सार्वजनिक व्यय किसे कहते हैं सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण

सार्वजनिक व्यय से तात्पर्य सरकार द्वारा किया गया व्यय है। सार्वजनिक व्यय केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों व स्थानीय सरकारों द्वारा किया जाता है।

सार्वजनिक व्यय किसे कहते हैं

अपने कार्यों को पूरा करने के लिये सरकार जो धन-राशि व्यय करती है उसे सार्वजनिक व्यय कहते है। सार्वजनिक व्यय राजस्व का एक प्रमुख विभाग है।

सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण

लगभग प्रत्येक देश के सार्वजनिक व्यय में आश्चर्य-जनक वृद्धि हुई है। सार्वजनिक व्यय में इस वृद्धि का कारण यह है कि राज्यों के कार्यों में विस्तृत एवं गहन दोनों ही प्रकार की वृद्धि हुई है। विस्तृत वृद्धि से तात्पर्य यह है कि राजकीय कार्यों की संख्या पहले से अधिक हो गई है और कई गुना बढ़ गई है। गहन वृद्धि से अर्थ यह है कि पहले जो कार्य राज्य के मौलिक कार्य समझे जाते थे, उन्हें पहले की अपेक्षा अब अधिक व्यय की आवश्यकता अनुभव होने लगी है, फलस्वरूप यह कार्य गत वर्षों में बहुत खर्चीले हो गए हैं जैसे पहले की अपेक्षा अब युद्ध तथा सैनिक व्यवस्था पर अधिक व्यय होने लगा है, अधिक ट्रैफिक के कारण अब चैड़ी और मजबूत सड़क बनायी जाती है, आदि।

सरकारी व्यय के विस्तार का एक प्रमुख कारण जनसंख्या का बढ़ना है। देश की जनसंख्या के बढ़ने के साथ-साथ सरकार के कार्यों तथा उत्तरदायित्वों में वृद्धि होना भी स्वाभाविक है। सरकार को बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये और अधिक शिक्षा, चिकित्सा, नागरिक सुविधा, कृशि व औद्योगिक विकास तथा रोजगार की व्यवस्था का भार उठाना पड़ता है। आन्तरिक शान्ति के लिये पुलिस तथा न्याय-व्यवस्था का भी विस्तार करना होता है। बढ़ती हुई जनसंख्या विभिन्न प्रकार की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को भी जन्म देती है, जैसे अपराध, गरीबी ट्रैफिक की भीड़-भाड़ जिन्हे हल करने के लिए सरकार को भारी मात्रा में व्यय करना पड़ता है। इस प्रकार जनसंख्या में वृद्धि के कारण सार्वजनिक व्यय काफी बढा़ है।

कई देशों में, प्रमुखतः अर्धविकसित देशों में आर्थिक विकास के लिए वहाॅ की सरकारें आर्थिक साधनों का नियोजन करने लगी हैं जिससे कि उनका कार्यक्षेत्र वढ़ गया है और फलस्वरूप सार्वजनिक व्यय भी।

राज्यों के व्यय में भारी वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण युद्ध तथा उससे बचाव पर होने वाला व्यय रहा है। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही संसार में या तो कहीं न कहीं युद्ध चलता रहा है और या फिर शीतयुद्ध की स्थिति बनी रही है। पहले तथा दूसरे महायुद्ध काल में तो कई देशों ने बहुत अधिक धन-राशि युद्ध की मद पर व्यय की थी। संसार अभी तीसरे विश्व युद्ध से बचा हुआ है पर शीतयुद्ध जारी है और संसार के अनेकों देष काफी मात्रा में सैनिक व्यय कर रहें है। संसार के दो शक्तिशाली देश रूस तथा अमरीका तो बहुमूल्य विनाशक अस्त्रों शस्त्रों के निर्माण पर तथा बड़ी-बड़ी सेनाओं के रखने पर बहुत भारी मात्रा में व्यय कर रहे है।

इसके अलावा संसार में सीमित पर भीषण युद्ध होते रहते हैं जैसे कोरियन युद्ध, भारत-चीन युद्ध, वीयतनाम युद्ध, भारत-पाक युद्ध आदि। इस कारण संसार के यह देष भी सैनिक तथा सामरिक व्यवस्था पर काफी व्यय करते है, ताकि उन पर परस्पर विरोधी देष आक्रमण न कर दें। विश्व संघ की भावना के फलस्वरूप अन्तर्राश्ट्रीय संस्थाओ की भी स्थापना हुई हैं और उनका विस्तार होता रहा है, जैसे संयुक्त राष्ट्रसंघ, विश्व स्वास्थ्य संघ आदि। ये संस्थायें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रों के सार्वजनिक वित्त का कुछ भाग अवश्य ही व्यय करा देती है। उदाहरण के लिए अन्तर्राश्ट्रीय श्रम संगठन के प्रस्तावों व सिफारिशों के फलस्वरूप श्रमिकों को विभिन्न प्रकार की सुविधा प्रदान करने में सरकारों के व्यय में अवश्य ही वृद्धि हुई है। उपर्युक्त कारणों से विभिन्न देशों के सार्वजनिक व्यय में भारी वृद्धि हुई है। भविष्य में भी इन कारणों से सार्वजनिक व्यय में और अधिक वृद्धि होने की सम्भावना है।

