इसके प्रति 100 ग्राम गूदे में 87.8% जल, 0.7% प्रोटीन, 0.2% वसा, 0.4% खनिज लवण, 1.1% रेशा, 1.8% काबर्¨हाइड्रेट, 0.3% कैल्सियम, 1.8% आयरन पाया जाता है। इसके अलावा इसमें लगभग 40-50 मि० ग्रा० विटामिन सी० तथा लगभग 30 कैलोरी उर्जा प्राप्त होती है। स्ट्राॅबेरी का उपयोग जैम, जेली, केंडी, आइसक्रीम, केक तथा कई प्रकार के पेय बनाने में किया जाता है।
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए जलवायु तथा मिट्टी
शीतोष्ण जलवायु स्ट्राॅबेरी के लिए उचित है। कम से कम 10
दिनों तक 8 घंटे से कम सूर्य की रोशनी प्राप्त होना आवश्यक है। स्ट्राॅबेरी फल उत्पादन हेतु तापक्रम
15-35 डिग्री से० ग्रे० है। 14 से 18 डिग्री से० ग्रे० तापमान होना चाहिए।
जीवाशयुक्त हल्की दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी की समुचित सुविधा है तथा जिसका पी० एच० मान 5.5
से 6.5 के मध्य है स्ट्राॅबेरी की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है।
स्ट्रॉबेरी की प्रमुख किस्में
हमारे देश में स्ट्राबेरी की प्रमुख व्यावसायिक किस्मे फेस्टिवल, स्वीट चार्ली, कामारोजा, फलोंरीना, चान्दलर, ज्योंलीकीट, रेड कीट, सोलाना, फर्न , रेड कीट, रिच रेड, सेल्वा, विन्टर डाउन आदि है।
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए उवर्रक एवं खाद
250 किलो यूरिया एवं 200 किलो पोटाश की मात्रा प्रतिहेक्टेयर की
दर से सम्पूर्ण सफल चक्र में दी जानी चाहिए। यह उवर्रक फर्टिगेशन विधि द्वारा 15 दिनों के अन्तराल 4-5 भागों
में बांट कर दी जानी चाहिए। मल्टीप्लेक्स तथा मल्टी- पोटाश का छिड़काव भी 15 दिनों के अंतराल पर करना
चाहिए। इसके फलन अच्छा होता है तथा फलो की गुणवत्ता कायम रहती है। फल लगने के उपरान्त कैल्शियम
नाइट्रेट का छिड़काव प्रति सप्ताह 2 किलो प्रति एकड़ की दर की से की जानी चाहिए जिससे अच्छी गुणवता वाले
फल आ सकें।
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सिंचाई
स्ट्राॅबेरी की जड़ बहुत गहरी नहीं होती है। अतः इसे नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली
सिंचाई पौधे लगाने के तुरन्त बाद की जानी चाहिए। उसके उपरान्त 3-4 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करनी
चाहिए।उचित सिंचाई से फल बड़ा तथा रसीला होता है। सूक्ष्म तत्व की कमी होने पर माईक्रोन्यूट्रीयेन्ट का छिड़काव
करना आवश्यक है।
स्ट्रॉबेरी के प्रमुख व्याधि एवं कीट
लाही, थ्रिप्स, माइट (लाल मकड़ी) तथा पत्र छेदक कीट इस में लगने वाले प्रमुख कीट है।
लाही के नियंत्रण के लिए मेटासिस्टाॅक्स, थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरोप्रिड, माइट के नियंत्रण के लिए तथा
पत्र छेदक कीट के लिए मेथोमाइल का छिड़काव किया जाना चाहिए। ध्यान रहे कि फलन अवस्था में किसी तरह का
छिड़काव न करें।
स्ट्राॅबेरी में लगने वाली प्रमुख व्याधियाँ है गे्र मोल्ड, एन्थ्रेकनोज, पत्र धब्बा एवं उकठा रोग। इसमें से उकठा रोग एवं एन्थ्रेक नोज इसे काफी नुकसान पहुंचाते है। व्याधियों का ससमय उपयुक्त नियंत्रण किया जाना चाहिए अन्यथा उपज एवं फल की गुणवत्ता में काफी गिरावट आती है। उकठा रोग अत्यधिक प्रकोप से बचने के लिए नई भूमि का चयन किया जाना चाहिए जिसमें पूर्व में उसके जीवाणु न हो।
स्ट्राॅबेरी में लगने वाली प्रमुख व्याधियाँ है गे्र मोल्ड, एन्थ्रेकनोज, पत्र धब्बा एवं उकठा रोग। इसमें से उकठा रोग एवं एन्थ्रेक नोज इसे काफी नुकसान पहुंचाते है। व्याधियों का ससमय उपयुक्त नियंत्रण किया जाना चाहिए अन्यथा उपज एवं फल की गुणवत्ता में काफी गिरावट आती है। उकठा रोग अत्यधिक प्रकोप से बचने के लिए नई भूमि का चयन किया जाना चाहिए जिसमें पूर्व में उसके जीवाणु न हो।
स्ट्राबेरी फल की तुड़ाई एवं उपज
45से 50 दिनों में पुष्पन आरम्भ है जाता है। अगले 20 से 25 दिनों में फल पकना शुरु हो जाता है। फल की तुड़ाई 2 -3 दिनों के अन्तराल पर की जानी चाहिए। फल हमेशा सुबह के समय ही तोड़ी तथा फल तोड़कर हमेशा छायादार जगहों पर रखी जानी चाहिए। मैदानी इलाके में जहाँ पौधे अक्टूबर-नवम्बर महीनों में लगायी जाती है, फल जनवरी से पकना आरम्भ हो जाता है तथा फलन अप्रैल तक होता है। फल का उपज प्रबंधन, मौसम एवं भूमि की उर्वरता पर निर्भर करता है। समुचित प्रबंधन के अन्तर्गत इसकी औसत उपज 15-18 टन प्रति हेक्टेयर होती है। स्ट्राॅबेरी की भंडारण क्षमता काफी कम होती है। इसे सामान्य तापमान पर 2 दिनों से ज्यादा रखने पर फल खराब होने लगता है। अतः दूर के बाजार हेतु फलों को 75 प्रतिशत पकने पर ही तोड़ लेना चाहिए।