नेपोलियन की हार के बाद 30 मई 1814 को पेरिस की संधि से फ्रांस से वे सभी
प्रदेश वापस ले लिये गये जो नेपोलियन और उससे पहले फ्रांस ने यूरोपीय देशों से
जीते थे। इन प्रदेशों को दुबारा नए ढंग से विभाजित करने और यूरोप के अन्य देशों की
पुनव्र्यवस्था करने के लिये ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, रूस, प्रशा आदि देशों के प्रतिनिधि और
राजनीतिज्ञ आस्ट्रिया की राजधानी वियाना में इकठठे हुए। इनका पहला अधिवेशन नवंबर
1814 में हुआ। पर पुनव्र्यवस्था के विषय में इनमें गहरे मतभेद उभर गये। इन मतभेदों
की सूचना नेपोलियन को मिली तब वह एल्बा द्वीप से पलायन करके पेरिस लौटा और दुबारा फ्रांस का सम्राट बन गया। पर मित्र राष्ट्रों ने उसे 18 जून 1815 को वाटरलू के युद्ध में दुबारा हरा कर दिया और उसे सेन्ट हेलना द्वीप में भेज दिया गया। इस घटना के बाद ही
वियना में एकत्रित राजनीतिज्ञों का कार्य प्रारंभ हुआ । इस राजनीतिज्ञों के सम्मेलन को
वियना कांग्रेस कहते है और उन्होंने जो
संधि-समझौता किया उसे वियना की संधि कहते है।
2. वैधता या न्याय का सिद्धांत -सन 1789 की क्रांति से पहले यूरोप में जो राजनीतिक स्थिति थी उसे पुनः स्थापित करना आवश्यक था। नेपोलियन ने कई जीते हुए राज्यों को पड़ोसी राज्यों में मिला कर उनके राजवंशों को समाप्त कर दिया था। वैधता के सिद्धांत मे सिंहासनाच्युत शासकों को उनके राज्य और अधिकार दुबारा उन्हें लौटा देना था।
(1) नेपोलियन ने जिस बहुत बड़ा फ्रांसीसी साम्राज्य और शक्तिशाली सेना का निर्माण किया था उसे कम कर दिया गया। फ्रांस की सेना कम कर दी गई जिससे फ्रांस द्वितीय स्तर की शक्ति बन गया।
(2) प्रशा को राइन क्षेत्र, सैक्सनी और स्वीडिश पामेरनिया के प्रदेश प्राप्त होने से प्रशा का प्रभाव और शक्ति जर्मनी में बढ़ गयी। जल्द ही प्रशा जर्मन राज्यों का रक्षा करनेवाला और नेता बन गया और जल्द ही उसके नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई।
(3) जर्मनी में 39 राज्यों के राइन संघ का अध्यक्ष आॅस्ट्रिया बन गया।
(4) रूस को तुर्की के कुछ प्रदेश और पूर्वी पोलैंड का प्रदेश तथा फिनलैंड मिले। जिससे उसके साम्राज्य की सीमाओं में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई। अब रूस यूरोप में प्रथम श्रेणी का राज्य बन गया। अब वह तुर्की के प्रदेशों को हड़पने और अपने प्रभुत्व में वृद्धि करने में अधिक रुचि लेने लगा।
(5) इटली में कई राज्य हो गये और उसकी शक्ति कम हो गई । वहां आॅस्ट्रिया का प्रभुत्व बढ़ गया। किन्तु वहां के सार्डिनिया राज्य को जैनेवा, पीडमांट और सेवाय के प्रदेश प्राप्त हुए। जल्द ही सेवाय के राजवंश के नेतृत्व में इटली के एकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई।
(6) वियना समझौते से इंग्लैंड को यूरोप के बाहर विस्तृत महत्वपूर्ण क्षेत्र मिले। इससे इंग्लैंड विश्व की सबसे बड़ी औपनिवेशिक शक्ति बन गया। अब ब्रिटेन की रूचि यूरोपीय महाद्वीप में कम और विश्व के दूसरे देशों और महाद्वीपों में अधिक हो गई ।
(7) वियना कांग्रेस ने यूरोप में शक्ति संतुलन बनाये रखने के लिए, यूरोप में स्थायी शांति बनाये रखने के लिए, यूरोपीय नदियों पर सभी देशों को व्यापार और जहाजरानी की सुविधा देने के लिये तथा संयुक्त यूरोपीय व्यवस्था के लिये प्रयास किये। इससे यूरोप में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और शांति की भावना बढ़ी।
(8) लगभग 23 वर्षों तक निरंतर युद्धों की भीषण आग में जलने के बाद सभी यूरोपीय देश शांति के इच्छुक थे। वियना कांग्रेस के निर्णयों से यूरोप में आगामी चालीस वर्षों तक शांति बनी रही।
वियना कांग्रेस के मुख्य उद्देश्य
- 23 वर्षों के लगातार युद्धों के बाद यूरोप में पूरी तरह और स्थायी शांति स्थापित करना।
- फ्रांस के चारों ओर ऐसे शक्तिशाली राज्यों का घेरा बनाना जिससे भविष्य में फ्रांस नई क्रांतिकारी विचारों के प्रभाव में आकर अन्य देशों पर पुनः आक्रमण करें तो शक्तिशाली देशों से घिरे होने पर वह ऐसा करने में असमर्थ हो जाये। इससे यूरोप की शांति व्यवस्था और संतुलन बना रहेगा।
- नेपोलियन ने कई राज्यों का अंत करके उनको पडौसी राज्यों में मिला दिया था। इन राज्यों और उनके राजवंशों को दुबारा स्थापित करना था।.
