यह एकमात्र ऐसी पुस्तक है जो नाथ योगियों के हठ पंथ के दार्शनिक सिद्धांतों पर प्रकाश
डालती है, इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है। यह वर्ष 2010 में प्रकाशित की
गई है। यह एक बहुत ही व्यवस्थित ढंग से लिखा गया ग्रंथ है जिसमें 350 छंद हैं जो छह अध्यायों में विभाजित है। सिद्ध सिद्धांत पद्धति के लेखक गुरु गोरखनाथ हैं।
- पहला अध्याय अनाम (गुमनाम) से आरंभ होनेवाले विकास की प्रक्रिया का वर्णन करता है।
- दूसरे अध्याय में मानव शरीर की चर्चा है जिसमें चक्र, आधार इत्यादि का वर्णन है।
- तीसरे अध्याय में मानव शरीर के प्रति एक गहरी अंतर्दृष्टि विकसित की गई है। इस शरीर को ब्रह्मांड की एक प्रतिकृति कहा गया है।
- चौथे अध्याय में शरीर के आधार या पिंडाधार के साथ-साथ ब्रह्मांड के बारे में भी चर्चा है। शक्ति इसका सार/आधार है।
- पांचवें अध्याय में उस प्रक्रिया का वर्णन है जिसके द्वारा व्यक्ति पूर्णत्व के साथ संतुलन स्थापित कर सकता है।
- छठे अध्याय में किसी अवधूत योगी तथा इसी प्रकार के अन्य लोगों की प्रकृति और चारित्रिक विशेषताओं की चर्चा है।
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सिद्ध सिद्धांत पद्धति