अल्बर्ट बंडूरा का सामाजिक संज्ञानात्मक का सिद्धांत

स्टैण्डफोर्ट के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अल्बर्ट बंडूरा अपने सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त जिस औपचारिक रूप से सामाजिक सीख का सिद्धान्त कहा जाता है, में दावा करते हैं कि मानव एक ज्ञानात्मक जीव है जिसकी सक्रिय सूचनात्मक प्रक्रिया उसके सीखने, व्यवहार तथा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बंडूरा कहते हैं कि मनुष्य के सीखने की प्रक्रिया चूहे के सीखने की प्रक्रिया से बहुत अलग होती है। क्योंकि मनुष्य में चूहें की तुलना में कही अधिक ज्ञानात्मक क्षमताएं होती है। सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त एक सीख संबंधी सिद्धान्त है जो इस धारणा पर आधारित है कि मनुष्य दूसरों को देखकर सीखता है तथा मनुष्य की वैचारिक प्रक्रिया व्यक्तित्व की समझ पर केन्द्रित है। यह सिद्धान्त व्यक्ति की नैतिक क्षमता वे नैतिक प्रदर्शन के मध्य अंतर पर जोर देता है।

‘मनुष्य दूसरों को देखकर सीखता है’ इस बात को अच्छी तरह समझाने के लिए बंडूरा ने एक प्रयोग किया जिसे ‘बोबो गुडि़या का व्यवहारः आक्रामकता का एक अध्ययन कहा जाता है। इस प्रयोगों में बंडूरा ने बच्चों के समूह को एक वीडियों दिखाया जिसमें उग्र व हिंसक क्रियाएं थी इस प्रयोग के माध्यम से बंडूरा ने निष्कर्ष निकाला कि जिन बच्चों ने वह हिंसक वीडियों देखा था उन्हें गुडियायें अधिक आक्रामक व हिसंक प्रतीत होती थीं बजाय उन बच्चों के जिन्होंने वह वीडियों नहीं देखा था। यह प्रयोग सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त को स्पष्ट करता है क्योंकि यह बताता है कि किस प्रकार मनुष्य मीडिया में देखी गई घटनाओं के प्रत्युत्तर में व्यवहार करता है। इस प्रयोग के संबंध में बच्चों ने हिंसा के प्रकार के प्रत्युत्तर में व्यवहार किया जिसे उन्होंने सीधे वीडियो देखकर सीखा था।

बैण्डुरा द्वारा प्रतिपादित सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धान्त निम्नांकित दो मुख्य प्रस्तावनाओं पर आधारित हैं:-
  1. अधिकतर मानव व्यवहार अर्जित होते है, अर्थात व्यक्ति उन्हें अपने जीवन-काल में सीखता है।
  2. मानव व्यवहार के सम्पोषण एवं विकास की व्याख्या करने के लिए सीखने का नियम पर्याप्त हैं।
बैण्डुरा के सिद्धान्त को औपचारिक रूप से सामाजिक-सीख का सिद्धान्त भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त में मानव स्वभाव के कुछ खास-खास पूर्वकल्पनाओं जैसे-विवेकपूर्णता, पर्यावरणीयता परिवर्तनशीलता तथा ज्ञेयता आदि पर अधिक बल डाला गया हैं बैण्डुरा का मत है कि व्यक्ति दूसरों के व्यवहारों का प्रेक्षण करके तथा उसे दोहराकर वैसा ही व्यवहार करना सीख लेता है। इस संबंध में बैण्डुरा राॅंस तथा राँस ने एक लेाकप्रिय प्रयोग किया है। इस प्रयोग में स्कूल के बच्चों को वयस्क द्वारा तीन से चार फीट की एक गुडि़या जिसे बोबो गुडि़या का नाम दिया गया था, को उछालते हुए मारते हुए एवं उसके प्रति आक्रामकता करते हुए दिखलाया गया। जब इन बच्चों को उसी गुडि़या के साथ अकेला छोड़ दिया गया तो देखा गया कि उनके द्वारा भी वैसा ही आक्रामक व्यवहार उस गुडि़या के प्रति दिखलाया गया। बाद के प्रयोगों में जब बच्चों के टेलीविजन पर ऐसे ही आक्रामक दृश्य दिखलाये गए तो उनका व्यवहार उन बच्चों की तुलना में अधिक आक्रामक हो गए जिन्हें ऐसे दृश्य टेलीविजन पर नहीं दिखलायें गए थे।

बैण्डुरा के सिद्धान्त में अन्योन्यनिर्धार्यता का संप्रत्यय एक काफी महत्वपूर्ण संप्रत्यय है। इसके माध्यम से बैण्डुरा यह स्पष्ट करना चाहते थे कि मानव व्यवहार संज्ञानात्मक, व्यवहारात्मक तथा पर्यावरणी निर्धारकों के बीच सतत अन्योन्य अन्तः क्रिया का एक प्रतिफल होता है। इस तरह क अन्योन्य अन्तः क्रिया की प्रक्रिया को बैण्डुरा ने अन्योन्य निर्धार्यता की संज्ञा दी है।

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