- यूरोप के देशों को स्वतंत्रता ,समानता, बंधुत्व और लोकतंत्रीय सिद्धांतों से जो क्रांति की देन थे, अछूता रखना।
- नेपोलियन का साथ देने वाले देशों को सजा देना।
वियना कांग्रेस के प्रमुख सिद्धांत
वियना कांग्रेस के राजनीतिज्ञों ने विभिन्न निराकरण के लिए अधोलिखित आधारभूत सिद्धांत निश्चित किए।1. शक्ति संतुलन का सिद्धांत - इस सिद्धांत के मे वियना कांग्रेस के राजनीतिज्ञ यह चाहते थे कि यूरोप में
कोई भी देश इतना अधिक शक्तिशाली नहीं हो जाए कि वह पड़ोसी देशों के लिए खतरा
बन जाए या उन पर आक्रमण कर यूरोप की शांति व्यवस्था भंग कर दे।
2. वैधता या न्याय का सिद्धांत -सन 1789 की क्रांति से पहले यूरोप में जो राजनीतिक स्थिति थी उसे पुनः स्थापित करना आवश्यक था। नेपोलियन ने कई जीते हुए राज्यों को पड़ोसी राज्यों में मिला कर उनके राजवंशों को समाप्त कर दिया था। वैधता के सिद्धांत मे सिंहासनाच्युत शासकों को उनके राज्य और अधिकार दुबारा उन्हें लौटा देना था।
3. क्षतिपूूिर्ति का सिद्धांत - फ्रांस विरोधी लंबे समय तक युद्धों में ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, रूस, प्रशा आदि देशों ने
धन-जन की बहुत क्षति उठाई थी। इस सिद्धांत मे जिन देशों ने मित्र
राष्ट्रों के विरूद्ध नेपोलियन का साथ दिया था, उनसे क्षतिपूर्ति के लिए धन प्राप्त करना था,
जिससे जिन देशों ने नेपेालियन से लंबे समय तक युद्ध करके उसे परास्त किया, उनकी
क्षतिपूर्ति की जाए।
वियना कांग्रेस की कार्यप्रणाली
मित्र राष्ट्र नेपोलियन को परास्त करने पर तो एकमत थे, किन्तु विभिन्न देशों के
पुर्नगठन में वे स्वार्थ प्रेरित थे, उनमें अत्यधिक मत भिन्नता थी। ऑस्ट्रिया, इटली को
हड़पना चाहता था, रूस के जार की आंखें पोलैंड को छीन लेने मे लगी हुई थी, प्रशा
सेक्सनी राज्य को लेना चाहता था और इंग्लैण्ड, युद्धों में जीते हुए फ्रांस के उपनिवेश किसी
भी स्थिति में लौटाने को तैयार नही था। इसी प्रकार छोटे-छोटे राज्यों के भी अपने-अपने
हित और स्वार्थ थे।
ऐसी स्वार्थपूर्ण परिस्थितियों में राजनीतिज्ञ किसी निर्दिष्ट कार्य प्रणाली के अनुसार
कार्य नहीं करते थे। वियना कांग्रेस का कोई निर्वाचित या निर्दिष्ट सभापति नहीं था,
कोई कार्य समिति नहीं थी, किसी कार्यक्रम की रूपरेखा नहीं थी। यद्यपि इस कांग्रेस में
यूरोप के विभिन्न देशों के दो सौ प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे, किन्तु उनमें सामूहिक रूप
से परस्पर कोई बैठक नहीं हुई थी, इसीलिए सामूहिक रूप से विचार-विनिमय और
निर्णय नहीं हो सके। छोटे-छोटे अनेक देशों के भाग्य का निर्णय बड़े देशों के
प्रतिनिधियों ने नृत्य, संगीत या भोजन के समय लिया। नाटकघरों में राज्यों की सीमाएं
निश्चित की गयीं। संगीत सभाओं में आनंद लेते हुए गंभीर प्रश्नों पर विचार किया गया।
इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रिया, रूस और प्रशा जैसे चार शक्तिशाली देशो ने ही संधि की शर्तो को
अंतिम रूप दिया। इन्हीें चार देशों ने गुप्त रूप से सभी प्रमुख निर्णय लिए और बाद में
इनकी सूचनाएं छोटे-छोटे देशों के प्रतिनिधियों को दे दी गयी। वास्तविकता यह है कि
30 मई 1814 को फ्रांस से की गई पेरिस की संधि के पूर्व ही इग्लैण्ड, आस्ट्रिया और प्रशा
