तारीख-ए-फिरोजशाही क्या है? इसका संक्षिप्त वर्णन

तारीख-ए-फिरोजशाही का लेखक जियाउद्दीन बरनी था। बरनी का जन्म बल्वन के राज्यकाल में 684 हिस. 1285-86 ई. में हुआ था। वह तुगलक वंश के समकालीन था। तारीख-ए-फिरोजशाही जियाउद्दीन बरनी की प्रसिद्ध रचना है। इसे उसने 758 हि.स.,1357 ई. में पुरा किया। इसमें बल्वन के सिहासनारोहण 1265 ई. से लेकर फिरोजशाह के छठे बर्ष तक का इतिहास लिखा है। इसमें लम्बे-लम्बे आख्यान दिये गये हैं। इसमें में उस काल के सामाजिक आर्थिक तथा न्याय सुधारों का  वर्णन किया गया है। जियाउद्दीन बरनी राजस्व के पद पर कार्यरत था। जियाउद्दीन बरनी ने अपने ग्रन्थ में राजस्व की स्थिति को बड़े विस्तार से वर्णन किया है। 

जियाउद्दीन बरनी ने इसमें सन्तों, दार्शनिकों, इतिहासकारों, कवियों, चिकित्सकों के विषय में भी लिखा हैं। वरनी शासन के उच्च पद पर आसीन था। इसलिये उस काल के शासन के विषय में उसने जो कुछ लिखा है, उसे हम प्रमाणिक मान सकते हैं इसमें अतिशयोक्ति होना स्वाभाविक है क्योंकि कि जो यहाँ नौकरी करेगा, उसकी वह तारीफ करेगा। जियाउद्दीन बरनी ने अपने ग्रंथ तारीख-ए-फिरोजशाही में इस काल के सामाजिक जीवन का भी परिचय भी दिया है। इसके साथ ही अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल की सामाजिक तथा आर्थिक दशा पर इस ग्रंथ में अच्छा प्रकाश डाला गया है। 

तारीख-ए-फिरोजशाही में धार्मिक पक्षपात की झलक है, फिर भी तारीख-ए-फिरोजशाही का ऐतिहासिक महत्व है। वह लिखता है कि मैने सभी इतिहास सत्य लिखा है। उसने सभी के गुण दोष खुलकर लिखे है। बल्वन का इतिहास जियाउद्दीन बरनी ने पूर्वजों से सुनकर लिखा है। अमीर खुसरों के साहित्य से भीे उसने इस काल का आर्थिक व राजनैतिक इतिहास लिखा है।उसने सभी घटनाओं व आर्थिक इतिहास का वर्णन एक विशेष दृष्टिकोण से किया है। 

जियाउद्दीन बरनी के अनुसार तारीख-ए-फिरोजशाही जैसा इतिहास पिछले एक हजार वर्ष से नही लिखा गया।इस ग्रन्थ में आमीरों, राज्य के उच्च अधिकारियों का वर्णन किया गया है। उसने महत्वपूर्ण घटनाओं का सक्षिप्त रूप लिखा है। यह उसके इतिहास का दोष भी है। वह उच्च पदों पर कुलीनता आवश्यक समझता था। योग्यता का उसके पास कोई मूल्य नही था। उसने अलाउद्दीन के आर्थिक सुधारों के बारे में लिखा है। 

तारीख-ए-फिरोजशाही के अनुसार मुहम्मद तुगलक के समय से देश की आर्थिक स्थिति गिरने लगी थी। जियाउद्दीन बरनी स्वयं बड़ा अपव्ययी बन गया था। उसने अपने समय के सभी अपव्ययी अमीरों की प्रशंसा की है। उसने अपने सुख के दिन याद करके आसू बहाये। उसने मुहम्मद तुगलक की कृषि उन्निति योजनाओं की हंसी उड़ाई है। फिरोज के समय बनाई गयी नहरों तथा आथर््िाक नीतियों से उसे कोई लाभ न हुआ। उसे ऐसा कोई उपाय भी नही मिला जिससे हिन्दू महाजनों, साहूकारो के धन का अपहरण किया जाए। तारीख-ए-फिरोजशाही में कहा गया है कि हिन्दूओं को इतना दरिद्र बना दिया जाए कि उनके पास इतना धन शेष न रहे जिससे वह आदरपूर्वक जीवन व्यतीत न कर सके। इससे उच्चवर्गीय मुश्लमानों की आर्थिक समस्याओं का भी निदान हो जाएगा।

जियाउद्दीन बरनी के अनुसार लूट के माल को पूरा राजकोष में जमा न किया जाए बल्कि मुश्लमानों को इसका कुछ भाग मिलना चाहिए। उसके अनुसार वस्तुओं का दाम राज्य द्वारा निश्चित हो। बाजार निरीक्षण कें लिए अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए। उसने हिन्दु व्यापारियों को अपमानित करने की आज्ञा दी है। उसने ब्रह्मणों का विरोध किया क्योंकि उनका समाज में सम्मान था वे धनी थे। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार इन लोंगों के विनाश से मुश्लमानों को धन एकत्रित करने में सुगमता होगी। इसमे कहा गया है कि प्रशासक को भाग्यवान का अनुसरण करना तथा अभागे के मार्ग से सुरक्षित रहना चाहिए। जो धर्म और राज्य के लिए आवश्यक है। तारीख-ए-फिरोजशाही में बल्वन से लेकर फिरोजशाह तक की आर्थिक स्थिति का वर्णन किया गया है।

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