जीर्ण रोग किसे कहते हैं? जीर्ण रोग के कारण

जीर्ण का अर्थ होता है पुराना अर्थात जो रोग काफी पुराना हो जाता है अर्थात काफी दिनों से शरीर में रोग दबा रहता है जिसे ठीक होने में भी काफी समय लगता है, उसे जीर्ण रोग कहते हैं। जैसे- कब्ज, कैंसर, अग्निमांद्य, मधुमेह, रूसी, दुर्बलता, जोड़ों की विकृति, हड्डियों के रोग, हृत्शूल, धमनी काठिन्य, अश्मरी, अस्थिक्षय, आंत्रशोथ, मिरगी, गलगंड, पित्ताशय अश्मरी, आँत उतरना, अर्बुद, गुर्दे की पथरी, स्नायुशोथ, मोटापा, स्वप्नदोष, गुर्दे की पथरी व सूजन, स्नायु दौर्बल्य, हृदय की वसा, बवासरी, नपुंसकता, अनिद्रा, दाद, खुजली, आंतों का क्षय, सभी प्रकार की गांठें, जीर्ण फुफ्फुस शोथ, सूखा रोग, जन्मजात विकृति, कंठमाला, निद्राधिक्य, फेफड़ों के सभी रोग, राजयक्ष्मा, अस्थिगलन एवं गुर्दे की सूजन।

शरीर में जब जीवनीशक्ति का कमी हो जाती है रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तो जीर्ण रोग हो जाता है। जीर्ण रोगों में शरीर ऐसी तीव्र प्रतिक्रिया करने की स्थिति में नहीं रहता है।

अव्यवस्थित आहार के कारण शरीर में स्थित विजातीय द्रव्य जब शरीर में जमा होते रहता है और जीवनीशक्ति के द्वारा उसे तीव्र रोग जैसे ज्वरादि के माध्यम से निकलने से रोका जाता है दवा आदि खाकर उसे दबा दिया जाता है। इसके कारण विषों को निकाल फेंकने की शक्ति और योग्यता का हृास होता है। कभी कभी दर्द, ज्वर आदि इसके लक्षण हैं। ऐसी दशा में जब प्रकृति खुलकर योग्यतापूर्वक अपना काम नहीं कर पाती है तो हम उसे ‘मन्द रोग’ या ‘जीर्ण रोग’ कहते हैं।

जीर्ण रोग की परिभाषा

फेडरिक के शब्दों में, ‘‘रोग परमात्मा की एक आशीर्वादात्मक देन है, इसका स्वभाव ही रक्षा करना है। मैं जो यह कह रहा हूँ कि यदि रोग न होते तो मनुष्य जाति कभी की समाप्त हो गई होती। अपने विषय पर बहुत कम जोर डाल पा रहा हूँ।’’ रोगों के मित्र रूप को पहचानना चाहिए। वे प्रकृति की वह सूचना है जिन पर ध्यान देकर रोग को शत्रु समझकर उसे दबाने की कोशिश करने के बजाय हमें रोग के कारण को समझकर उसे दूर करने की कोशिश करना चाहिए।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के शब्दों में- ‘‘जब रोग की सूचना को ठीक ठीक नहीं समझा जाता, उसके कारण को दूर करने के बजाय उन्हें दबाया जाता है तो सूचना धीरे-धीरे धीमी एवं उसकी शक्ति मन्द पड़ जाती है। यहीं से जीर्ण रोग की जड़ें जमती हैं। 

