बर्नियर का जन्म फ्रांस के जोई नामक स्थान पर 1620 ई. में हुआ था। बचपन से ही उसे घूमने फिरने
का शौक था। अतः छात्र जीवन से ही यूरोप के कई देशों की यात्रा कर ली थी। डाॅक्टरी की शिक्षा प्राप्त
कर वह पेशे से चिकित्सक बना। भारत यात्रा की अपनी प्रबल इच्छा के कारण 1658 ई. में वह भारत
यात्रा पर आया। यह वह समय था जबकि शाहजहां के पुत्रों के उत्तराधिकार का युद्ध चल रहा था। इस
युद्ध की कई घटनाओं का वह प्रत्यक्षदर्शी बना। अपने करीब 10 वर्ष के भारत प्रवास में उसने भारत की
कई नगरों की यात्रा की।
भारत की राजनीतिक, धार्मिक एवं आर्थिक स्थिति का विस्तृत वर्णन बर्नियर
ने अपने यात्रा वृतान्त 'Travels in the Mughal Empire' में किया है भारत में उसने सूरत,
अहमदाबाद, आगरा, दिल्ली, पंजाब, कश्मीर मसुलीपट्टम, गोलकुडा एवं बंगाल आदि कई स्थानों की
यात्रा की । बंगाल की यात्रा तो बर्नियर एवं टैवर्नियर ने साथ-साथ की थी। कुछ विद्वानों ने आरोप
लगाया कि पेशे से जौहरी होने के कारण टैवर्नियर की यात्रा का दृष्टिकोण व्यावसायिक था। अतः वह
जवाहरातों की सौदेबाजी में ही लगा रहता था। इसके विपरीत बनिर्यर ने भारतीय राजनय, समाज धार्मिक
परम्पराओं एवं आर्थिक रूचि के साथ अध्ययन किया।
अतः उसका विवरण अधिक प्रमाणिक है इस
तारतम्य में एक फ्रांसीसी राजनीतिज्ञ व लेखक दा मौन्सेयों ने बर्नियर की प्रशंसा करते हुए कहा है कि
‘‘फ्राँस से कभी भी कोई ऐसा यात्री बाहर नहीं गया जिसने पर्यवेक्षण की इतनी, अधिक क्षमता रही हो,
न ही कोई वृतान्त इतनी जानकारी सरलता एवं सत्यनिष्ठा से लिखा गया।’’
मात्र शहजादों ही नहीं बर्नियर ने मुगल शहजादियों के बारे में थी अपनी राय प्रस्तुत की हैं। वह बताता है शहजादी के प्रति शाहजहां को अत्याधिक अनुराग था। वह यह भी बताता है कि शहजादियों से शादी के उपरांत वह व्यक्ति शाही पद के लिये दावेदारी प्रस्तुत कर सकता था। अतः इस प्रकार की अप्रिय स्थिति को आने ही नहीं दिया जाता था। बर्नियर ने उत्तराधिकार संबंधी (25 अप्रैल 1658 ई.) एवं सामूगढ़ (8 जून 1658 ई.) का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया हैं।
बर्नियर का यात्रा विवरण (Bernier travel details)
औरंगजेब के बारे में बर्नियर बताता है कि ‘‘उसमें दारा के समान शिष्टता एवं भद्रतापूर्ण व्यवहार का अभाव था मगर उसमें निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी। अपने सहायकों एवं हितेषियों को पहचानने में उसकी नजर अत्यंत पैनी थी। वह गंभीर एवं कुशल बुद्धि का व्यक्ति था अपने विचारों एवं योजनाओं को गुप्त रखने में वह अत्यंत माहिर व्यक्ति था।’’मात्र शहजादों ही नहीं बर्नियर ने मुगल शहजादियों के बारे में थी अपनी राय प्रस्तुत की हैं। वह बताता है शहजादी के प्रति शाहजहां को अत्याधिक अनुराग था। वह यह भी बताता है कि शहजादियों से शादी के उपरांत वह व्यक्ति शाही पद के लिये दावेदारी प्रस्तुत कर सकता था। अतः इस प्रकार की अप्रिय स्थिति को आने ही नहीं दिया जाता था। बर्नियर ने उत्तराधिकार संबंधी (25 अप्रैल 1658 ई.) एवं सामूगढ़ (8 जून 1658 ई.) का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया हैं।
बर्नियर बताता है चम्पतराय बुन्देला ने
बुन्देलखण्ड के जंगलों में रास्ता बताने एवं चम्बल नदी पार कराने में औरंगजेब की अत्यंत मदद की थी।
युद्ध में पराजय के पश्चात् दाराशिकोह जब गुजरात की ओर भागा तब उसकी पत्नि नादिया बानो बेगम
बहुत बीमार थी दारा के आग्रह पर बर्नियर ने उसका इलाज किया था। दिल्ली की सड़कों पर जब
मैले-कुचैले हाथी पर बैठकार दारा को घुमाया गया था एवं हत्या की गयी थी तब इन सब दृश्यों को
बर्नियर ने स्वयं देखा था। प्राचीन लेखन प्रेमी की तरह बर्नियर बताता है कि विदेशी व्यापार की समृद्धि
के चलते हिन्दुस्तान में संसार भर के सोने चांदी का एक बड़ा भाग अवशोषित है। इस सोने का अधिकतर
प्रयोग आभूषण बनाने में किया जाता है। वह बताता है कि सूबेदार के दुव्र्यवहारों के कारण कास्तकार
