वे पदार्थ जो शरीर में ग्रहण किये जाने के पश्चात् उर्जा उत्पन्न करते हो, नये तन्तुओं का निमार्ण तथा पुराने (टूटे-फूटें) उत्तकों की मरम्मत करते हो, शारीरिक क्रियाओं पर नियन्त्रण तथा शरीर के लिये आवश्यक यौगिको के बनाने में
सहयोग करते है भोजन कहलाते है ।
भोजन का उद्देश्य भूख को शान्त करना या जिह्वा की परितृप्ति नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य शरीर पोषण के साथ-साथ मानसिक तथा आध्यात्मिक स्वास्थ्य में भी वृद्धि हो, क्योंकि शरीर, मन और आत्मा तीनों ही स्वास्थ्य के प्रमुख स्तम्भ हैं। जब तक तीनों स्वस्थ नहीं होंगे, तब तक पूर्ण स्वास्थ्य की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। भारतीय शास्त्रों में भोजन को तीन भागों में विभक्त किया गया है। सात्विक, राजसिक और तामसिक। जो शारीरिक मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से अच्छा स्वास्थ्य चाहते है उन्हें सात्विक आहार करना चाहिए। जिनका उद्देश्य शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार से स्वस्थ रखना हो तो राजसिक भोजन करें। आहार शुद्ध होने पर मन की शुद्धि होती है व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रहता है तथा एकाग्रता आती है। शरीर के लिए हितकर भोजन वह है जो शरीर को बल देने वाला हो, क्षय का निवारण करने वाला हो, उचित ताप पैदा करने वाला हो सुपाच्य हो तथा स्मरण शक्ति आयु, सत्व, साहस, दया, सहयोग आदि बढ़ाने वाला हो ।
एक व्यक्ति को प्रतिदिन स्वास्थ्यवर्धक भोजन चाहिए। हमें प्रतिदिन कैसा भोजन खाना चाहिए जिससे कि हम निरोग रहें। ऐसा भोजन उत्तम माना जाता है जो संतुलित हो, सुपाच्य हो, पोषण देने वाला हो तथा हमारे शरीर तथा मन को स्वस्थ रखने वाला हो।
भोजन करने के नियम
- भोजन लेने से पूर्व हाथ, पैर व मुंह साफ करें।
- निश्चित समय पर हल्का व ताजा भाजे न करना चाहिए।
- भोजन को अच्छी तरह से चबाना चाहिए।
- अरुचिकर भोजन न करें।
- भूख लगने पर ही भोजन करें।
- भोजन के साथ टमाटर, मूली, गाजर, फल आदि का प्रयोग करें।
- भोजन करते समय क्रोध, चिंता आदि न करें। सदैव प्रसन्नचित्त रहकर भोजन करें।
- भोजन के बीच में पानी का सेवन कम करें। भोजन करने के 1 घंटे बाद पानी पिएं ताकि पाचन में सहायता मिल सके।
- खुली वस्तुओं का सेवन न करें।
- बासी व बदबूदार पदार्थों का सेवन न करें।
- भोजन में अधिक मिर्च-मसालों का प्रयोग न करें।
- रात्रि का भोजन सोने से 2 घंटा पूर्व करें।
- भोजन के तुरंत बाद कठारे शारीरिक परिश्रम न करें।
- भोजन शरीर की आवश्यकता के अनुसार ही लें।
- व्यक्ति हमेशा ताजा बना हुआ गर्म भोजन ही ले। भोजन सही मात्रा में ले
- उचित स्थान पर बैठकर भोजन करना चाहिए,
- अतिशीघ्र तथा अति मन्द गति से भी भोजन नहीं करना चाहिए।
- बिना बातचीत किए बिना हंसी मजाक किए भोजन करना चाहिए तथा भोजन करते समय बीच-बीच में अल्प मात्रा में पानी पीना चाहिए।
2. उचित मात्रा में भोजन ले - उचित मात्रा में लिया हुआ भोजन दोषों की समता बनाए रखता है। भोजन आसानी से पचता है सही समय पर आंतों में गति करता है तथा दीर्घजीवी बनाता है।
4. भोजन तीव्र गति से नहीं करना चाहिए - भोजन तीव्र गति से नहीं करना चाहिए अन्न को धीरे-धीरे चबाकर उसी में मन लगाते हुए भोजन करना चाहिए। शीघ्र भोजन करने से एक तो भोजन के अच्छे स्वाद का ग्रहण नहीं हो पाता, भोजन लार से प्रथम पाचन से वंचित रहता है तथा भोजन का दांतों से पिसना नहीं हो पाता।
5. बहुत धीरे-धीरे भोजन न करें - बहुत धीरे-धीरे भोजन करने पर भी वह क्षुधा को शान्त नहीं कर पाता इससे भोजन शीत हो जाता है तथा अति मात्रा में भी खाया जा सकता है।
6. बिना बातचीत किए बिना हंसी मजाक किए भोजन करना चाहिए - यदि कोई व्यक्ति वार्तालाप करते हुए, हंसते हुए भोजन करता है तो इससे भोजन श्वास नली में फंसने का भय होता है तथा स्वाद का भी पता कम लगता है। भोजन लार से नहीं मिल पाता है। अतः खाये गये भोजन का उचित रूप में पाचन नहीं हो पाता है। अतः पूर्ण मनोयोग से प्रसन्न रहते हुए आहार ग्रहण करना चाहिए।
अपनी आत्मा के द्वारा यह विचार कर कि यह आहार द्रव्य मेरे लिए हितकर है तथा यह अहितकर, आहार की यह मात्रा उपयुक्त है तथा यह हीन या अत्यधिक है ऐसा विचार करके ही आहार करना चाहिए।
भोजन के कार्य
- शरीर का निर्माण करना।
- शरीर को ऊर्जा प्रदान करना।
- शारीरिक क्रियाओं को नियमित करना और रोगों से सुरक्षा करना।
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