परोपकार का अर्थ क्या है ?

परोपकार का अर्थ है दूसरों की भलाई करना। सच्चा परोपकारी वही व्यक्ति है जो प्रतिफल की भावना न रखते हुए परोपकार करता है गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है कि शुभ कर्म करने वालों का न यहां, न परलोक में विनाश होता है । शुभ कर्म करने वाला दुर्गति को प्राप्त नहीं होता है। कोई व्यक्ति जीविकोपार्जन के लिए अनेक उद्यम करते हुए यदि दूसरे व्यक्तियों और जीवधारियों की भलाई के लिए कुछ प्रयत्न करता है तो ऐसे प्रयत्न परोपकार की श्रेणी में आते है । मन, वचन और कर्म से परोपकार की भावना से कार्य करने वाले व्यक्ति संत की श्रेणी में आते हैं । ऐसे सत्पुरुष जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों पर उपकार करते है वे देवकोटि के अंतर्गत कहे जा सकते है । परोपकार ऐसा कृत्य है जिसके द्वारा शत्रु भी मित्र बन जाता है । यदि शत्रु पर विपत्ति के समय उपकार किया जाए तो वह भी उपकृत होकर सच्चा मित्र बन जाता है । भौतिक जगत का प्रत्येक पदार्थ ही नहीं, बल्कि पशु पक्षी भी मनुष्य के उपकार में सदैव लगे रहते है । यही नहीं सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, फल, फूल आदि मानव कल्याण में लगे रहते हैं । इनसे मानव को न केवल दूसरे मनुष्यों बल्कि पशु-पक्षियों के प्रति भी उपकार करने की प्रेरणा मिलती है । 

परोपकार का अर्थ

परोपकार शब्द ‘पर+उपकार’ इन दो शब्दों के योग से बना है । जिसका अर्थ है निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता करना । अपनी शरण में आए मित्र, शत्रु, कीट-पतंग, देशी-परदेशी, बालक-वृद्ध सभी के दुःखों का निवारण निष्काम भाव से करना परोपकार कहलाता है ।

प्रकृति का कण-कण हमें परोपकार की शिक्षा देता है - नदियाँ परोपकार के लिए बहती है, वृक्ष धूप में रहकर हमें छाया देता है, सूर्य की किरणों से सम्पूर्ण संसार प्रकाशित होता है । चन्द्रमा से शीतलता, समुद्र से वर्षा, पेड़ों से फल-फूल और सब्जियाँ, गायों से दूध, वायु से प्राण शक्ति मिलती है।

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