भूमि छोड़कर शहर पलायन कर जाते थे। उसने कास्तकारों एवं दस्तकारों की स्थिति पर पर्याप्त प्रकाश
डाला है। अमीर वर्ग की स्थिति पर पर्याप्त प्रकाश डालता है। बर्नियर ने विभिन्न अधिकारियों एवं सैनिकों
वेतन पर प्रकाश डाला है। उसने काश्मीर के शाल उद्योग की प्रशंसा की है। वह लिखता है,कि, दिल्ली
के आसपास का इलाका अत्यंत उपजाऊ है यहां मक्का, चावल, बाजरा, नील, गन्ना की खेती होती है।
बर्नियर ने आगरा व दिल्ली के बाजारों, अमीर व गरीबों के घरों एवं इमारतों का भी विवरण प्रस्तुत किया
हैं।
शाहशुजा के बारे में बर्नियर बताता है कि ‘‘शुजा षड्यंत्र रचने में अत्यंत माहिर था। उसें आमीरों को वश में करने की क्षमता थी । मगर उसका सबसे बड़ा दुर्गुण यह था, कि वह आमोद-प्रमोद का दास था।’’ नगर संरचना आदि का वह विस्तार से वर्णन करता है इब्नबतूता एवं टैबर्नियर की तरह वह भी ग्वालियर किले का उल्लेख करता है। वह बताता है कि दारा पुत्र सुलेमान शिकोहा एवं मुरादाबख्श को ग्वालियर किले में मानमंदिर के तहखाने में कैद रखा गया था एवं उन्हें औरंगजेब के आदेश से मार डाला गया था।‘‘हिन्दुस्तान के साम्राज्य के विशाल ग्रामीण अंचलों में से कई केवल रेतीली भूमियां एवं बंजर पर्वत ही है । यहां की खेती अच्छी नहीं है और इन इलाकों की आबादी भी कम है। यहां तक कि कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में .कृषि विहीन रह जाता है। इनमें से कई श्रमिक गर्वनरों द्वारा किये गये दुव्र्यहार के फलस्वरूप मर जाते हैं। गरीब लोग जब अपने लोभी स्वामियों की मांगों को पूरा करने में असमर्थ हो जाते हैं तो उन्हें न केवल जीवन-निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है बल्कि उन्हें अपने बच्चों से भी हाथ धोना पड़ता है। जिन्हें दास बनाकर ले जाया जाता है। इस प्रकार ऐसा होता है कि इस अत्यंत निरंकुशता से तंग आकर .कृषक गांव ही छोड़कर चले जाते हैं।
शाहशुजा के बारे में बर्नियर बताता है कि ‘‘शुजा षड्यंत्र रचने में अत्यंत माहिर था। उसें आमीरों को वश में करने की क्षमता थी । मगर उसका सबसे बड़ा दुर्गुण यह था, कि वह आमोद-प्रमोद का दास था।’’ नगर संरचना आदि का वह विस्तार से वर्णन करता है इब्नबतूता एवं टैबर्नियर की तरह वह भी ग्वालियर किले का उल्लेख करता है। वह बताता है कि दारा पुत्र सुलेमान शिकोहा एवं मुरादाबख्श को ग्वालियर किले में मानमंदिर के तहखाने में कैद रखा गया था एवं उन्हें औरंगजेब के आदेश से मार डाला गया था।‘‘हिन्दुस्तान के साम्राज्य के विशाल ग्रामीण अंचलों में से कई केवल रेतीली भूमियां एवं बंजर पर्वत ही है । यहां की खेती अच्छी नहीं है और इन इलाकों की आबादी भी कम है। यहां तक कि कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में .कृषि विहीन रह जाता है। इनमें से कई श्रमिक गर्वनरों द्वारा किये गये दुव्र्यहार के फलस्वरूप मर जाते हैं। गरीब लोग जब अपने लोभी स्वामियों की मांगों को पूरा करने में असमर्थ हो जाते हैं तो उन्हें न केवल जीवन-निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है बल्कि उन्हें अपने बच्चों से भी हाथ धोना पड़ता है। जिन्हें दास बनाकर ले जाया जाता है। इस प्रकार ऐसा होता है कि इस अत्यंत निरंकुशता से तंग आकर .कृषक गांव ही छोड़कर चले जाते हैं।
शाहजहां के पुत्र एवं पुत्रियों के आचार व्यवहार का उसने विस्तृत वर्णन किया है। उसने शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह के बारे में लिखा है - दारा अत्यंन्त उदार था एवं उसमें कई अच्छे गुण थे। परंतु उसे इस बात का गुरूर था कि वह अपने दिमाग से प्रत्येक कार्य सम्पन्न कर सकता है। जो भी उसे परामर्श देता अथवा वस्तु स्थिति से अवगत कराने का प्रयास करता था। दारा उसके साथ बहुत रूखाई से पेश आता था। यही कारण था कि उसके परम हितैषी मित्रों ने भी दारा को उसके भाइयों के षड्यंत्रों के बारे में सतर्क करने का प्रयास नहीं किया’’।
Tags:
बर्नियर