स्कन्ध विपणि क्या है इसके कार्यों का वर्णन?

किसी भी देश की स्कन्ध विपणि उस देश के पूंजी बाजार का आधार होती है जैसा कि इसके नाम से ज्ञात है स्कन्ध विपणि में स्टाॅक का क्रय विक्रय होती है अन्य शब्दों में स्कन्ध विपणि से आशय ऐसे स्थायी एवं संगठित बाजार से है जहां सूचीबद्ध संयुक्त पूंजी वाली कंपनियों के कई प्रकार के अंशों, ऋण पत्रों, सरकारी प्रतिभूतियों वं अन्य सार्वजनिक संस्थाओं की प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय किया जाता है।

स्कन्ध विपणि की प्रमुख परिभाषा

स्कन्ध विपणि की प्रमुख परिभाषा है-

प्रतिभूति अनुबन्ध अधिनियम 1956 - “स्कन्ध विपणि का आशय व्यक्तियों के एक ऐसे संगठन या संस्था से है, चाहे वह समामेलित हो या न हो, जिसकी स्थापना प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय और लेन-देन में सहायता, नियमन तथा नियन्त्रण करने के उद्देश्य से की गई हो।“-

हार्टले  - स्कन्ध विपणि एक बड़े गोदाम की तरह है, जहाँ पर कई प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।

पायल - “प्रतिभूति विनिमय बाजार वह स्थान है जहाँ सूचीबद्ध प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय विनियोजन अथवा सटटे के लिए किया जाता है।“ 

प्रो0 हेने - “स्कन्ध विपणि दलालों का एक संघ है, जिसका संगठन सरकारी एवं व्यावसायिक इकाइयों की प्रतिभूतियों की नियमित एवं सुगम बाजार प्रदान करने के लिए किया जाता है।“ 

उपरोक्त परिभाषाओं के विवेचन से स्पष्ट है कि स्कन्ध बाजार एक संगठित बाजार है जिसमें सूचीबद्ध प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय अधिकृत सदस्यों द्वारा निर्धारित नियमों के अन्तर्गत किया जाता है।

स्कन्ध विपणि के प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण 

स्कन्ध विपणि की प्रमुख विशेषतायें या लक्षण है-
  1. स्कन्ध विपणि संगठित पूंजी बाजार हैं जहाँ से उद्योगों, निगमों को पूंजी प्राप्त होती है।
  2. स्कन्ध विपणि में अंश, ऋणपत्र, बन्धकपत्र आदि का क्रय-विक्रय होता है जिनको सार्वजनिक कम्पनियां ट्रस्ट, केन्द्र सरकार व राज्य सरकार नियमित करती है।
  3. स्कन्ध विपणि में सभी व्यवहार उसके सदस्यों द्वारा या विनियोगकर्ता की ओर से या उनके लिए किये जाते हैं।
  4. इसमें किये जाने वाले सभी व्यवहार बनाये गये नियमों व उपनियमों के अनुकूल ही होते हैं।
  5. स्कन्ध विपणि में केवल उन्हीं प्रतिभूतियों में व्यवहार होता है जो सूचीबद्ध होती है।
  6. स्कन्ध विपणि का समामेलन अनिवार्य है अर्थात स्कन्ध विपणि समामेंलित हो भी हो सकती है और न भी।
  7. स्कन्ध विपणि में प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय, पंजीकृत दलालों, उपदलालों के द्वारा ही किया जाता है।
  8. स्कन्ध विपणि का सदस्य व्यक्ति ही बन सकता है फर्म या कम्पनी नहीं।
  9. इसमें प्रतिभूतियों का व्यवहार नकद या वायदे के आधार किया जाता है।
  10. इसमें प्रतिभूतियो का क्रय-विक्रय राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किय जाता है।

स्कन्ध विपणि के कार्य

स्कन्ध विपणि के कार्यों को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निम्न दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

1. स्कन्ध विपणि के आर्थिक कार्यों का वर्णन इन शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-

1. नियमित बाजार प्रदान करना- स्कन्ध विनिमय विपणि एक ऐसा केन्द्र है जहाँ प्रतिभूतियों के क्रेता एवं विक्रेता आपस में मिलते हैं तथा व्यवहार करते हैं। इस प्रकार स्कन्ध विपणि विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय के लिये एक निरन्तर बाजार प्रदान करती है।

2. प्रतिभूतियों का मूल्य निर्धारित करना- संगठित स्कन्ध विपणि प्रतिभूतियों की माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के पारस्परिक टकराव को सम्भव बनाकर उनका वास्तविक मूल्य निर्धारित करती हैं जिससे निवेशकों को प्रतिदिन अपने निवेशों का विक्रय मूल्य ज्ञात हो सकता हैं। 

