भारत के संविधान के भाग 17 अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ
की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय
प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों
का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत के संविधान के भाग 1 में
पहले अनुच्छेद के अंतर्गत संघ को कुछ इस तरह परिभाषित
किया गया है जो स्वतः स्पष्ट है: -
- भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
- राज्य और उनके राज्य क्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
- भारत के राज्य क्षेत्र में, (क) राज्यों के राज्य क्षेत्र, (ख) पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्य क्षेत्र, और (ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएं, समाविष्ट होंगे।
संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी
शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग जारी रखने
का प्रावधान किया गया था जिसके लिए उसका प्रयोग संविधान
लागू होने के ठीक पहले होता रहा। संविधान के अनुच्छेद 344 में
यह प्रावधान किया गया कि राजभाषा के संबंध में आयोग और
संसद की समिति का गठन किया जाएगा जिसमें कहा गया है कि -
(1) राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारंभ से 5 वर्ष की समाप्ति पर
और तत्पश्चात ऐसे प्रारंभ से 10 वर्ष की समाप्ति पर, आदेश
द्वारा, एक आयोग गठित करेंगे जो एक अध्यक्ष और अष्टम
अनुसूची में उल्लिखित विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने
वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा जिनको राष्ट्रपति
नियुक्त करें और आदेश में आयोग द्वारा अनुसरण की जाने
वाली प्रक्रिया परिनिश्चित की जाएगी।
(2) आयोग का यह कर्तव्य
होगा कि वह राष्ट्रपति को - (क) संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी भाषा के
अधिकाधिक प्रयोग, (ख) संघ के सभी या किन्हीं शासकीय
प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निर्बंधनों, (ग)
अनुच्छेद 348 में वर्णित प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए
प्रयोग की जाने वाली भाषा के, (घ) संघ के किसी एक या अधिक
उल्लिखित प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंकों के रूप
के, (ड) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच
अथवा एक राज्य और दूसरे के बीच संचार की भाषा तथा उनके
प्रयोग के बारे में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्देशित किए गए
किसी अन्य विषय के बारे में सिफारिश करने में आयोग भारत
की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का तथा लोक
सेवाओं के बारे में अहिंदी भाषा-भाषी क्षेत्रों के लोगों के न्यायपूर्ण
दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा।
(3) खंड 2 के अधीन
अपनी सिफारिशें करने में आयोग भारत की औद्योगिक,
सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का तथा लोक सेवाओं के बारे
में अहिंदी भाषा-भाषी क्षेत्रों के लोगों के न्यायपूर्ण दावों और हितों
का सम्यक ध्यान रखेगा।
(4) 30 सदस्यों की एक समिति गठित
की जाएगी जिनमें से 20 लोकसभा के सदस्य होंगे तथा 10 राज्य
परिषद के सदस्य होंगे जो कि क्रमशः लोकसभा के सदस्यों तथा
राज्य परिषद के सदस्यों द्वारा अनुपाती प्रतिनिधित्व पद्धति के
अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
(5) खंड 1
के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों की परीक्षा करना तथा
उन पर अपनी राय का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को करना समिति का
कर्तव्य होगा।
(6) अनुच्छेद 343 में किसी बात के होते हुए भी
राष्ट्रपति खंड (5) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के
पश्चात उस सारे प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार
निर्देश निकाल सकेगा। (राष्ट्रभाषा से राजभाषा, डाॅ. विमलेश
कांति वर्मा, पृष्ठ 422)
चूंकि संविधान लागू होने के 15 वर्ष की अवधि के उपरांत राजभाषा के रूप में हिंदी का सम्यक कार्यान्वयन नहीं हुआ इसलिए 1963 में राजभाषा अधिनियम लाया गया। राजभाषा अधिनियम की धारा 8 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने राजभाषा नियम 1976 बनाया है। संघ सरकार में राजभाषा के कार्यान्वयन के लिए राजभाषा अधिनियम 1963 और राजभाषा नियम 1976 मूल आधार हैं। इन नियमों के अनुपालन के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा समय-समय पर आदेश और अनुदेश भी जारी किए जाते रहे हैं।
राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 4 (i) के उपबंधों के अनुसार पुनः एक संसदीय समिति का गठन अधिनियम की धारा 3 के लागू होने की तारीख अर्थात 26 जनवरी 1965 से 10 वर्ष की अवधि के उपरांत वर्ष 1976 में किया गया। इस समिति में भी 30 संसद सदस्य, 20 लोकसभा से तथा 10 राज्यसभा से हैं। इस समिति का कर्तव्य है कि यह संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करे और उस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करें और राष्ट्रपति उस प्रतिवेदन को संसद के हर एक सदन के समक्ष रखवाएंगे और सभी राज्य सरकारों को भिजवाएंगे। प्रतिवेदन पर राज्य सरकारों ने यदि कोई मत व्यक्त किया हो तो राष्ट्रपति उस पर विचार करने के पश्चात उस समस्त प्रतिवेदन या उसके किसी भाग के अनुसार निर्देश निकाल सकेंगे। परंतु इस प्रकार निकाले गए निर्देश अधिनियम की धारा 3 के उपबंध से असंगत नहीं होंगे।
संसदीय राजभाषा समिति, राजभाषा अधिनियम, 1963 में की गई व्यवस्था के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आई। उक्त अधिनियम संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी को अपनाने संबंधी संविधान के परिकल्पित पंद्रह वर्ष की अवधि अर्थात 26 जनवरी, 1965 के पश्चात अपनाई जाने वाली संघ की राजभाषा नीति का निर्धारण करने के लिए बनाया गया था। अधिनियम की धारा 4 (1) में व्यवस्था है कि उक्त अधिनियम की धारा 3 के प्रवृत्त होने की तारीख (अर्थात 26 जनवरी, 1965) के दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात राजभाषा समिति गठित की जाएगी। तदनुसार जनवरी, 1976 से संसदीय राजभाषा समिति का गठन अधिनियम के उपबंधो के अनुसार किया गया।
संसदीय राजभाषा समिति का गठन
राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के पहले नौ खंडों में की गई सिफारिशों पर राष्ट्रपति के आदेश’ के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 344 के उपबंधों के अंतर्गत आयोग की इस सिफारिश पर विचार करने के लिए एक संसदीय समिति का भी गठन किया गया था जिसमें 20 लोकसभा से तथा 10 राज्य सभा से सदस्य थे। संविधान की इस व्यवस्था के अनुपालन के लिए खेर आयोग का गठन 7 जून 1955 को किया गया। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 31 जुलाई 1956 को राष्ट्रपति को सौंपी। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए गठित संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष 8 फरवरी 1959 को प्रस्तुत की थी। आयोग की सिफारिशों और संसदीय समिति की राय के उपरांत राष्ट्रपति के आदेश 27 अप्रैल 1960 को जारी किए गए थे जिसमें हिंदी शब्दावली, प्रशासनिक संहिताओं का अनुवाद, प्रशासनिक कर्मचारी वर्ग को हिंदी का प्रशिक्षण और हिंदी का प्रचार-प्रसार आदि विभिन्न उपयोगी विषयों पर आदेश जारी कर दिए गए थे।चूंकि संविधान लागू होने के 15 वर्ष की अवधि के उपरांत राजभाषा के रूप में हिंदी का सम्यक कार्यान्वयन नहीं हुआ इसलिए 1963 में राजभाषा अधिनियम लाया गया। राजभाषा अधिनियम की धारा 8 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने राजभाषा नियम 1976 बनाया है। संघ सरकार में राजभाषा के कार्यान्वयन के लिए राजभाषा अधिनियम 1963 और राजभाषा नियम 1976 मूल आधार हैं। इन नियमों के अनुपालन के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा समय-समय पर आदेश और अनुदेश भी जारी किए जाते रहे हैं।
राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 4 (i) के उपबंधों के अनुसार पुनः एक संसदीय समिति का गठन अधिनियम की धारा 3 के लागू होने की तारीख अर्थात 26 जनवरी 1965 से 10 वर्ष की अवधि के उपरांत वर्ष 1976 में किया गया। इस समिति में भी 30 संसद सदस्य, 20 लोकसभा से तथा 10 राज्यसभा से हैं। इस समिति का कर्तव्य है कि यह संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करे और उस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करें और राष्ट्रपति उस प्रतिवेदन को संसद के हर एक सदन के समक्ष रखवाएंगे और सभी राज्य सरकारों को भिजवाएंगे। प्रतिवेदन पर राज्य सरकारों ने यदि कोई मत व्यक्त किया हो तो राष्ट्रपति उस पर विचार करने के पश्चात उस समस्त प्रतिवेदन या उसके किसी भाग के अनुसार निर्देश निकाल सकेंगे। परंतु इस प्रकार निकाले गए निर्देश अधिनियम की धारा 3 के उपबंध से असंगत नहीं होंगे।
