गुणारोपण के सिद्धांत
गुणारोपण के अनेकों सिद्धांत हैं। गुणारोपण के कुछ सिद्धान्तों की संक्षिप्त विवेचना करेंगे।
(1) जाॅन्स व डैविस (1965) का सादृश्य अनुमान सिद्धांत
इस सिद्धान्त में हम दूसरों के व्यवहार के कुछ पहलुओं का अवलोकन करके उनके लक्षणों का अनुमान लगाने का प्रयास किया जाता हैं। इसमें दो प्रकार की क्रियाओं पर ध्यान देते हैं-
- पहला केवल उस व्यवहार पर विचार करते हैं, जो स्वतन्त्र रूप से चुना गया हो।
- दूसरा उन क्रियाओं पर सावधानीपूर्वक ध्यान देते हैं जो खास कारणों से (असमापवर्तक प्रभाव) उत्पन्न होती हैं।
पूर्वकथित दो क्रियाओं के अलावा एक और प्रकार की क्रिया पर ध्यान देने की बात जाॅन्स व डैविस करते हैं। जाॅन्स व डैविस का कहना है कि हम दूसरों की उन क्रियाओं पर भी अधिक ध्यान देते हैं जो सामाजिक वांछनीयता में कम होती है। कम सामाजिक वांछनीयता वाला व्यवहार उस व्यक्ति के लक्षणों के बारे में एक महत्वपूर्ण गाईड होता है। अपेक्षित व्यवहार से विचलित व्यवहार की तरफ ध्यान जाना स्वाभाविक है, इसलिए यदि कोई जैसा कि उससे अपेक्षित है से अलग तरह का व्यवहार करता है तो हम उसके शीलगुणों के आधार पर गुणारोपण पर अधिक ध्यान देते हैं।
(2) केली (1972) का कारणात्मक गुणारोपण सिद्धांत
केली के सिद्धान्त मे, ‘हम दूसरे के व्यवहार के लिए अधिकतर अंदरूनी कारणों को जिम्मेदार ठहराते हैं जिसमें एकता एवं भेदभाव कम होता है लेकिन संगतता अधिक होती है। इसके उलटा हम दूसरे के व्यवहार के लिए अधिकतर बाहरी कारणों, जिनमें तीनों- एकता, संगतता, भेदभाव- उच्च होते हैं, को जिम्मेदार ठहराते हैं। अन्त में, हम अक्सर दूसरे के व्यवहार के लिए अंदरूनी एवं बाहरी कारणों के मिलावट जिसमें सामंजस्य कम लेकिन संगतता एवं भेदभाव अधिक होता है, को भी उत्तरदायी ठहराते हैं।
केली का सिद्धान्त गुणारोपण की प्रकृति के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है क्योंकि इसमें बुनियादी अवधारणाओं की पुष्टि कई सामाजिक परिस्थितियों में की गयी है। उसने किसी के व्यवहार को समझने के लिए सूचना के तीनों स्रोतों सहमति , संगति तथा विशिष्टता से सम्बन्धित जानकारी पर जोर दिया है।
केली ने व्यवहार के ‘क्यों’ पक्ष की व्याख्या तीन कारकों-
- अंदरूनी,
- बाहरी एवं
- दोनों का संयोग,
उपरोक्त के आधार पर करते हुए उस परिस्थिति को भी स्पष्ट किया है जिसमें हम अंदरूनी या बाहरी या दोनों ही कारकों का प्रयोग करते हैं।
दो सिद्धान्तों के अलावा भी गुणारोपण के कई सिद्धान्त हैं जैसे शेवर (1975) का गुणारोपण सिद्धान्त, हिडर (1958) का सहज आरोपण सिद्धान्त, वेइनर (1993, 1995) का सिद्धान्त।