3. पूंजी निर्माण- स्कन्ध विपणि में प्रतिभूतियों का हस्तान्तरण सुविधाजनक होने के कारण बचत को प्रोत्साहन मिलता है। इससे पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है जो तीव्र औद्योगिक विकास के लिये अत्यन्त आवश्यक है। इसीलिए स्कन्ध बाजार को “पूँजी का दुर्ग“ कहा जाता है।

4. बचतों का उचित प्रवाह- स्कन्ध विपणि बचतों को सबसे लाभप्रद दिशाओं में प्रवाहित करने का महत्वपूर्ण कार्य भी अप्रत्यक्ष रूप से करती है। स्कन्ध विपणि में प्रतिभूतियाँ उसके अंकित मूल्य से अधिक मूल्य पर बिकती हैं जो कम्पनी की लाभदायकता व कुशल संचालन की द्योतक होती हैं। अतः स्कन्ध विपणि नये स्थापित उद्योगों को पूंजी तथा पुराने उद्योगों के नवीनीकरण, विस्तार व विकास के लिए पर्याप्त पूंजी उपलब्ध करवाने का मार्ग है। विनियोजक अपना धन उन कम्पनियों की प्रतिभूतियों में लगाता है जहाँ धन की सुरक्षा के साथ-साथ उचित प्रतिफल मिले।

5.  लेन- देनों में सुरक्षा- स्कन्ध बाजार में सभी लेन-देन निर्धारित नियमों के अनुसार किया जाते हैं। इससे विनियोजकों के हितों की रक्षा होती है और दलाल उनका शोषण नहीं कर सकते।

6. नई प्रतिभूतियों के विक्रय के लिये व्यापक बाजार- देश के विभिन्न भागों में स्थापित स्कन्ध विपणि में अपनी प्रतिभूतियों का सूचीयन कराने से नई कम्पनियों को अपनी प्रतिभूतियों के लिये एक व्यापक बाजार मिल जाता है। इसके अतिरिक्त स्कन्ध विपणि द्वारा प्रतिभूतियों का दैनिक मूल्य समाचारों में प्रकाशित करने से विनियोजकों की रूचि बढ़ती है। इससे प्रतिभूतियों की माँग में वृद्धि होती है।

7.  परिकाल्पनिक व्यवहारों को प्रोत्साहित करना- स्कन्ध विपणियाँ प्रतिभूतियों में परिकल्पना तथा सट्ठे को प्रोत्साहित करती है। नियमित ढंग से किया जाने वाला सट्ठा माँग व पूर्ति को नियमित कर मूल्यों को सन्तुलित बनाये रखने में सहायक होता है।

8. मूल्यों में स्थिरता- स्कन्ध विपणि में बड़ी मात्रा में क्रय-विक्रय होता है तथा उनके मूल्यों का निर्धारण माँग-पूर्ति की शक्तियों द्वारा स्वतन्त्र रूप से होता है जिससे मूल्यों में एक दम उतार चढ़ाव नहीं होते और स्कन्ध विपणि प्रतिभूतियों के मूल्यों में सन्तुलन बनाये रखती है।

9. सूचियन द्वारा प्रतिभूतियों को दृढ़ता प्रदान करना- स्कन्ध विपणि पर केवल उन्हीं प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय होता है जिनका कि सूचीयन हो चुका है। प्रतिभूतियों का सूचीयन उनकी दृढ़ता व उत्तमता का प्रतीक होता है क्योंकि स्कन्ध विपणियाँ केवल उन्हीं कम्पनियों के अंश ऋणपत्रों का सूचीयन करती है जिनकी आर्थिक
स्थिति सुदृढ़ होती है।

10.  पूँजी की गतिशीलता- स्कन्ध विपणियाँ प्रतिभूतियों के व्यवहारों का सुव्यवस्थित तैयार एवं सतत बाजार है। जहाँ प्रतिभूतियों का लेन-देन निरन्तर चलता रहता है, जिसके फलस्वरूप प्रतिभूतियाँ गतिमान रहती है और उनमें विपणनशीलता का गुण सरलता से उत्पन्न हो जाते हैं।