संसदीय राजभाषा समिति, राजभाषा अधिनियम, 1963 में की गई व्यवस्था के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आई। उक्त अधिनियम संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी को अपनाने संबंधी संविधान के परिकल्पित पंद्रह वर्ष की अवधि अर्थात 26 जनवरी, 1965 के पश्चात अपनाई जाने वाली संघ की राजभाषा नीति का निर्धारण करने के लिए बनाया गया था। अधिनियम की धारा 4 (1) में व्यवस्था है कि उक्त अधिनियम की धारा 3 के प्रवृत्त होने की तारीख (अर्थात 26 जनवरी, 1965) के दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात राजभाषा समिति गठित की जाएगी। तदनुसार जनवरी, 1976 से संसदीय राजभाषा समिति का गठन अधिनियम के उपबंधो के अनुसार किया गया।
संसदीय राजभाषा समिति के कार्य
समिति को सौपे
गए कर्तव्य हैं- संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग
में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करना और उसपर सिफ़ारिशें
करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन करना। तदुपरान्त, राष्ट्रपति
उस प्रतिवेदन को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखेंगे तथा
सभी राज्य सरकारों को भिजवाएंगे।
समिति को सौंपे गए कार्य राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 4 (3) के अनुसार समिति का कर्तव्य है कि वह संघ के राजकीय प्रयोजनों में हिंदी के प्रयोग में की गई प्रगति की समीक्षा करे और उस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। समिति की पहली बैठक में ही विभिन्न विभागों, उपक्रमों, कार्यालयों आदि में मौके पर जाकर निरीक्षण करने और हिंदी के प्रयोग संबंधी स्थिति की समीक्षा करने के लिए तीन उप समितियों के गठन का निर्णय लिया गया था। संघ का शासकीय कार्य राजभाषा हिंदी में निष्पादित करने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में संसदीय राजभाषा समिति द्वारा संघ के कामकाज में राजभाषा हिंदी के प्रयोग की दिशा में हुई प्रगति की समूचे देश में स्थित केंद्र सरकार के कार्यालयों के निरीक्षण के माध्यम से समीक्षा करना और अपनी सिफारिश करते हुए माननीय राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करना एक अभीष्ट कार्य है। इस कार्य में जहां एक और समूचे देश में केंद्र सरकार के कार्यालयों/उपक्रमों/राष्ट्रीयकृत बैंकों आदि में राजभाषा हिंदी के प्रयोग का जायजा लेती है वहीं दूसरी ओर माननीय राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर भारत देश में हिंदी को राजभाषा का अपेक्षित अधिकार दिलाने में होने वाली समस्याओं का समाधान खोजने के एक महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन भी करती है। (संसदीय राजभाषा समिति की वेबसाइट)
समिति ने जनवरी 1987 में माननीय राष्ट्रपति को अपने प्रतिवेदन का पहला खंड प्रस्तुत किया जो केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में अनुवाद की व्यवस्था से संबंधित है। प्रथम खंड पर माननीय राष्ट्रपति के आदेश 30.12.1988 को जारी किए गए। केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में यांत्रिक सुविधाओं में हिंदी तथा अंग्रेजी के प्रयोग से संबंधित प्रतिवेदन का दूसरा खंड माननीय राष्ट्रपति को जुलाई 1987 में प्रस्तुत किया गया, इस संबंध में 29 मार्च 1990 को राष्ट्रपति के आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए।
केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के हिंदी शिक्षण और उनके हिंदी माध्यम से प्रशिक्षण आदि से संबंधित व्यवस्थाओं के बारे में समिति के प्रतिवेदन का तीसरा खंड फरवरी 1989 में माननीय राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया गया, इस संबंध में 4 नवंबर 1991 को माननीय राष्ट्रपति का आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किया गया। समिति द्वारा जुलाई 1989 तक किए गए पुनर्विलोकनों के आधार पर देश के विभिन्न भागों में सरकारी कार्यालयों तथा उपक्रमों आदि में हिंदी के प्रयोग की स्थिति से संबंधित चैथा खंड माननीय राष्ट्रपति को नवंबर 1989 में प्रस्तुत किया गया, इस संबंध में 28 जनवरी 1992 को माननीय राष्ट्रपति का आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किया गया।
