भारत के पूर्वी तट और पश्चिमी तट का विस्तार से वर्णन

भौगोलिक दृष्टि से किसी भी देश की तटरेखा का अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। आधुनिक व्यापारिक युग में तो इसके अध्ययन का महत्व और भी बढ़ गया है। 

भारत की तटरेखा की लंबाई केवल 6,100 (अण्डमान, निकोबार, लक्षद्वीप को छोड़कर) किमी लम्बी है। 32.8 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत इस विशाल देश को देखते हुए तटरेखा बहुत ही कम लम्बी है। तटरेखा की लम्बाई तो कम है ही, साथ ही साथ यह सपाट भी है। सपाट तटरेखा पर अच्छे पोताश्रय नहीं मिल पाते हैं। 

भारत की तटरेखा

भारतीय तटरेखा को दो भागों में बाँटा गया है- (1) पूर्वी तट, (2) पश्चिमी तट।

(1) भारत के पूर्वी तट

पूर्वी तट के भी दो भाग किये गये हैं। (1) उत्तरी सरकार तट, (2) कोरोमण्डल तट। 

(1) उत्तरी सरकार तट - यह कृष्णा नदी के डेल्टा से लेकर गंगा नदी के डेल्टा तक विस्तृत है। नदियों द्वारा लायी हुई मिट्टी के जमा हो जाने के कारण समुद्रतट उथला है। कोलकाता के समीप हुगली नदी प्रतिवर्ष कीचड़ जमा कर देती है, जिसे समय समय पर साफ करना अत्यन्त अनिवार्य हो जाता है अन्यथा जहाजों का प्रवेश रुक जायेगा। इस कार्य में बहुत धन व्यय होता है। पुरी के समीप का समुद्रतट यात्रियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। चेन्नई और कोलकाता के बीच लगभग 1600 किमी. लम्बे समुद्रतट पर पहले र्काइे पत्तन नही  था। 

विशाखापट्टनम तथा पाराद्वीप के विकास से यह कमी पूरी हो गयी है। समुद्र शान्त रहता है तथा पोताश्रयों में बडे़-बडे़ जहाजों को ठहराने के लिए स्थान भी है। काकीनाड और मछलीपट्टनम् पत्तन भी इस तट पर हैं।

(2) कोरोमण्डल तट - पूर्वी तट के दक्षिणी भाग को कोरोमण्डल तट की संज्ञा दी गयी है। यह कुमारी अन्तरीप से कृष्णा नदी के डेल्टा तक विस्तृत एक सपाट तट है। चेन्नई के समीप समुद्र छिछला तथा बलुआ है। यहाँ एक कृत्रिम पोताश्रय का निर्माण किया गया है। समुद्र में दो ओर से कंकरीट की दीवार बनाकर लगभग 80 हेक्टेयर क्षेत्र को घेर दिया गया है। अन्य छोटे पत्तनों में पाण्डिचेरी, गुंडलुरु, नागापट्टनम, धनुष्कोडी तथा तूतुकुड़ी है। सेतुबन्ध रामेश्वरम् तीर्थयात्रियों के लिए मुख्य आकर्षण है जो इसी तट पर है।

(2) भारत के पश्चिमी तट

पश्चिमी तट को तीन भागों में बाँटा जा सकता है - (1) मालाबार तट, (2) कोंकण तट तथा (3) गुजरात तट। 

(1) मालाबार तट - इसका विस्तार गोवा से कन्याकुमारी अन्तरीप तक है। तटरेखा कटी-फटी होने के कारण प्राकृतिक पोताश्रय है किन्तु हवा के अधिक तेज चलने के कारण तट के सहारे बालू एकत्र हो जाती है। अनूप झील इस तट की विशेषता है। मंगलूर, कोचिन, अलेप्पे और कोल्लम इस तट के पत्तन है। कोच्चिन समीप समुद्र-तट के समानान्तर पृष्ठ-जल की सुविधा है।

(2) कोंकण तट - यह एक संकरी मैदानी पट्टी है जिसमें एक ओर अरब सागर तथा दूसरी ओर पश्चिमी घाट पर्वत है। इस तट के प्रमुख पत्तन मुम्बई तथा सूरत है। मुम्बई में एक नया पत्तन न्हावा शेवा विकसित किया गया है। इसे जवाहरलाल नेहरू बन्दरगाह भी कहते हैं। मुम्बई पोताश्रय के सामने 9 मीटर से 12 मीटर तक गहरा समुद्र-जल सदैव प्राप्त है। द्वीप व पश्चिमी तट के स्थलीय भाग से घिरा होने के कारण यह मानसूनी तूफानों से सदैव सुरक्षित है।

(3) गुजरात तट - यह सूरत से कच्छ तक फैला हुआ है। इसी तट पर खम्भात व कच्छ खाडि़याँ हैं। यह तट कटा-फटा है। पोरबन्दर, बोरीबन्दर, ओखा पोर्ट तथा कांदला पत्तन उल्लेखनीय हैं। विभाजन के फलस्वरूप कराची के निकल जाने से पश्चिमी समुद्रतट पर एक अच्छे पत्तन की आवश्यकता थी जिससे पंजाब, राजस्थान एवं हरियाणा राज्यों को व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त हो सकें।

इस कमी की पूर्ति के लिए कांदला का विकास किया गया है। कांदला के तटीय समुद्र में पानी की गहराई लगभग 9 मीटर रहती है। तट के निकट द्वीपों का भी विशेष महत्व होता है। भारतीय तट पर द्वीपों का भी अभाव हैं। कच्छ तथा खम्भात की खाडी़ में कुछ छोटे-छोटे द्वीप मिलते हैं। ये द्वीप मछुओं के शरण-स्थल हैं। मुम्बई साल्सेट नामक द्वीप पर बसा है। इसके निकट ही एलीफेण्टा नामक द्वीप है जो बडा़ ही रमणीय है।

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