11. व्यवसायिक सूचनाओं का समाशोधन गृह- स्कन्ध विपणियाँ व्यावसायिक सूचनाओं के समाशोधन गृह के रूप में भी कार्य करती है। कम्पनिया अपने वित्तीय विवरणों, वार्षिक प्रतिवेदनों और अन्य आवश्यक सूचनाओं को स्कन्ध विपणियों पर भेजती है जिससे कम्पनियों के कार्य संचालन के सम्बन्ध में व्यापक समंकों का संकलन सम्भव हो जाता है।

12. अन्य कार्य- स्कन्ध विपणि के अन्य कार्य हैं-
  1. प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय एवं मूल्य के सम्बन्ध में नियमित रिपोर्ट प्रकाशित करना।
  2. अनूसूचित कम्पनियों की आर्थिक स्थिति एवं अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं को वार्षिक पुस्तिका में प्रकाशित करना।
  3. कपट पूर्ण व्यवहारों के विरूद्ध सुरक्षा प्रदान करना
  4. सूचीयन के नियमों द्वारा कम्पनी प्रबन्ध एवं निष्पादन को नियमित करना।

भारत में विनिमय विपणियों का विकास

भारत में स्टाॅक एक्सचेंज का प्रादुर्भाव अठारहवीं शताब्दी की अन्तिम अवधि में पाया जा सकता है जब ऋण- प्रपत्र तथा ईस्ट इन्डिया कम्पनी के अंशों में सीमित व्यवहार होता था। मुम्बई के स्थानीय दलालों ने 1875 में Native Shares and Stock Brokers Association के रूप में सर्वप्रथम एक संगठित स्टाॅक एक्सचेंज
की स्थापना की थी जिसे आजकल Bombay Stock Exchange के रूप में जाना जाता है। दूसरा स्टाॅक एक्सचेंज 1894 में Ahmedabad Shares and Stock Brokers Association के रूप में अवतरति हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कुछ नए स्टाॅक एक्सचेंज दिल्ली, हैदराबाद, बंगलौर एवं इन्दौर में स्थापित हुए। इन स्टाॅक एक्सचेंजों पर नियमन एवं नियन्त्रण के लिए स्वतन्त्रता के बाद Securities Contracts (Regulation) Act 1956 में लागू हुआ। आजकल भारत में कुल 23 स्टाॅक एक्सचेंज हैं जिनके अन्तर्गत प्रतिभूति बाजार के विभिन्न क्षेत्रों ( लिस्टेड कम्पनियों की संख्या, उसकी नेटवर्थ, अंशधारियों की संख्या, मध्यस्थों की संख्या तथा मार्केट कैपटिलाइजेशन )में अत्यधिक वृद्धि हुई है और इन एक्सचेंजों की कायापलट ही हो गई है।

भारत में स्टाॅक एक्सचेंज का उदय एक “अलाभकारी व्यक्तियों के समूह“ के रूप में कम्पनी अधिनियम की धारा 25 के अन्तर्गत हुआ है। ये संचालन की दृष्टि से म्यूचुअल (Mutual) के रूप में और स्वयं संचालित प्रबन्ध व्यवस्था के
अन्तर्गत अपने सदस्यों को ही “स्वामित्व“, “प्रबन्ध“ एवं “ब्रोकिंग“ में सहभागी बनाते हैं।

विभिन्न एक्सचेजों का संगठन स्वरूप पृथक-पृथक है। जहां एक ओर 14 एक्सचेंज पब्लिक कम्पनी के रूप में निगमित हैं वहीं 6 स्टाॅक एक्सचेंज प्राइवेट कम्पनी के रूप में और शेष 3 स्टाॅक एक्सचेंज अलाभकारी संस्था के रूप में हैं । सभी स्टाॅक एक्सचेजों का संगठन गवर्निंग बाॅडी द्वारा संचालित होता है। जिसमें चुने हुए ब्रोकर डायरेक्टर्स एवं नामांकित जनप्रतिनिधि, सरकार एवं SEBI प्रतिनिधि शामिल होते हैं। स्टाॅक एक्सचेजों के संगठन स्वरूप को Corporatisation अथवा Demutualisation द्वारा एक नया रूप दिया जा रहा है।

स्कन्ध विपणि के प्रमुख विभाग

स्टाॅक एक्सचेंज की गवर्निंग बाॅडी में लिए गए निर्णयों को कार्यकारी निदेंशक एवं सचिव द्वारा स्टाॅक एक्सचेंज के विभिन्न विभागों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। ये विभाग भी आपस में समन्वय द्वारा सदस्यों एवं निवेशक जनता की सेवा में सक्रिय रहते हैं। स्टाॅक एक्सचेंज के कुछ प्रमुख विभाग हैंः-

