मुखाकृति विज्ञान क्या है ?

यह एक विज्ञान है जिससे शरीर की रोग अथवा अस्वस्थता का निदान किया जाता है। इसके द्वारा यह देखा जाता है कि शरीर में दोष संचय कितना है और कहा है या किस भाग में है। इस विज्ञान से यह भी पता चलता है कि शरीर के किस अंग में मल संचय अधिक है। इस विज्ञान कार्य वर्तमान रोग तथा मल संचल के बीच संबंध का परीक्षण करता है। मुखाकृति विज्ञान पूरे शरीर को एक इकाई मानता है और उसी रूप में उसकी कार्यात्मकता का परीक्षण करता है। इससे इस बात की भी जानकारी हो जाती है कि भविष्य में रोग किस स्तर तक पहुँच सकता है। यह भी ज्ञात होता है कि किसी सीमा तक रोगग्रस्त स्थिति को सामान्य स्थिति तक लाया जा सकता है। मुखाकृति शब्द का प्रयोग विस्तृत अर्थ में लिया गया है जिसके अंतर्गत न केवल चेहरे को सम्मिलित करते हैं बल्कि शरीर की पूरी आकृति का अध्ययन करते हैं। मुखाकृति विज्ञान शरीर में विषैले पदार्थों का संचय तथा शरीर तंत्र पर उसके प्रभाव का अध्ययन करता है।

कुने का विचार है कि शरीर से संबंधित सभी प्रकार की मनोवैज्ञानिक, सांवेगिक तथा शारीरिक प्रतिक्रियाएँ सबसे पहले चेहरे पर परिलक्षित होती हैं। इस प्रकार इस निदान की विधि द्वारा शरीर रचना, गति, भाव तथा सांवेगिक स्थिति का अध्ययन संभव होता है।

कुने का मानना है कि रोग शरीर के आकार को बदल देते हैं। उदाहरण के लिए, मोटापे की दशा में पेट बढ़ जाता है, हाथ पांवों पर मोटी तथा ढीली त्वचा होकर लटकने लगती है, जब वसा की कमी होती है तो शरीर दुबला-पतला होकर लम्बा दिखायी देता है। दांत जब गिर जाते हैं तो पूरा चेहरा बदल जाता है। गठिया होने पर गांठें पड़ जाते हैं। लेकिन कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनमें परिवर्तन कम दिखायी पड़ता है। केवल अनुभवी व्यक्ति ही आंखों को देखकर अनुभव कर सकता है।

सभी प्रकार की रोगग्रस्तता में शरीर में परिवर्तन विशेषकर सिर व गर्दन के भाग में होते हैं। कुने का मानना है कि रोगावस्था में चूंकि संपूर्ण शरीर प्रभावित होता है, अतः किसी भी अंग का परीक्षण करके स्वास्थ्य के विषय में जानकारी ली जा सकती है। सबसे महत्वपूर्ण शरीर का अंग पाचनतंत्र है जो स्वास्थ्य को स्पष्ट प्रदर्शित करता है।

मुखाकृति विज्ञान के आधार

मुखाकृति विज्ञान के आधार हैं-
  1. सभी रोगों का कारण एक ही है, शरीर में मल संचय। रोग किसी भी रूप में प्रकट हो सकता है।
  2. रोगों की उत्पत्ति शरीर में मल संचय के कारण होती है।
  3. मल पहले पेडू पर फिर उसके बाद चेहरे पर तथा गर्दन पर संचित होता है।
  4. शरीर में मल संचय के लक्षण देखे जा सकते हैं। शरीर की आकृति एवं लक्षणों में परिवर्तन आता है।
  5. प्रत्येक रोग की शुरूआत बुखार से होती है तथा बिना रोग के बुखार नहीं आता है।

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