औद्योगिक (विकास तथा नियमन) अधिनियम अक्टूबर 1951 में पार्लियामेन्ट द्वारा पास किया गया था तथा उसके बाद इस अधिनियम में कई बार संशोधन किए गए। यह अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है। यह अधिनियम देश में नियमन एवं नियन्त्रण द्वारा योजनाबद्ध औद्योगिक विकास पर बल देता है, और उन उद्योगों को सम्मिलित करता है जिन्हें इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रथम अनुसूची मे सम्मिलित किया गया है। अर्थात् इस अधिनियम के प्रावधान ऐसी औद्योगिक इकाइयों पर लागू होते हैं जो सूचीबद्ध उद्योगों के अन्तर्गत किसी भी वस्तु का निर्माण करती हो, तथा जिन्हें अधिनियम की प्रथम अनुसूचित श्रेणी में सम्मिलित किया गया हो
औद्योगिक (विकास तथा नियमन) अधिनियम, 1951 के प्रमुख उद्देश्य
औद्योगिक (विकास तथा नियमन) अधिनियम, 1951 के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार है -
- सरकार की औद्योगिक नीति का क्रियान्वयन।
- उद्योगों का विकास तथा नियमन।
- भावी विकास के लिए मजबूत तथा सन्तुलित योजनाएँ।
- केन्द्रीय सलाहकार समिति का गठन।
- छोटे उद्योगों को बडे़ उद्योगों से सुरक्षा प्रदान करना।
- औद्योगिक निवेश तथा उत्पादन का प्राथमिकता के आधार पर नियमन करना तथा योजना को लक्ष्य निर्धारित करना।
- सनतुलित क्षेत्रीय विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना।
इस अधिनिमय को 31 भागों में विभाजित किया गया है तथा सभी प्रावधानों को विस्तार पूर्वक तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
- प्रतिबन्धात्मक प्रावधान - इसके अन्तर्गत पंजीकरण तथा लाइसेंसिग से सम्बन्धित प्रावधान है।
- सुधारात्मक प्रावधान - इसके अन्तर्गत औद्योगिक उपक्रमों में आवश्यक सुधारों जैसे मूल्य, आपूर्ति तथा विवरण पर नियन्त्रण आदि से है।
- सृजनात्मक प्रावधान - इसके अन्तर्गत सृजनात्मक उपाय जैसे विकास समितियों का गठन, कर तथा अधिकार वसूलना तथा सलाहकार समितियों को गठन कर कर्मचारियों, उपभोक्ताओं, उद्योग तथा केन्द्रीय सरकार के बीच आपसी सहयोग तथा विश्वास को बढ़ाना है।