समिति को सौंपे गए कार्य राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 4 (3) के अनुसार समिति का कर्तव्य है कि वह संघ के राजकीय प्रयोजनों में हिंदी के प्रयोग में की गई प्रगति की समीक्षा करे और उस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। समिति की पहली बैठक में ही विभिन्न विभागों, उपक्रमों, कार्यालयों आदि में मौके पर जाकर निरीक्षण करने और हिंदी के प्रयोग संबंधी स्थिति की समीक्षा करने के लिए तीन उप समितियों के गठन का निर्णय लिया गया था। संघ का शासकीय कार्य राजभाषा हिंदी में निष्पादित करने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में संसदीय राजभाषा समिति द्वारा संघ के कामकाज में राजभाषा हिंदी के प्रयोग की दिशा में हुई प्रगति की समूचे देश में स्थित केंद्र सरकार के कार्यालयों के निरीक्षण के माध्यम से समीक्षा करना और अपनी सिफारिश करते हुए माननीय राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करना एक अभीष्ट कार्य है। इस कार्य में जहां एक और समूचे देश में केंद्र सरकार के कार्यालयों/उपक्रमों/राष्ट्रीयकृत बैंकों आदि में राजभाषा हिंदी के प्रयोग का जायजा लेती है वहीं दूसरी ओर माननीय राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर भारत देश में हिंदी को राजभाषा का अपेक्षित अधिकार दिलाने में होने वाली समस्याओं का समाधान खोजने के एक महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन भी करती है। (संसदीय राजभाषा समिति की वेबसाइट)
समिति ने जनवरी 1987 में माननीय राष्ट्रपति को अपने प्रतिवेदन का पहला खंड प्रस्तुत किया जो केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में अनुवाद की व्यवस्था से संबंधित है। प्रथम खंड पर माननीय राष्ट्रपति के आदेश 30.12.1988 को जारी किए गए। केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में यांत्रिक सुविधाओं में हिंदी तथा अंग्रेजी के प्रयोग से संबंधित प्रतिवेदन का दूसरा खंड माननीय राष्ट्रपति को जुलाई 1987 में प्रस्तुत किया गया, इस संबंध में 29 मार्च 1990 को राष्ट्रपति के आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए।
केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के हिंदी शिक्षण और उनके हिंदी माध्यम से प्रशिक्षण आदि से संबंधित व्यवस्थाओं के बारे में समिति के प्रतिवेदन का तीसरा खंड फरवरी 1989 में माननीय राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया गया, इस संबंध में 4 नवंबर 1991 को माननीय राष्ट्रपति का आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किया गया। समिति द्वारा जुलाई 1989 तक किए गए पुनर्विलोकनों के आधार पर देश के विभिन्न भागों में सरकारी कार्यालयों तथा उपक्रमों आदि में हिंदी के प्रयोग की स्थिति से संबंधित चैथा खंड माननीय राष्ट्रपति को नवंबर 1989 में प्रस्तुत किया गया, इस संबंध में 28 जनवरी 1992 को माननीय राष्ट्रपति का आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किया गया।
समिति द्वारा प्रस्तुत
प्रतिवेदन का पांचवा खंड विधायन की भाषा और विभिन्न
न्यायालयों तथा न्याधिकरणों आदि में प्रयोग की जाने वाली भाषा
से संबंधित है। पांचवा खंड माननीय राष्ट्रपति को मार्च 1992 में
प्रस्तुत किया गया, इस पर 24 नवंबर 1998 को माननीय
राष्ट्रपति के आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए।
संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन का छठा खंड समिति द्वारा
27 नवंबर 1997 को माननीय राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया गया।
यह खंड सरकार के कार्यालयों में हिंदी के प्रयोग, संघ तथा राज्य
सरकारों के बीच और संघ तथा संघ राज्य क्षेत्रों के बीच पत्राचार
में हिंदी के प्रयोग से संबंधित है। इस पर 17 सितंबर 2004 को
माननीय राष्ट्रपति के आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए
गए। समिति के प्रतिवेदन का सातवां खंड 3 मई 2002 को
माननीय राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया गया। इस खंड में समिति ने
सरकारी कामकाज में मूल रूप से हिंदी में लेखन कार्य, विधि
संबंधी कार्यों में राजभाषा हिंदी की स्थिति, सरकारी कामकाज में
राजभाषा के प्रयोग हेतु प्रचार-प्रसार, प्रशासनिक और वित्तीय
कार्यों से जुड़े प्रकाशनों की हिंदी में उपलब्धता, राज्यों में
राजभाषा हिंदी की स्थिति, वैश्वीकरण और हिंदी कंप्यूटरीकरण
