महिला स्वतंत्रता सेनानियों के नाम

स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं ने समय-समय पर अपनी बहादुरी और साहस का प्रयोग कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चली। रानी लक्ष्मी बाई और रानी चेनम्मा जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी, तो सरोजिनी नायडू और लक्ष्मी सहगल ने देश की आजादी के बाद भी सेवा की। आइए जानते हैं उन महिलाओं के बारे में जिन्होंने भारत को आजाद कराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।

महिला स्वतंत्रता सेनानियों के नाम

महिला स्वतंत्रता सेनानियों के नाम

  1. रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmi Bai)
  2. सरोजनी नायडू (Sarojini Naidu)
  3. सुचेता कृपलानी (Sucheta kripalani)
  4. कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi)
  5. ऊषा मेहता (Usha Mehta)
  6. दुर्गा बाई देशमुख (Durga Bai Deshmukh)
  7. विजय लक्ष्मी पंडित (Vijay Lakshmi Pandit)
  8. कमला नेहरू (Kamala Nehru)
  9. सिस्टर निवेदिता (Sister Nivedita)
  10. मैडम भीकाजी कामा (Madam Bhikaji Cama)
  11. मीरा बेन (Mira Ben)
  12. एनी बेसेन्ट (Annie besant)
  13. बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal)
  14. डाॅ. लक्ष्मी सहगल (Dr. Lakshmi Sehgal)
  15. अरुणा आसफ अली (Aruna Asif Ali)
  16. कनकलता बरुआ (Kanaklata Barua)

1. रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई उन सभी महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं जो महिलाएं ये सोचती है कि ‘वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती।’ देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं। रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी थीं और 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध बिगुल बजाने वाले वीरों में से एक थीं। 

वे ऐसी वीरांगना थीं जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ही ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से मोर्चा लिया और रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गईं, परन्तु जीते जी अंग्रेजों को अपने राज्य झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया। 

भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है। 

2. सरोजनी नायडू

सरोजनी नायडू सन् 1914 में पहली बार महात्मा गांधी से इंग्लैंड में मिली और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गईं। सरोजनी नायडू ने एक कुशल सेना की भांति अपना परिचय हर क्षेत्र चाहे वह ‘‘सत्याग्रह’’ हो या ‘‘संगठन’’ में दिया। 

उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व भी किया, जिसके लिए उन्हें जेल तक जाना पड़ा। फिर भी उनके कदम नहीं रुके, संकटों से न घबराते हुए वे एक वीर वीरांगना की भांति गाँव-गाँव घूमकर देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्यों के लिए प्रेरित करती रहीं। 

अपनी लोकप्रियता और प्रतिभा के कारण सन् 1932 में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व दक्षिण अफ्रीका में भी किया। सरोजिनी नायडु पहली भारतीय महिला कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल भी बनीं।

3. सुचेता कृपलानी

भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री कृपलानी का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। 1946 में उन्हें भारतीय संविधान के निर्माण के लिए गठित संविधान सभा की प्रारूप समिति के एक सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया था। सुचेता ने आंदोलन के हर चरण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और कई बार जेल गईं। सन् 1946 में उन्हें असेंबली का अध्यक्ष चुना गया। 

सन 1958 से लेकर 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जनरल सेक्रेटरी रहीं और 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।

4. कस्तूरबा गांधी

कस्तूरबा गांधी जिन्हें भारत में बा के नाम से जाना जाता है। कस्तुरबा जी गांधीजी की धर्म पत्नी थीं। आजादी की लड़ाई में उन्होंने हर कदम पर अपने पति का साथ दिया था। उन्होंने 1913 में गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन में साथ दिया और तीन महिलाओं के साथ जेल गईं। उन्होंने लोगों को शिक्षा, अनुशासन और स्वास्थ्य से जुड़े बुनियादी सबक सिखाए और आजादी की लड़ाई में पर्दे के पीछे रह कर सराहनीय कार्य किया।

5. ऊषा मेहता

स्वतंत्रता सेनानी ऊषा मेहता ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के दौरान कुछ महीनों तक कांग्रेस रेडियो काफी सक्रिय रहा था। वह भारत छोड़ो आंदोलन के समय खुफिया कांग्रेस रेडियो चलाने के कारण पूरे देश में विख्यात हुईं। इस रडियो के कारण ही उन्हें पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा। वे महात्मा गांधी की अनुयायी थीं। 

6. दुर्गा बाई देशमुख

दुर्गाबाई देशमुख भारत की स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा स्वतंत्र भारत के पहले वित्तमंत्री चिंतामणराव देशमुख की पत्नी थीं। दुर्गा बाई देशमुख ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया व भारत की आजादी में एक वकील, समाजिक कार्यकर्ता और एक राजनेता की सक्रिय भूमिका निभाई। 

उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र से लेकर महिलाओं, बच्चों और जरूरतमंद लोगों के पुनर्वास तथा उनकी स्थिति को बेहतर बनाने हेतु एक ‘केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड’ की नींव रखी थी।

7. विजय लक्ष्मी पंडित

विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। 

वे संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्होंने मास्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

8. कमला नेहरू

कमला नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की धर्मपत्नी थी। कमला नेहरू महिला लौह स्त्री साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना करती, भूख हड़ताल करती और जेल की पथरीली धरती पर सोती थी। असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की थी।

9. सिस्टर निवेदिता

यदि भारत में आज हम विदेशियों को याद करते हैं या फिर उन पर गर्व करते हैं तो उनमें सिस्टर निवेदिता का नाम शीर्ष में आता है। जिन्होंने न केवल महिला शिक्षा के क्षेत्र में ही महत्वपूर्ण योगदान दिया बल्कि भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों की खुलेआम मदद भी की। उनके जीवन में निर्णायक मोड़ 1895 में उस समय आया जब लंदन में उनकी स्वामी विवेकानंद से मुलाकात हुई। 

स्वामी विवेकानंद ने निवेदिता के मन में यह बात पूरी तरह बिठा दी कि भारत ही उनकी वास्तविक कर्मभूमि है। प्लेग की महामारी के दौरान उन्होंने पूरी शिद्दत से रोगियों की सेवा की और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अग्रणी भूमिका निभाई।

10. मैडम भीकाजी कामा

मैडम भीकाजी कामा ने आजादी की लड़ाई में एक सक्रिय भूमिका निभाई थी। वह भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं, जिन्होंने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वे जर्मनी में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का तिरंगा फहराने के लिए सुविख्यात हैं। भीकाजी ने स्वतंत्रता सेनानियों की आर्थिक मदद भी की और जब देश में ‘प्लेग’ फैला तो अपनी जान की परवाह किए बगैर उनकी भरपूर सेवा की। स्वतंत्रता की लड़ाई में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

11. मीरा बेन 

मीरा बेन का असली नाम ‘‘मैडलिन स्लेड’’ था। वे गांधीजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर भारत आ गई और यहीं की होकर रह गई। गांधी जी ने उन्हें मीरा बेन का नाम दिया था। मीरा बेन सादी धोती पहनती, सूत कातती, गाँव-गाँव घूमती। वह गोरी नस्ल की अँग्रेज थीं, लेकिन हिंदुस्तान की आजादी के पक्ष में थी।

12. एनी बेसेन्ट

प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था। 1890 में ऐनी बेसेंट हेलेना ब्लावत्सकी द्वारा स्थापित थियोसोफिकल सोसाइटी, जो हिंदू धर्म और उसके आदर्शों का प्रचार-प्रसार करती हैं, की सदस्या बन गईं। 

भारत आने के बाद भी ऐनी बेसेंट महिला अधिकारों के लिए लड़ती रहीं। महिलाओं को वोट जैसे अधिकारों की मांग करते हुए ऐनी बेसेंट लगातार ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखती रहीं। 

भारत में रहते हुए ऐनी बेसेंट ने स्वराज के लिए चल रहे होम रूल आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

13. बेगम हजरत महल

बेगम हजरत महल अवध के शासक वाजिद अली शाह की पहली पत्नी थीं। सन 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने लखनऊ को अंग्रेजों से बचाने के लिए भरसक प्रयत्न किए और सक्रिय भूमिका निभाई। बेगम हजरत महल की हिम्मत का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने मटियाबुर्ज में जंगे-आजादी के दौरान नजरबंद किए गए वाजिद अली शाह को छुड़ाने के लिए लार्ड कैनिंग के सुरक्षा दस्ते में भी सेंध लगा दी थी।

14. डाॅ. लक्ष्मी सहगल

पेशे से डॉक्टर लक्ष्मी सहगल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर प्रमुख भूमिका निभाई थी।

उनका पूरा नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन सहगल था। वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं। वे आजाद हिन्द फौज की ‘रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट’ की कमाण्डर थीं। 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अटूट अनुयायी के तौर पर वे इंडियन नेशनल आर्मी में शामिल हुईं थीं। उन्हें वर्ष 1998 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था।

15. अरुणा आसफ अली

अरुणा आसफ अली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, मुंबई के गोवालीया मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए हमेशा याद किया जाता है। उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया और लोगों को अपने साथ जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मासिक पत्रिका ‘इंकलाब’ का भी संपादन किया। 

सन् 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मांनित किया गया था।

16. कनकलता बरुआ

कनकलता बरुआ असम की रहने वाली थीं। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्होंने कोर्ट परिसर और पुलिस स्टेशन के भवन पर भारत का तिरंगा फहराया। कनकलता बरुआ महज 17 साल की उम्र में पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराने की कोशिश के दौरान पुलिस की गोलियों का शिकार बन गईं।

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