आवश्यकता किसे कहते हैं आवश्यकता की विशेषताएं

आवश्यकता किसे कहते हैं

आवश्यकता एक प्रकार से आन्तरिक अवस्था है। हर प्राणी की कुछ-न-कुछ आवश्यकताएं होती है। इनकी सन्तुष्टि तथा असन्तुष्टि से व्यक्ति का व्यवहार प्रभावित होता है। 

बोरिंग तथा अन्य मनोवैज्ञानिकों ने आवश्यकता को एक ऐसा अभाव माना है जो शरीर में तनाव उत्पन्न करके ऐसा व्यवहार उत्पन्न करती है जिससे असन्तुलन समाप्त हो जाता है। 

हल के अनुसार प्रणोदन व्यवहार को ऊर्जा प्रदान करता है। इस प्रकार वातावरण की उन वस्तुओं को जो प्राणी का अस्तित्व व विकास करने में सहायता प्रदान करती है, आवश्यकता कहते है। अपना अस्तित्व बनाये रखने तथा अपने को विघटन से बचायें रखने के लिए व्यक्ति प्रयासरत रहता है यह प्रवृति मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक दोनों स्तरों पर कार्यरत रहती है।

आवश्यकता की विशेषताएं

आवश्यकता की विशेषताएं हैं -

  1. आवश्यकता एक प्रकार से आन्तरिक विशेषता है।
  2. प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ आवश्यकतायें अवश्य होती है।
  3. आवश्यकता की सन्तुष्टि तथा असन्तुष्टि से व्यक्ति का व्यवहार प्रभावित होता है।
  4. आवश्यकता व्यक्ति को प्रेरणा प्रदान करती है।
  5. आवश्यकता की आपूर्ति की अवस्था में व्यक्ति में प्रतिबल की वृद्धि होती है।

आवश्यकता के सामाजिक - सांस्कृतिक निर्धारक तत्व

1. शारीरिक आवश्यकताएँ - इसके अंतर्गत नींद से सम्बन्धित आवश्यकताएँ आती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति न होने पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। अर्थात् यह आवश्यकताएँ व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक प्रकार्यो को प्रभावित करती है। व्यक्ति ने प्रतिबल तभी बढ़ता है जब व्यक्ति की इन मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधा पड़ती है।

2. सुरक्षा तथा पीड़ादायक उत्तेजनाओं का परिहार - प्राणी की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह पीड़ादायक उत्तेजनाओं से बचना चाहता है। व्यक्ति के लिए भूख, प्यास, थकान, गर्मी, सर्दी तथा कुछ संवेग पीड़ादायक होते हैं। वह इनसे बचने के लिए अनेक सुरक्षा के उपाय ढूंढता है। विभिन्न प्रकार के समायोजनात्मक उपाय ढूंढता है किन्तु जब पीड़ाओं से बचने में स्वयं को असमर्थ पाता है तो कुसमायोजन प्रारम्भ हो जाता है।

3. सैक्स - इस जैविक प्रेरणा का मुख्य उद्देश्य सृजनात्मक है। इसे यौन-व्यवहार की संज्ञा दी जाती है। विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों का व्यक्ति के यौन अभिप्रेरणाओं पर प्रभाव पड़ता है। यौन-व्यवहार में विचलन व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों स्तर पर पाये जाते हैं। सामाजिक स्तर पर नैतिक स्तर के अवमूल्यन के कारण व्यक्ति में सैक्स के प्रति प्रेरणात्मक व्यवहार परिवर्तित होता है।

इस प्रकार शारीरिक आवश्यकताएँ आन्तरिक रूप से व्यक्ति को निरन्तर किसी लक्ष्य प्राप्ति के लिए उत्तेजित करती है जैसा कि पेज का विचार है -

इसके तीन प्रमुख प्रकार्य है -

  1. शारीरिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि
  2. प्राणी की शारीरिक आघात से रक्षा करना
  3. ऐसी क्रियाओं को उत्तेजित करना जो प्राणी को प्रजनन एवं शिशु रक्षा के लिए सहायक हो।

1. मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ

सम्य समाज में प्रायः जैविक आवश्यकताएँ तथा सुरक्षा प्रायः प्राणी को मिल ही जाती है इससे उन्हें संघर्ष या व्यवधान प्रायः नही के बराबर ही होता है जबकि कुछ मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के अभाव में ही व्यक्ति में समायोजन, मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट तथा अन्तद्र्वन्द जैसे स्थितियाँ उत्पन्न होती है। इसके लिए पेज ने अपने विचार इस प्रकार प्रस्तुत किये है -

आलपोर्ट महोदय ने इस मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को शारीरिक आवश्यकताओं से उत्पन्न वृहत रूप माना है। उसमें मुख्य आवश्यकताएँ हैं -

  1. रक्षा
  2. जिज्ञासा
  3. प्रेम एवं अनुमोदन की आवश्यकता
  4. सम्बन्धन
  5. श्रेष्ठता
  6. आत्म सम्मान

2. सामाजिक आवश्यकताएँ

मनुष्य स्वभाव से ही सामूहिकता की प्रवृत्ति लिए हुए होता है। व्यक्ति अपने समूह में समाज से जुड़ा रहता है। इसी सामाजिक अभिप्रेरणा के कारण व्यक्ति सामाजिक रीति-रिवाजों, प्रथाओं के अनुसार व्यवहार करता है और अपने हर व्यवहार के लिए सामाजिक स्वीकृति चाहता है।

पेज ने मुख्य सामाजिक आवश्यकताएँ ये मानी है -

  1. दूसरों से अनुक्रिया
  2. मनोलैंगिक प्रेरणा
  3. आदत एवं प्रेरणा
  4. उत्तेजना

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