सार्वजनक व्यय का महत्व

सार्वजनिक व्यय का राजस्व में उतना ही महत्व है, जितना कि उपभोग का अर्थशास्त्र में है। सार्वजनिक व्यय का महत्व इस बात में निहित है कि इसका देश की अर्थ-व्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सार्वजनिक व्यय समाज की प्रगति का सूचक होता है यदि वह देश से उत्पादन को बढ़ाने तथा वितरण में विषमताएं कम करने के लिए किया जाता है। इस व्यय से आर्थिक जीवन को प्रभावित किया जा सकता है। सार्वजनिक व्यय अब देश में आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए उपकरण के रूप के प्रयोग किया जाता है-
  1. शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सस्ते मकानों की व्यवस्था तथा मनोरंजन पर किया गया व्यय व्यक्तियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करता है।
  2. सार्वजनिक व्यय अल्प आय वाले व्यक्तियों की बचत करने की योग्यता को बढ़ाता है क्योंकि यह व्यय उनकी वास्तविक आय में वृद्धि करता है। 
  3. पेन्षन, प्रोविडेण्ट फण्ड आदि के रूप में सरकारी व्यय व्यक्ति के जीवन में सुरक्षा लाते है।
  4. सिचाई कृशि, उद्योग-धन्धों, विद्युत शक्ति, परिवहन के साधनों पर व्यय प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में वृद्धि करता है।
  5. प्रतिरक्षा पर व्यय अनुत्पादक होते हुए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आक्रमण के भय को कम करता है, तथा राष्ट्र की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
  6. निर्धन व्यक्तियों की भलाई के लिए किया गया व्यय देष में धन के वितरण में असमानताओं को कम करता है।
  7. कीन्स ने सिद्व किया, कि सरकार अपने व्यय द्वारा देष में मन्दी तथा बेरोजगारी को रोक सकती है। उन्होंने सुझाव दिया कि मन्दी की स्थिति को दूर करने के लिए सरकार द्वारा सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर व्यय को बढ़ा देना चाहिए। व्यक्तिगत व्यय की कमी को सरकारी व्यय से पूरा करना चाहिए जिससे निवेश तथा उपभोग बढ़ सके। सरकारी व्यय एक प्रकार से नागरिकों की आय है। सरकारी व्यय बढ़ने से नागरिकों की आय बढ़ती है, तथा वस्तुओं की माॅग बढ़ती है जो मन्दी दूर करने के लिए आवश्यक है।
  8. सार्वजनिक व्यय कम करके मुद्रास्फीति को रोका जा सकता है।
  9. अल्प-विकसित देशों में सार्वजनिक व्यय से विकास की गति तेज की जा सकती है। शिक्षा, विद्युत शक्ति, परिवहन तथा संचार साधनों पर किया गया व्यय देष के आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है।

निजी व्यय तथा सार्वजनिक व्यय में अन्तर

निजी व्यय एवं सार्वजनिक व्यय, दोनों में ही आय तथा व्यय के बीच सामंजस्य स्थापित किया जाता है, इन दोनों में कुछ उल्लेखनीय अन्तर हैः- 

1. निजी व्यय आय के अनुसार किया जाता है। इस प्रकार हरेक व्यक्ति पहले अपनी आय का अनुमान करता है तथा उसके आधार पर व्यय की योजना बनाता है। परन्तु सार्वजनिक व्यय में पहले व्यय का अनुमान लगाया जाता है और तत्पश्चात उस व्यय की पूर्ति के लिये साधनों की खोज की जाती है 

2. निजी व्यय का उद्देश्य प्रायः निजी लाभ व व्यक्तिगत कल्याण होता है। हरेक व्यक्ति सर्वदा ऐसे मदों पर व्यय करता है, जिससे उसे स्वयं अथवा उसके परिवार के सदस्यों को लाभ प्राप्त हो। परन्तु सार्वजनिक व्यय समाज के हित की दृष्टि से किया जाता है, निजी उद्देश्यों से प्रेरित होकर नहीं। इस प्रकार सार्वजनिक व्यय का उद्देश्य सामाजिक कल्याण होता है। 

3. निजी व्यय का क्षेत्र सीमित होता है, क्योंकि व्यक्ति की क्रियायें सीमित होती है। दूसरी ओर, सार्वजनिक व्यय का क्षेत्र विस्तृत होता है क्योंकि सरकार का कार्यक्षेत्र काफी विस्तृत है। 

4. निजी व्यय पर प्रायः व्यक्ति का अपना ही नियन्त्रण रहता है। परन्तु सार्वजनिक व्यय पर संसद तथा महा लेखा परीक्षक एवं नियन्त्रक का पूर्ण होता है। 

5. निजी व्यय यदि सावधानी के साथ नहीं किया गया, तो उसका प्रभाव व्यक्ति विषेश पर पड़ता है, लेकिन सार्वजनिक व्यय का प्रभाव सारे समाज तथा देष के आर्थिक जीवन पर पड़ता है, क्योंकि शासन को हानि की पूर्ति के लिये नये कर लगाने पड़तें है जिनका भार जनता पर पड़ता है।

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