1. लिस्टिंग विभाग- लिस्टिंग के लिए प्राप्त प्रस्तावों का इस विभाग द्वारा निरीक्षण एवं अनुसन्धान किया जाता है कि प्रस्ताव नियमानुकूल एवं SEBI के मार्गदर्शन के अनुरूप हैं या नहीं।

2.  आपरेशन विभाग- यह विभाग स्टाॅक एक्सचेंज में किए जाने वाले सौदों पर निगरानी एवं रिकार्ड रखने का कार्य करता है।

3. निरीक्षण एवं अंकेक्षण विभाग- विभाग यह सुनिश्चित करता है कि स्टाॅक एक्सचेंज द्वारा रखे गये सभी रिकार्ड सही तथा नियामानुकूल है। इसके लिए आन्तरिक निरीक्षण एवं दृढ़ अंकेक्षण पद्धति लागू की जाती है।

4. कम्पयूटर एवं इडीपी विभाग- टर्नओवर, भाव/कुटेशन, वित्तीय परिणाम एवं अन्य सम्बन्धित सूचनाओं का एकत्रीकरण्ण एवं श्रेणीयन कम्प्यूटरजनित पद्धति द्वारा रखा जाता है।

5. मानीटरिंग विभाग- ट्रेडिंग रिंग में की जाने वाली ब्रोकर्स/सदस्यों की कार्यवाही पर यह विभाग निगाह रखता है। इसके अन्तर्गत मूल्यान्तर एवं टर्नओवर, किन्हीं विशेष प्रतिभूतियों में केन्द्रीकरण, अत्यधिक ट्रेडिंग, सट्टेबाजी, मूल्यों में बनावटी उठान, इनसाइडर ट्रेडिंग जैसी क्रियाएं आती है।

6. निवेशक सेवा विभाग- यह विभाग निवेशक के हित-संरक्षण सेवाओं का विस्तार एवं उनकी शिकायत निवारण सम्बन्धी सेवा प्रदान करता है। निवेशक की सौदे, ब्रोकर्स एवं लिस्टेड कम्पनी की कमियों सम्बन्धी शिकायतों के निवारण सम्बन्धी महत्वपूर्ण कार्य करता है। भविष्य में उनकी पुनरावृत्ति को रोकने का प्रयत्न करता है।

इन प्रमुख विभागों के अतिरिक्त स्टाॅक एक्सचेंज में अन्य विभाग जैसे प्रकाशन विभाग, पुस्तकालय एवं शोध, सेटिलमेंट, कुटेशन तथा जनसम्पर्क जैसे विभाग भी कार्यरत होते हैं।

स्कन्ध विपणि के दोष

इसके कुछ दोष भी है। जो  हैंः-
  1. स्कन्ध विपणियाँ अनावश्यक सट्टेबाजी को प्रोत्साहन देती है। उन सटोरियों के लिये जिन्होने इनके द्वारा धन एकत्रित कर लिया है यह “यह जादू का पिटारा“ है। परन्तु उनके लिये जिनको इनसे अपार हानि हुई है “नरकीय पीड़ा के समान“ है।
  2. सट्टेबाजी तथा अन्य आर्थिक एवं राजनीतिक कारणों से प्रतिभूतियों के मूल्यों में भारी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, जिससे उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं दोनों को हानि होती है तथा देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  3. स्कन्ध विपणियों से सभी लोग लाभ नहीं उठा सकते। नये व अनुभवहीन व्यक्तियों को इससे प्रवेश करने पर लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ती है।
  4. देश की सभी स्कन्ध विनिमय में अंशों के लेन-देन को पूरा करने के लिए निपटारा प्रणाली एकरूप् नहीं है। इससे सट्टेबाजी को प्रोत्साहन मिलता है।
  5. बदला या आगे ले जाने वाली प्रााली अनुचित व अस्वास्थ्यपूर्ण है। यह ऊँचे स्तर के सट्टा के लिए शक्तिशाली कारक है। यह सही निवेशकर्ताओं को कोई सहायता नहीं करता है।
  6. भारतीय स्कन्ध विनिमय में व्यापारिक क्रिया केवल दलालों को लाभ पहुँचाने के लिए की जाती है और निवेशकर्ताओं की रूचियों की अवहेलना की जाती है। निवेशकर्ताओं की शिकायतों पर तुरन्त प्रभाव पूर्ण समाधान नहीं किया जाता है।
  7. स्कन्ध का प्रबन्ध विनिमय का प्रबन्ध, संगठन तथा संरचना बहुत कमजोर है। इसका प्रबन्ध केबल सदस्य दलालों के लाभ के लिए किया जाता है।

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