तीव्र रोग किसे कहते है ?

जब शरीर में या उसके किसी भाग में अधिक मल एकत्र हो जाता है तो उसका निष्कासन तीव्र रोगों के रूप में होने लगता है, जो कुछ ही दिन रहकर उस संचित मल को शरीर से निकालकर स्वतः ही चले जाते हैं। जिनकी जीवनीशक्ति प्रबल और अधिक होती है, उन्हें ही तीव्र रोग होता है। जिस रोग में तेजी हो, उसे तीव्र रोग कहेंगे। जैसे- हैजा, दस्त आदि। ये रोग जितनी तेजी से आते हैं, उचित उपचार से उतनी ही जल्दी चले भी जाते हैं। जिसकी जीवनीशक्ति कमजोर होती है उसे तीव्र रोग नहीं होता और विजातीय द्रव्य शरीर के अन्दर ही धीरे-धीरे जमा होकर जीर्ण रोग में परिवर्तित हो जाता है। तीव्र रोग होना रोगी के लिए एक शुभ संकेत है, वह मित्र बनकर आता है और सभी विजातीय द्रव्य को विभिन्न तीव्र रोगों, जैसे- हैजा, जुकाम, दस्त, वमन, बुखार, चेचक, फोड़ा-फुन्सी, दर्द एवं सूजन आदि के माध्यम से निकालकर शरीर को पूरी तरह स्वस्थ कर देता है।

तीव्र रोग की परिभाषा

डाॅ. राकेश जिन्दल के अनुसार- तीव्र का अर्थ है तेज। अतः जिस रोग में तेजी हो उसे तीव्र रोग कहेंगे। जैसे- हैजा, जुकाम, दस्त आदि।

डाॅ. नागेन्द्र कुमार नीरज के अनुसार- शरीर की जीवनीशक्ति प्रबल होने की स्थिति में विष तेजी से बाहर निकलता है। इस स्थिति को तीव्र रोग कहते हैं। अचानक ज्वर, दर्द, दस्त, तीव्र जुकाम, खाँसी, सर्दी, वमन, शीतपित्त, फोड़ा इत्यादि तीव्र लक्षण इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार- शरीर में एकत्रित विष आदि ज्वर, जुकाम या अन्य ढंगों से प्रकृति जीवन की रक्षा और शरीर की शुद्धि के लिए निकालने लगता है तो हम उसे तीव्र रोग कहते हैं। जैसे- ज्वर, दर्द, जुकाम, फोड़ा फुन्सी, वमन आदि तीव्र रोग के उदाहरण हैं।

तीव्र रोग की अवस्थाएँ

तीव्र रोगों की साधारणतः 5 अवस्थाएँ  हैं।

1. पूरे शरीर में या तो उसके किसी भाग में मल के भर जाने से उत्तेजना होती है। फिर मल में उद्रेक की क्रियाएँ धीरे-धीरे और कभी-कभी जल्दी-जल्दी भी होने लगती हैं जिनसे रोग अपना एक खास रूप धारण करता है। इस अवधि में रोग उत्पन्न करने में सहायक मल, विष अथवा रोगाणु आदि उत्पन्न होकर एकत्रित होते रहते हैं। 

2. इस अवस्था में कष्ट बढ़ जाता है। तनाव, सूजन, सुर्खी, ज्वर बढ़ जाते हैं और रोगी चारपाई पर पड़कर कमजोरी और पीड़ा का अनुभव करने लगता है।

3. इस अवस्था में घाव हो जाता है, मवाद और रक्त बहने लगता है जैसा कि फोड़ा होने की दशा में उत्पन्न होता है। पसीना, पेशाब से विष निकलने लगता है। सांस से दुर्गन्ध आने लगती है। दस्त होने लगते हैं। मल निष्कासन के इस प्रयत्न में शरीर के कुछ उपयोगी तत्त्वों का भी मल के साथ निकल जाना स्वाभाविक ही होता है जिससे दुर्बल
शरीर और भी अधिक शिथिल हो जाता है। मस्तिष्क काम नहीं करता, रोग की यही सबसे उग्र दशा है। 

जीवनीशक्ति इस अवस्था पर आकर हार गई या फेल हो गई हो तो रोगी का प्राणान्त तक हो जाता है और यदि जीवनीशक्ति प्रबल हुई तो संचित मल को निष्कासित करने में सफल होकर संकट की इस घड़ी को पार कर जाती है और रोगी को रोगमुक्त कर देती है।

तीव्र रोग के नाम

तीव्र रोग के नाम मुख्य रूप से है:-
  1. उल्टी - टाईफाइड - हैजा
  2. दस्त - चेचक - पेट दर्द, अफारा
  3. बुखार - फोड़ा-फुन्सी - पीलिया
  4. जुकाम - सूजन - सिर दर्द
  5. खांसी - मोच आना - आंख लाल होना
  6. नजला - चेचक निकलना - भूख न लगना
  7. किसी अंग में अचानक पीड़ा या दर्द - पेशाब में जलन
  8. नकसीर आना - लू लगना - नींद न आना
  9. हिचकी लगना - छाती में जलन
  10. पेशाब बन्द होना - प्यास अधिक लगना
  11. डेंगू बुखार - मलेरिया, प्लेग - मस्तिष्क का बुखार
  12. चिकन गुनिया - गला बैठना - टाॅसिंल मंे सूजन
  13. दांत में ठण्डा - गर्म लगना - मुंह के छाले
  14. कान में दर्द अथवा कान में फुन्सी आदि ।

Post a Comment

Previous Post Next Post