भारत में लाख उत्पादन क्षेत्र और लाख का उपयोग

लाख (Shellac) - इस प्रकार के कीडे जो लैसिफ़र  लक्का (Lacciferlacca) या लैक - बैग (Lac bag) जाति के होते हैं, कुछ पेड़ों के रसको चूसकर लाख बनाते हैं। ये कीड़े कुसुम, पलास, गूलर, बरगद, खैर, रीठा, पीपल तथा बबूल पेड़ों की नरम डालों के रस को चूस कर लाख बनाते हैं। यह कीड़ा 305 मीटर ऊँचे, 150 सेमी. से कम वर्षा तथा 200C तापमान वाले स्थानों में बढ़ते हैं। लाख पैदा करने के लिए पेड़ों में छोटी-छोटी टहनियाँ बाँध दी जाती हैं। इन टहनियों में लाख के कीड़ों के बीज रहते हैं। ये कीड़े धीरे -धीरे पूरे पेड़ पर फैल जाते हैं।

नये पेड़ों पर लाख का कीड़ा जून, जुलाई, अक्टूबर तथा नवंबर में फैलाया जाता है। लाख तैयार होने पर एकत्र कर ली जाती है और उसको पीस कर छलनियों से छाना जाता है। उसको कई बार धोकर शुद्ध लाख, दाला लाख, संबद्ध तथा बटन लाख संबद्ध प्राप्त की जाती है।

भारत में लाख उत्पादन क्षेत्र

संसार में लाख का सबसे बड़ा उत्पादक देश भारत है। द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले भारत विश्व का 90% लाख उत्पन्न करता था और दूसरा बड़ा उत्पादक देश इग्लैण्ड था। परंतु अब भारत विश्व का केवल 50% लाख उत्पन्न करता है। थाइलैण्ड विश्व का एक-चौथाई लाख उत्पन्न करता है। भारत में लाख उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैं -

भारत में लाख उत्पादन क्षेत्र



1. झारखंड - हजारी बाग, पालम, राँची, संथाल परगना तथा सिंहभूम। छोटा नागपुर में भारत से कुल उत्पादन की आधी लाख प्राप्त होती है।

2. मध्य प्रदेश - बालाघाट, बिहारा, जबलपुर, मांडला, शहडोल तथा होशंगाबाद में लाख प्राप्त होती हैं जो देश की एक चौथाई है।

3. छत्तीसगढ़ - यहाँ बिलासपुर, रायपुर है। 

4. पश्चिम बंगाल - मुर्शिदाबाद, मालदा तथा बांकुड़ा है।

5. उड़ीसा - संबलपुर, मयूरभंज, केन्दुझरगढ़ तथा ढेकानाल है। 

6. मेघालय - गारो, खासी एवं जैन्तिया है। 

7. असम - नवगाँव, कामरूप तथा शिवसागर।

8. गुजरात - पंचमहल एवं वड़ोदरा। 

9. उत्तरप्रदेश - मिर्जापुर।

लाख की फसलें

वर्ष में लाख की चार फसलें होती हैं। बैसाखी, कतकी, अगहनी तथा जेठवी। बैसाखी फसल बड़ी होती है। यह बेर तथा पलास के वृक्षों से प्राप्त होती है। भारत के कुल उत्पादन का 62 प्रतिशत बैसाखी फसल है, जिसमें बिहार 63 प्रतिशत, मध्य प्रदेश 19 प्रतिशत और शेष अन्य राज्यों में प्राप्त होता है।

कतकी फसल से भारत का 23 प्रतिशत उत्पादन होता है। इसमें बिहार और झारखण्ड का 42 प्रतिशत और मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का 34 प्रतिशत हिस्सा होता है।

जेठवी तथा अ्रगहनी फसल से भारत का केवल 15 प्रतिशत उत्पादन होता है। जेठवी फसल का 70 प्रतिशत बिहार तथा 18 प्रतिशत मध्य प्रदेश से प्राप्त होता है। अगहनी फसल का 75 प्रतिशत बिहार तथा 15 प्रतिशत मध्य प्रदेश में प्राप्त होता है। 

लाख का उपयोग

लाख विद्युत निरोधक होता है और मद्यसार को छोड़कर अन्य साधारण द्रवों में नहीं घुलता है। चपड़े का प्रयोग विद्युत तारों की खोल तथा विद्युत मोटरों की रक्षा में किया जाता है। बिजली के बल्ब, रेडियो तथा टेलीविजन ट्यूब तैयार करने में भी इसका उपयोग किया जाता है। तेल-वाहक टैंकरों की भीतरी दीवार की रंगाई चपड़ा से की जाती है जिससे खनिज तेल का कोई प्रतिकूल रासायनिक प्रभाव न पड़े। इसका उपयोग फोटो के कामों तथा छपाई की स्याही बनाने में किया जाता है। यह विभिन्न पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिए प्रयोग में आता है। 

लाख का उपयोग सजावट के लिए वार्निश तैयार करने में होता है। दवा, पाॅलिश, आतिशबाजी तथा लेपाई में इसका महत्त्वपूर्ण उपयोग होता है। मुहर, ग्रामोफोन रेकाॅर्ड आदि निर्माण में भी इसका प्रयोग होता है।

भारत में लाख उत्पादन का मुख्य कार्य आदिवासी करते हैं। लाख को धोकर तथा पीसकर दाना लाख बनाई जाती है। कपड़े के थैलों में मिलाकर यांत्रिक विधि से शुद्ध लाख तैयार की जाती है। भारत में चपड़े के 198 कारखाने बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तथा उत्तरप्रदेश में हैं।

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