भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 क्या है ?

भागीदारी या साझेदारी व्यवसायिक संगठन में दो या दो से अधिक व्यक्ति लाभ कमाने हेतु एक साथ मिलकर व्यवसाय करते हैं। इस व्यवसाय को ‘फर्म’ कहा जाता है। साझेदारी फर्म भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के अंतर्गत नियंत्रित होती है। साझेदारी फर्म का पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है किन्तु जब फर्म का पंजीयन करवाया जाता है तो सामान्यतः यह अनुबन्ध लिखित होता है जिसे साझेदारी संलेख के नाम से जाना जाता है। पंजीकरण न कराने के कुछ बुरे परिणाम हो सकते हैं जैसे विवाद की स्थिति में उसके समाधान के लिए न्यायालय की सहायता नहीं ली जा सकती, फर्म दावों के निपटारे के लिए दूसरी पार्टी के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकते आदि।

साझेदारी के लक्षण दो प्रकार के होते है - वैधानिक एवं सामान्य लक्षण। साझेदारी के वैधानिक लक्षण वे हैं जिनका उल्लेख साझेदारी अधिनियम, में किया गया है, जो हैं -

  1. कम से कम दो व्यक्तियों का होना।
  2. किसी वैद्य कारोबार का होना।
  3. साझेदारों के बीच समझौता अथवा अनुबन्ध होना।
  4. कारोबार का उद्देश्य लाभ कमाना।
  5. प्रत्येक साझेदार का अपनी फर्म का एजेण्ट एवं स्वामी दोनों होना।

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