ने चाउमौंट की गुप्त संधि द्वारा यूरोप के पुनर्निर्माण के निर्णय ले लिए थे। अब वे छोटे
देशों द्वारा इनकी स्वीकृति प्राप्त करना चाहते थे।
वियना कांग्रेस के अन्य कार्य
मानव कल्याण और अंतर्राष्ट्रीय हित के लिए वियना कांग्रेस ने अधोलिखित निर्णय लिए।
- अन्याय और अत्याचार, दास प्रथा यूरोप में प्रचलित थी। प्रस्ताव पारित कर वियना कांग्रेस ने दास प्रथा का विरोध किया। लेकिन इस निषेध को मानना या न मानना कई देशों की इच्छा पर छोड़ दिया गया।
- व्यापार के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानून, अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्य और व्यापार तथा जहाजों के आने-जाने के लिए यूरोप की कई बड़ी नदियाॅ जैसे राइन, एल्बा, नीमन सभी देशों के लिए खोल दी गईं ।
- यूरोप में स्थायी शांति बनाये रखने के लिए और राजनीतिक समस्याओं का शांति से उपाय करने के लिए परस्पर एक संधि की गई जिसने बाद में यूरोपीय संयुक्त व्यवस्था का रूप ले लिया।
वियना कांग्रेस का महत्व और परिणाम
वियना कांग्रेस का समझौता लगभग आगामी पचास वर्षों तक यूरोपीय राजनीति का आधार बना रहा। इसके परिणाम थे।
(1) नेपोलियन ने जिस बहुत बड़ा फ्रांसीसी साम्राज्य और शक्तिशाली सेना का निर्माण किया था उसे कम कर दिया गया। फ्रांस की सेना कम कर दी गई जिससे फ्रांस द्वितीय स्तर की शक्ति बन गया।
(2) प्रशा को राइन क्षेत्र, सैक्सनी और स्वीडिश पामेरनिया के प्रदेश प्राप्त होने से प्रशा का प्रभाव और शक्ति जर्मनी में बढ़ गयी। जल्द ही प्रशा जर्मन राज्यों का रक्षा करनेवाला और नेता बन गया और जल्द ही उसके नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई।
(3) जर्मनी में 39 राज्यों के राइन संघ का अध्यक्ष आॅस्ट्रिया बन गया।
(4) रूस को तुर्की के कुछ प्रदेश और पूर्वी पोलैंड का प्रदेश तथा फिनलैंड मिले। जिससे उसके साम्राज्य की सीमाओं में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई। अब रूस यूरोप में प्रथम श्रेणी का राज्य बन गया। अब वह तुर्की के प्रदेशों को हड़पने और अपने प्रभुत्व में वृद्धि करने में अधिक रुचि लेने लगा।
(5) इटली में कई राज्य हो गये और उसकी शक्ति कम हो गई । वहां आॅस्ट्रिया का प्रभुत्व बढ़ गया। किन्तु वहां के सार्डिनिया राज्य को जैनेवा, पीडमांट और सेवाय के प्रदेश प्राप्त हुए। जल्द ही सेवाय के राजवंश के नेतृत्व में इटली के एकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई।
(6) वियना समझौते से इंग्लैंड को यूरोप के बाहर विस्तृत महत्वपूर्ण क्षेत्र मिले। इससे इंग्लैंड विश्व की सबसे बड़ी औपनिवेशिक शक्ति बन गया। अब ब्रिटेन की रूचि यूरोपीय महाद्वीप में कम और विश्व के दूसरे देशों और महाद्वीपों में अधिक हो गई ।
(7) वियना कांग्रेस ने यूरोप में शक्ति संतुलन बनाये रखने के लिए, यूरोप में स्थायी शांति बनाये रखने के लिए, यूरोपीय नदियों पर सभी देशों को व्यापार और जहाजरानी की सुविधा देने के लिये तथा संयुक्त यूरोपीय व्यवस्था के लिये प्रयास किये। इससे यूरोप में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और शांति की भावना बढ़ी।
(8) लगभग 23 वर्षों तक निरंतर युद्धों की भीषण आग में जलने के बाद सभी यूरोपीय देश शांति के इच्छुक थे। वियना कांग्रेस के निर्णयों से यूरोप में आगामी चालीस वर्षों तक शांति बनी रही।