वर्षा के प्रकार || संवहनीय वर्षा, पर्वतीय वर्षा और चक्रवाती वर्षा

जल वाष्प द्रवीभूत होकर धरातल पर बूँदों के रुप में गिरता है तो उसे वर्षा कहा जाता है। वाष्प के द्रवीभूत होकर धरातल पर बूँदों के रुप में गिरने से पहले अत्य आवश्यक परिवर्तन होते हैं। जैसे- हवा का ठण्डा होकर ओस बिन्दु तक पहुँचना, बादल बनना तथा जल सीकरों का बूँदों में परिवर्तित होना आदि।

भारत के किसी न किसी भाग में वर्ष में प्रत्येक माह में वर्षा होती रहती है। जनवरी-फरवरी में शीतकालीन चक्रवात से उत्तर भारत में वर्षा होती है। मार्च में पश्चिम बंगाल तथा असम में वर्षा होती है और जून तक वर्षा होती रहती है।

(1) अधिक वर्षा वाले क्षेत्र - असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल तथा पूर्वी हिमालय के भाग आ जाते है जहां 200 सेंमी. से अधिक वर्षा होती है।

(2) अच्छी वर्षा वाले क्षेत्र - बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ, उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग एवं तमिलनाडु राज्य तथा पश्चिम बंगाल डेल्टा छोडक़र इस क्षेत्र में आते है ।

(3) साधारण वर्षा वाले क्षेत्र - पश्चिमी मध्य प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिण का पठार (दक्षिणी गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तथा कनार्टक-वृष्टिछाया प्रदेश को छोडक़र) तथा पंजाब के उत्तर-पूर्वी भाग आते है यहाँ वर्षा की अनिश्चितता के कारण अकाल की आशंका रहती है।

(4) कम वर्षा वाले क्षेत्र - राजस्थान के अधिकांश भाग गुजरात, हरियाणा तथा पंजाब का पश्चिमी भाग लद्दाख पठार, दक्षिणी पठार का वृष्टिछाया प्रदेश तथा भीतरी उडी़सा में बहुत कम वर्षा होती है। राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग में तो कही- कही 10 सेमी. से भी कम वर्षा होती है।

भारत में वर्षा के प्रकार

भारत में होने वाली वर्षा तीन प्रकार की होती है -

भारत में वर्षा के प्रकार

(1) पर्वतीय वर्षा - मानसूनी हवाओं के मार्ग में पर्वतीय अवरोध उपस्थित करके वर्षा के लिए लाभदायी होते हैं। पश्चिमी तट व खासी की पहाडि़यों के क्षेत्र में होने वाली वर्षा धरातलीय प्रभाव स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है।

(2) संवाहनीय वर्षा -  भूमध्यरेखीय प्रदेशों में ऐसी वर्षा होती है लेकिन हमारे देश के दक्षिणी भाग में भी ऐसी वर्षा हो जाती है। प्रायः अक्टबूर तथा मार्च में स्थानीय गर्मी के कारण तीसरे प्रहर आकाश में बादल छा जाते हैं और हल्की वर्षा हो जाती है। गर्म होने पर वायु हल्की होती है। ऊपर उठने पर यह ठण्डी होती है तथा पानी बरसाती है।

(3) चक्रवातीय वर्षा - भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा चक्रवातीय है।

भारतीय वर्षा की विशेषताएँ

1. भारत में होने वाली अधिकांश रूप में मानसूनी वर्षा है। इसका 85% ग्रीष्मकालीन मानसून दक्षिण-पश्चिमी हवाओं से सितम्बर माह तक होती है। इसलिए वर्ष के 8 महिने (अर्थात् दो तिहाई भाग) लगभग सूखे रह जाते है। जाडे ़ के दिनों में (अक्टबू र से फरवरी तक) 15% वर्षा होती है।

2. कभी-कभी वर्षा समय से पहले ही हो जाती है और कभी-कभी देर से। जब वर्षा नियत समय से पहले शुरू होती है, तो पहले समाप्त भी हो जाती है जिससे खेतों को उचित समय तक जल नहीं मिल पाता है। इसके ठीक विपरीत कभी-कभी वर्षा नियत समय से बहुत बाद तक होती है। प्रतिवर्ष वर्षा समान नहीं होती है। किसी वर्ष अधिक वर्षा होती है, तो किसी वर्ष कम।

3. कही वर्षा 250 सेंमी. से अधिक होती है कही 13 सेमी. से कम होती है। देश के 11% भाग में 190 सेमी. से अधिक वर्षा होती है 21% भाग में 125 से 190 सेंमी तक, 37% भाग में 72 से 125 सेमी. तक 24% भाग में 35 से 75 सेमी. तक और 7% भाग में 35 सेमी. से कम होती है।

4. देश में अनेक स्थानों पर ज्यादा वर्षा होती है। फलस्वरूप, फसलें नष्ट हो जाती है तथा नदियों में बाढे आ जाती हैं। इस प्रकार कभी ज्यादा वर्षा भी अकाल का कारण बन जाती है।

6.  मानसूनी वर्षा मसूलाधार होती है जिससे उसके अधिकांश जल का उपयोग नहीं हो पाता है। वह यों ही बहकर समुद्र में चला जाता है। वर्षा के जल की अधिक गति के कारण मिट्टी के अपरदन को भी बल मिलता है। मिट्टी के स्राव की भी समस्या कठिन हो जाती है। कई राज्य में कई दिन की औसत वर्षा प्रतिदिन 0.5 . सेमी 2.5 सेमी. होती है। इसीलिए कहा जाता है कि यहाँ वर्षा गिरती है यहाँ वर्षा कभी नहीं होती है।

भारत में वर्षा के दिन बहुत कम होते है। चेन्नई में 55 दिन, मुंबई में 75 दिन अजमेर में 45 दिन तथा कोलकाता में 118 दिन वर्षा होती है। कोलकाता में 118 दिन में 165 सेमी. वर्षा होती है जबकि लन्दन में 161 दिन में केवल 73 सेमी. वर्षा होती है।

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