जीर्ण रोग का कारण

अव्यवस्थित आहार अर्थात प्रकृति के नियमों का बार-बार उल्लंघन करने, तलु-भुने, विकृत खान-पान, गलत, बेमेल एवं विरूद्ध आहार, आहार में जैव खनिज लवणों, जीवन सत्वों की कमी, मानसिक तनाव, चिन्ता, अतिश्रम, रात्रि जागरण, अति उत्तेजना, विषाक्त औषधियाँ, नकारात्मक विध्वंसात्मक विचार, अपर्याप्त नींद एवं विश्राम, अति काम वासना, शल्य कर्म, अंग्रेजी औषधियों का विष, टाॅक्सिक अखाद्य पदार्थों के प्रयोग तथा शरीर द्वारा स्वतः रोगमुक्त होने की नैसर्गिक प्रक्रिया तीव्र रोगों को दबाने से शरीर के विभिन्न संस्थानों में विजातीय विषाक्त पदार्थ इकट्ठे होते हैं। विषाक्त विजातीय तत्व इकट्ठा होने से अस्थियों की संरचना में विकृति, मांसपेशियों तथा स्नायुबन्धों की कमजोरी, आत्मनियंत्रण की कमी, नकारात्मक चिंतन, स्नायुविक विकृति, मानसिक विकृति तथा मिरगी इत्यादि के लक्षण दिखते हैं जिससे शरीर में जीवनीशक्ति कमजोर हो जाती है।

शरीर के तीव्र रोगों के रूप में सफाई के प्रयत्न में ही बार-बार बाधा उपस्थित होने के फलस्वरूप ही जीर्ण रोग होते हैं। जुकाम को दवा के सहारे बार-बार दबाने से दमा हो सकता है, उसी तरह ज्वर को दबाते रहने से यक्ष्मा/टी.बी. होने की संभावना रहती है। तीव्र रोगों के लक्षणों को दबा देने से शुरू में सब कुछ ठीक-सा प्रतीत होता है पर शरीर के भीतर से निकलती हुई गंदगी शरीर में ही रूक जाती है और जीर्ण रोगों को जन्म देती है। 

तीव्र रोगों में कष्ट अधिक सहन करना पड़ता है लेकिन जीर्ण रोगों में तीव्र लक्षणों के न होते हुए भी जीवन अत्यन्त दुःखमय और नीरस बन जाता है। शरीर का रक्त जब तक शुद्ध एवं विकारहीन रहता है तो कोई रोग नहीं होता, पर जब रक्त की जीवनदायिनी शक्ति क्षीण हो जाती है एवं वह मलयुक्त हो जाता है तो अनेक रोग हो जाते हैं। रक्त में विकार तभी उत्पन्न होता है जब हमारे शरीर के विकार निकालने वाले अवयव मल, मूत्र, पसीना, श्वांस आदि द्वारा नित्य पैदा होने वाले विकार को पूर्णतया नहीं निकाल पाते। बचा हुआ विकार शरीर में रहकर रक्त को गन्दा करता है, फिर रोग, कष्ट, दुःख का आगमन होता है।

जीर्ण रोग के नाम 

जीर्ण रोग की नाम इस  प्रकार है:-
  1. मधुमेह - मानसिक हीनता
  2. दमा - उच्च रक्त चाप/निम्न रक्त चाप
  3. बवासीर - भगन्दर/नासूर
  4. कैंसर - प्रोस्टेट ग्रंथी का बढ़ना
  5. हाइपर एवं हाइपो थाईराईड
  6. गुर्दा रोग - हृदय रोग
  7. मिर्गी - एड्स (एच0आई0वी0)
  8. पार्किन्सन - सन्धि शोध
  9. हरनिया - कब्ज - असल्सर - आंत व अमाशय
  10. एनीमिया - मल्टीपल स्कलेरिसस
  11. अनियमित दिल की धड़कन
  12. पुराने फेफड़े के रोग - चिड़चिड़ापन - क्रोध
  13. ब्रोंकइटिस - वर्टिगों (गर्दन की हड्डी के कारण चक्कर आना)
  14. पथरी रोग (गुर्दे में) पित्ताशय पथरी
  15. नपुसंकता - चर्म रोग- सोराइसिस - एग्जिमा आदि
  16. अतिसार - संग्रहणी - पोलियो
  17. हीमोफिलिया - अंगो का विकृत या टेड़ा हो जाना इत्यादि ।
  18. गुर्दे तथा ओवरी सिस्ट
  19. शीघ्र सफेद बाल होना तथा शरीर पर सफेद दाग आदि ।
  20. अनिद्रा - एसीडिटी - हिसटिरिया
  21. माइग्रेन - याद दास्त कम होना - फोबिया

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