द्वारा साख-सृजन हेतु अपनायी जाने वाली प्रक्रिया से अच्छी तरह से परिचित हुए होंगे। वाणिज्यिक बैंकों को साख-सृजन की प्रक्रिया के दौरान तथा साख-सृजन के उपरान्त अनेक प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है जिन्हें हम निम्न रूप में स्पष्ट कर सकते हैं।

1. परम्पराओं का प्रभाव - भारत में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा किये जाने वाले साख-सृजन में परम्परागत तत्वों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है जिससे बैंकों की साख-सृजन की प्रक्रिया नकारात्मक रूप से भी प्रभावित होती है। ग्राहकी की परम्पराऐं, सरकार की परम्परागतियां तथा केन्द्रीय बैंक की परम्परागत व्यवस्थाओं से साख-निर्माण की प्रक्रिया समय-समय पर वाधित होती रहती है।

2. अपूर्ण नियंत्रण - वाणिज्यिक बैंकों द्वारा साख-सृजन की प्रक्रिया में नियन्त्रणात्मक कठिनाईयों का भी सामना करना होता है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक का सभी मौद्रिक सृजन तथा साख उपलब्धता का भी कार्य करती हैं, जिससे वाणिज्यिक बैंकों की साख-सृजन की प्रक्रिया भी वाधित होती है। आपको यहां पर यह भी ध्यान होगा कि किसी वाणिज्यिक बैंक द्वारा साख-सृजन में अन्य बैंकों की साख सम्बन्धी रणनीतियां, ग्राहकों को साख उपलब्धता का स्तर, ग्राहकों का व्यवहार तथा उनका दृष्टिकोण भी प्रभावित करता है। इसीलिए यह कहा जा सकता है कि वाणिज्यिक बैंक को साख-सृजन की प्रक्रिया में मांग पक्ष सम्बन्धी अनियमितता भी बाधक है।

3. बैंकों का पारस्परिक असहयोग - वाणिज्यिक बैंकों द्वारा साख-सृजन की प्रक्रिया में सम्बद्ध बैंकों तथा शाखाओं का पूर्ण सहयोग आवश्यक है। भारत में वाणिज्यिक बैंकों में सार्वजनिक, निजी तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक शामिल हैं तथा इन सभी की कार्यप्रणाली, साख नीतियों में विभिन्नता पायी जाती है। विकास के दौर में बैंकिंग क्षेत्र में प्रतियोगिता विद्यमान है जो किसी एक वाणिज्यिक बैंक की साख-सृजन की प्रक्रिया में असहयोग का भी कार्य करती है जिससे इस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वहीं पर केन्द्रीय बैंक को साख-सृजन नीति पर भी सम्बद्ध बैंकों का पूर्ण प्रत्यक्ष सहयोग प्राप्त नहीं होता है और वाणिज्यिक बैंक लक्ष्यानुसार साख का सृजन नहीं कर पाते हैं।

4. साख विविधता - वाणिज्यिक बैंकों के सामने साख-सृजन में साख के विभिन्न रूप् का होना भी एक समस्यात्मक पहलू है। साख को कई श्रेणियों में रखा गया है जैसे बैंक साख, किताबी साख, वाणिज्यिक साख आदि। अलग-अलग क्षेत्रों की मांग का अनुमान लगाने में समस्याऐं आती हैं जो वाणिज्यिक बैंकों की साख-सृजन की मात्रा तथा स्वरूप को प्रभावित करती हैं।

5. साख उपयोग सम्बन्धी समस्या - वाणिज्यिक बैंकों के सामने साख-सृजन में आने वाली समस्याओं में साख उपयोग के स्तर पुनर्भुगतान तथा उपयोग को आकार भी शामिल है। इससे साख-सृजन की प्रक्रिया प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है।

साख निर्माण

साख निर्माण व्यापारिक बैंकों का उस शक्ति को कहा जाता है जिसमें व्यापारिक बैंक ऋणों, अग्रिमों तथा निवेशों के द्वारा अपनी गौण जमाओं का विस्तार करती है। साख का निर्माण बैंक जमाओ के आधार पर किया जाता है। बैंक जमायें दो प्रकार की होती है: प्रारम्भिक जमा और गौण जमा। प्राथमिक जमा के अन्र्तगत वह मुद्रा आती है जो लोग बैंकों में नकद मुद्रा के रूप में जमा करवाते है तथा गौण जमा वह जमा होती है जिसमें कोई  व्यक्ति जब बैक से ऋण लेने के लिए आता है तो बैंक उसके नाम खाता खोल देता है और उसे चैक द्वारा उसमें से रुपया निकलवाने का अधिकार दे देता है। व्यापारिक बैकों द्वारा साख का निर्माण दो तरह से किया जा सकता है। एक बैंकिग प्रणाली तथा बहु बैंकिग प्रणाली द्वारा।

1. एक बैंकिग प्रणाली में साख का निर्माण

व्यापारिक बैंक प्राथमिक जमाओं के आधार पर साख का निर्माण कर सकते हैं। मान लो किसी व्यक्ति द्वारा 1000 रुपये बैंक में प्राथमिक जमा के रुपये जमा किये जाते है बैंकों को अपने अनुभव के आधार पर पता होता है कि सभी लोग अपनी जमाओं को एक साथ नहीं निकालेंगे इसलिए बैंक 100 रुपये रखकर बाकी राशि को ऋण के रुप में किसी दूसरे व्यक्ति को दे दिया जाता है। दूसरे व्यक्ति को 900 रुपये उसके नाम बैंक में खाता खोलकर चैक के रूप में दिए जाते हैं। अब मान लो दूसरे व्यक्ति को 900 रुपये किसी तीसरे व्यक्ति को देने है तो वह 900 रुपये को चेक तीसरे व्यक्ति को दे देगा। फिर तीसरे व्यक्ति उस चेक को बैंक में जमा करवायेगा। इस प्रकार 900 रुपये बैंक में फिर जमा हो जायेगें। बैंक फिर 900 रुपये में से 10 प्रतिशत रखकर किसी चौथे व्यक्ति को 810 रुपये का ऋण दे देगी। इस प्रकार बैंक साख का निर्माण करते है।

2. बहु बैंकिग प्रणाली में साख का निर्माण

जब किसी अर्थव्यवस्था में कई बैंक होते है उस समय बहुत बैंकिग प्रणाली साख का निर्माण करती है। बहु बैंकिंग प्रणाली में मान लो किसी व्यक्ति ने 1000 रुपये Aबैंक में जमा किये। Aबैंक द्वारा 10 प्रतिशत रुपये नकद कोष में रखकर 900 रुपये किसी Y व्यक्ति को उधार दे दिये। वह इस रुपये को किसी Z व्यक्ति को भुगतान करता है जिसका खाता किसी B बैंक में है। वह व्यक्ति 900 रुपये के चैक को B बैंक में जमा करवाता है। इस प्रकार B बैंक 900 रुपये में से 90 रुपये अपने पास रखेगा तथा 810 रुपये X व्यक्ति को उधार देगा। इस प्रकार बहु बैंकिग प्रणाली में भी साख का निर्माण होता है।

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