1956 की औद्योगिक नीति का उद्देश्य क्या है?

सन् 1956 की औद्योगिक नीति औद्योगिक नीति 1956 के समय के साथ-साथ 1948 की औद्योगिक नीति में परिवर्तन की जरूरत महसूस की जाने लगी। समाजवादी समाज के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए 30 अप्रैल 1956 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दूसरी औद्योगिक नीति का प्रस्ताव संसद में रखा। 

1956 की औद्योगिक नीति के उद्देश्य

1956 की औद्योगिक नीति के मुख्य उद्देश्य निम्न है।
  1. औद्योगिकीकरण द्वारा तीव्र आर्थिक विकास। 
  2. समाजवादी समाज की स्थापना। 
  3. भारी निर्माण उद्योगों की विकास। 
  4. आय का सम्पति की असमानता को कम करना। 
  5. ग्रामीण तथा लघु उद्योगों को प्रोत्साहन। 
  6. निजी एकाधिकार तथा केन्द्रीकरण को हतोसाहित करना। 
  7. सार्वजनिक क्षेत्रों का विकास तथा विस्तार।
सरकार ने 1956 की औद्योगिक नीति में उद्योगों को पुनः विभाजित किया। इसमें सार्वजनिक क्षेत्रो के विस्तार को बढ़ावा दिया गया। उसमें भी सरकार ने उद्योगों को तीन वर्गो में विभाजित किया और साथ ही उद्योगो के राष्ट्रीयकरण का अधिकार भी अपने पास सुरक्षित रखा। इसमें सरकार ने निम्न तीन क्षेत्र बनाये।

1) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग- सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में 17 उद्योगो को सम्मिलित किया गया। इसका प्रबन्ध तथा संचालन सरकार ने अपने हाथ में रखा। इस वर्ग में अस्त्र शास्त्र, परमाणु शक्ति, लोहा, इस्पात, वायु तथा रेल परिवहन विद्युत उपकरण आदि सम्मिलित किये गये।

2) मिश्रित क्षेत्र के उद्योग- मिश्रित वर्ग के उद्योगों के 12 उद्योगों को सम्मिलित किया गया। उसमें सरकार ने यह व्यवस्था रखी कि इस वर्ग में सम्मिलित उद्योगों की स्थापना सरकार द्वारा तय की जायेगी और निजी क्षेत्र में उद्योग को लगाने में सरकार को सहायता करेगे। इस वर्ग में लौह मिश्रित धातु उद्योग, उर्वरक, सड़क तथा जल परिवहन, कीटाणुनाशक दवा, रसायन उद्योग को सम्मिलित किया गया।

3) निजी क्षेत्र के उद्योग- शेष सभी उद्योगों को निजी क्षेत्र में रखा गया निजी उद्यमी इन उद्योगो का निर्माण संचालन तथा नियंत्रण स्वयं कर सकेगे यह व्यवस्था की गयी 1956 की औद्योगिक नीति में सरकार ने यह व्यवस्था रखी कि वह नियोजित विकास की आवश्यकता के अनुरूप किसी भी क्षेत्र के उद्योगों में हस्तक्षेप कर सकती है और निजी उद्यमियों के लिए नये उद्योगों की स्थापना के लिए अवसर प्रदान कर सकती है।

4) लघु एवं कुटीर उद्योग- सरकार ने लघु एवं कुटीर उद्योगो से समाज को होने वाले लाभों को समझ लिया था जिसमें मुख्यतः रोजगार, धन तथा सम्पत्ति का समान वितरण तथा प्राकृतिक संसाधनों का उचित विदोहन है। इनमें समाज सामाजिक असमानता में भी कमी आती है। इसलिए सरकार ने लघु एवं कुटीर उद्योग को संरक्षण देने में विचार किया।

5) विदेशी पूँजी- औद्योगिक नीति में विदेशी पूंजी की महता को स्वीकार करते हुए औद्योगीकरण में विदेशी पूंजी को महत्व दिया गया। इसमें भी विदेशी पूंजी के भारतीयकरण तथा भारतीय विशेषज्ञों के विकास के लिए भी नियम बनाये गये।

6) पिछड़े क्षेत्रों का विकास- इस नीति में सरकार ने सभी क्षेत्रों के सुसजित विकास को स्वीकार किया तथा पिछड़े क्षेत्रो में औद्योगिकीकरण के लिए नियम बनाये तथा इन क्षेत्रों में उद्योगपति उद्योग लगा सके । इसके लिए मूलभूत सुविधाओं जैसे बिजली, पानी, सड़क आदि की व्यवस्था के प्रावधान किये गये।

7) निजी क्षेत्रों पर नियंत्रण- सरकार निजी क्षेत्र के विकास के लिए नियम बनाने के साथ सुविधाएं भी प्रदान करती है। लेकिन इसके साथ ही निजी क्षेत्र के उत्पादकता तथा उसके कार्यकलापों पर भी सरकार पूर्ण नियंत्रण करती हैं।

8) आधुनिक तकनीक- इस औद्योगिक नीति में सरकार ने वृहद तथा लघु उद्योगों के लिए तकनीकी सुविधाओं का विकास पर जोर दिया । इसके लिए भी तकनीकी लैव तक अनुसंधान के लिए अलग से व्यवस्था की गयी । साथ ही इंजीनयरिंग शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, प्रबन्धशिक्षा के प्रशिक्षण को महत्व दिया गया।

9) श्रम सम्बन्धो का निर्धारण- उद्योगो में औद्योगिक अशन्ति न हो तथा हड़ताल व तालाबन्दी की स्थिति न बन पाये इसके लिए भी नियम बनाये गये और श्रमिको की प्रबन्ध में भागीदारी को सुनिश्चित करने की व्यवस्था की गयी।

1956 की औद्योगिक नीति में प्रथम औद्योगिक नीति की बहुत सी कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया । लेकिन इस नीति में भी औद्योगिक विकास के साथ ही कुछ कमियाँ भी उजागार हुई। इसमें सिर्फ बड़े तथा भारी उद्योगों को ही प्राथमिकता दी गयी। लघु और कुटीर उद्योगो की तरह ध्यान नही दिया गया जो कि रोजगार तथा सामाजिक असमानता को कम करने में कारगार सिद्ध हो सकते है। लेकिन फिर भी 1956 की औद्योगिक नीति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हुई है।

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