एक चुनौती इत्यादि विषयों को समाहित कर संघ सरकार में हिंदी
के प्रयोग की वर्तमान स्थिति के संबंध में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत
कीं। इस पर 13 जुलाई 2005 को माननीय राष्ट्रपति का आदेश
जारी किया गया।
समिति ने दिनांक 16 अगस्त 2005 को अपने प्रतिवेदन का आठवां खंड प्रस्तुत किया, इस पर 2 जुलाई 2008 को माननीय राष्ट्रपति के आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए। समिति द्वारा प्रतिवेदन का नवा खंड माननीय राष्ट्रपति को 2 जून 2011 को प्रस्तुत किया गया जिस पर 31 मार्च 2017 को माननीय राष्ट्रपति के आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए।
संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के खंड नौ की सिफारिश संख्या दो पर माननीय राष्ट्रपति के आदेशानुसार संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के पहले 8 खंडों में स्वीकृत संस्तुतियों अथवा संशोधन के साथ स्वीकृत संस्तुतियों की समीक्षा राजभाषा विभाग द्वारा की गई और इन पर माननीय राष्ट्रपति के आदेश 6 दिसंबर 2017 को पुनः जारी किए गए हैं।
वर्तमान में संसदीय राजभाषा समिति द्वारा माननीय राष्ट्रपति के प्रतिवेदन के लिए 10वें और 11वें खंड पर कार्य किया जा रहा है। निश्चित रूप से आज संसदीय राजभाषा समिति का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। संघ की परिभाषा के अनुरूप संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी को स्थापित करना और केंद्र सरकार के कार्यालयों/ बैंकों/ उपक्रमों आदि में सुचारू रूप से कार्य हिंदी में होता रहे, इसके लिए संसदीय राजभाषा समिति की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह भूमिका इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह राजभाषा की सर्वोच्च समिति है जो न केवल केंद्र सरकार के कार्यालयों/ बैंकों/ उपक्रमों आदि के साथ बल्कि संघ की परिकल्पना के अंतर्गत सभी राज्यों से भी सामंजस्य बिठाकर राजभाषा हिंदी में कार्य करने में आने वाली समस्याओं का निदान करने में सक्षम है। राजभाषा के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर माननीय राष्ट्रपति के आदेश जारी कर राजभाषा के संवर्धन में समिति अभूतपूर्व योगदान दे रही है।
समिति ने दिनांक 16 अगस्त 2005 को अपने प्रतिवेदन का आठवां खंड प्रस्तुत किया, इस पर 2 जुलाई 2008 को माननीय राष्ट्रपति के आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए। समिति द्वारा प्रतिवेदन का नवा खंड माननीय राष्ट्रपति को 2 जून 2011 को प्रस्तुत किया गया जिस पर 31 मार्च 2017 को माननीय राष्ट्रपति के आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए।
संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के खंड नौ की सिफारिश संख्या दो पर माननीय राष्ट्रपति के आदेशानुसार संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के पहले 8 खंडों में स्वीकृत संस्तुतियों अथवा संशोधन के साथ स्वीकृत संस्तुतियों की समीक्षा राजभाषा विभाग द्वारा की गई और इन पर माननीय राष्ट्रपति के आदेश 6 दिसंबर 2017 को पुनः जारी किए गए हैं।
वर्तमान में संसदीय राजभाषा समिति द्वारा माननीय राष्ट्रपति के प्रतिवेदन के लिए 10वें और 11वें खंड पर कार्य किया जा रहा है। निश्चित रूप से आज संसदीय राजभाषा समिति का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। संघ की परिभाषा के अनुरूप संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी को स्थापित करना और केंद्र सरकार के कार्यालयों/ बैंकों/ उपक्रमों आदि में सुचारू रूप से कार्य हिंदी में होता रहे, इसके लिए संसदीय राजभाषा समिति की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह भूमिका इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह राजभाषा की सर्वोच्च समिति है जो न केवल केंद्र सरकार के कार्यालयों/ बैंकों/ उपक्रमों आदि के साथ बल्कि संघ की परिकल्पना के अंतर्गत सभी राज्यों से भी सामंजस्य बिठाकर राजभाषा हिंदी में कार्य करने में आने वाली समस्याओं का निदान करने में सक्षम है। राजभाषा के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए समय-समय पर माननीय राष्ट्रपति के आदेश जारी कर राजभाषा के संवर्धन में समिति अभूतपूर्व योगदान दे रही है।
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