राष्ट्रीय पुस्तकालय
प्रत्येक देश की सरकार अपने देश के लिए एक राष्ट्रीय पुस्तकालय स्थापित करती
है या किसी एक वर्तमान पुस्तकालय को राष्ट्रीय पुस्तकालय घोषित करती है राष्ट्रीय
पुस्तकालय की स्थापना के पीछे, यह धारणा है कि देश में एक स्थान होना चाहिए जहां
देश की बौद्धिक धरोहर जो पुस्तक रूप में प्रकाशित है को इकट्ठा किया जाये उसकी
सुरक्षा की जाये तथा देश की वर्तमान एवं आने वाली पीढ़ियों को आवश्यकता के समय
उपयोग के लिए उसे उपलब्ध कराया जाये।
डा0 एस. आर रंगनाथन ने इस बारे में कहा है
कि ऐसा पुस्तकालय जिसका कर्तव्य देश के साहित्य का संग्रह करना और आने वालीपीढ़ियों के लिए संरक्षित करना यह एक केंद्रीय स्थान भी है जहां देश के साहित्य को संग्रह करके उसका रख रखाव करके उसे देश में कही भी प्रसारित करने में सक्षम होता है।
राष्ट्रीय पुस्तकालय के उद्देश्य तथा कार्य
पहले-पहले राष्ट्रीय पुस्तकालय का एक ही कार्य था देश में मुद्रित साहित्य को इकट्ठा
कर उसे सुरक्षित रूप में रखना इसी कार्य को पूरा करने के लिए फ्रासं में एक पुस्तकालय
को सन 1795 ई0 में राष्ट्रीय सम्पति घोषित किया गया बाद में यू0के0 के ब्रिटिश म्यूजियम
के प्रसिद्व पुस्तकालयाध्यक्ष एंथोनी पैनिजी ने इस बात पर बल दिया कि ब्रिटिश म्यूजियम
जो उस समय का राष्ट्रीय पुस्तकालय था, में अंग्रेजी साहित्य का उत्तम संग्रह तथा अन्य
देशों के साहित्य का उत्तम संग्रह भी होना चाहिए इस प्रकार पैनिजी ने एक नई परम्परा
का सूत्रपात किया जिसमें यह माना गया है कि राष्ट्रीय पुस्तकालय केवल अपने देश में
प्रकाशित साहित्य का एकत्रण तथा संरक्षण कर ही अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर सकता उसे
अपने देश के विषय में दुनिया में कही भी प्रकाशित समस्त साहित्य इकट्ठा करना चाहिए
साथ ही साथ उसे दुनिया के दूसरे देशों के साहित्य का प्रतिनिधि संग्रह भी अपने भण्डार
में रखना चाहिए राष्ट्रीय पुस्तकालय नीचे दिये गये निम्नलिखित कार्यों का निर्वहन करता
है।
- संग्रह करना, देश में प्रकाशित समस्त साहित्य को इकट्ठा करना और इस प्रकार देश में मुद्रित साहित्य के डिपाजिटरी के रूप में कार्य करना।
- कानूनी निक्षेप, उपहार तथा विनिमय द्वारा देश में प्रकाशित साहित्य के एक केन्द्रीय और विस्तृत संग्रह का निर्माण करना।
- प्रबन्धन करना-देश में प्रकाशित व विदेशों के मुख्य ग्रन्थों की प्रतियाॅ को स्थान दिया जाता है। ग्रन्थों की विषयानुसार वाग्ंमय सूचियाॅ तैयार करना भी इसका कार्य होता है।
- अपने देश के उपर किसी भी भाषा या रूप में विदेशों में प्रकाशित साहित्य का अधिग्रहण करना।
- चयनित हस्त लिखित ग्रंथों तथा राष्ट्रीय प्रांसगिकता और महत्व के पुरालिखित अभिलखों का संग्रह तथा परिरक्षण करना।
- विदेशों में प्रकाशित ऐसे प्रलेखों का संग्रह करना जिनकी देश में मांग हो सकती है।
- सेवाएं प्रदान करना-देश का राष्ट्रीय पुस्तकालय होने के नाते यह देश के प्रत्येक नागरिकों की सेवाओं का दायित्व भी इस पर होता है सभी को सेवा प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय वांग्मय सूची बनाना तथा प्रकाशित करना जिससें समाज के अन्तिम व्यक्ति तक इन पुस्तकालयों के स्थापना की पूर्ति हो सके।
- मांग के समय वाग्ंमय सूची सेवा/संदर्भ सेवा तथा अन्य सेवाएं जिसके अन्तर्गत देश का प्रत्येक नागरिक लाभान्वित हो सके ।
- देश के सभी प्रकार के पुस्तकालयों को नेतृत्व प्रदान करना ।
- प्रत्येक देश का राष्ट्रीय पुस्तकालय एक रेफरल केन्द्र के रूप में भी कार्य करता है अथार्त ् विशेष निर्देशिकाओं तथा सदंर्भिकाओ में से सूचना के स्त्रोतो की प्राप्ति में पाठकों की सहायता करना।
- अपने देश के अलावा दूसरे देशों के साहित्यिक प्रकाशनों पुस्तकों का संग्रह करना व देश का प्रतिनिधित्व करना
- राष्ट्रीय वांग्मय सूचना केन्द्र के रूप में कार्य करना
- सयुंक्त सूची तैयार करना
- राष्ट्रीय अनुदर्शनात्मक वांग्मय सूची प्रकाशित करना
भारत का राष्ट्रीय पुस्तकालय कहाँ पर स्थित है
भारत का राष्ट्रीय पुस्तकालय कलकत्ता में स्थित है। इस पुस्तकालय का लंबा
इतिहास रहा है और इसका नाम कई बार बदला गया। इसका इतिहास सन् 1835 में
कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी से शुरू होता है। इसे मार्च सन् 1836 में आम जनता के लिए खोल दिया गया। सन् 1899 ई0 में भारत के तत्कालीन वायसराय और गर्वनर जनरल
लार्ड कर्जन ने इस पुस्तकालय की दयनीय दशा को देखते हुये इसका स्वामित्व अधिकार
खरीदा और तत्पश्चात इसे सरकार द्वारा संपोषित इंपीरियल लाइब्रेरी के अन्तर्गत मिला
दिया गया। इस नवीन इंपीरियल लाइब्रेरी आफ इण्डिया को 30 जनवरी 1903 के दिन
मटे काॅफ हाल में जनता के उपयोगार्थ खोल दिया गया। ब्रिटिश म्युजियम के जाॅन
मैकफार्लेन को इस नवीन इंपीरियल लाइब्रेरी का प्रथम पुस्तकालयाध्यक्ष नियुक्त किया गया
था। आगे जाकर इसी इंपीरियल लाइेब्ररी को भारत का राष्ट्रीय पुस्तकालय होने का दर्जा
प्राप्त हुआ।