बोली किसे कहते हैं बोली भाषा कैसे बनती है?

किसी भी भाषा के क्षेत्र में उस भाषा के बोले जाने वाले उपरूप को ही बोली कहा जाता है। उदाहरण के लिए हिन्दीभाषी क्षेत्र में बोली जाने वाली विभिन्न बोलियां हैं- अवधी, ब्रज, छत्तीसगढ़ी, बुंदेली, हरियाणवी आदि। बोली के अंतर्गत भी व्यक्ति बोली, स्थानीय बोली, उपबोली आते हैं। हर व्यक्ति की अपनी भाषा या बोली होती है जो अन्य व्यक्तियों की बोली एवं भाषा से भिन्न होती है। कोई दो व्यक्ति भी एक जैसी बोली नहीं बोलते। उनकी बोली में अंतर अवश्य पाया जाता है। किसी एक व्यक्ति की अपनी भाषा या बोली को ही व्यक्ति बोली कहा जाता है। स्थानीय बोली किसी बहुत छोटे क्षेत्र या स्थान में बोली जाने वाली भाषा है। उदाहरण के लिए ‘बनारसी’ एक स्थानीय बोली है जो बनारस शहर में बोली जाती है। कई स्थानीय बोलियों के सामूहिक रूप को ‘उपबोली’ कहा जाता है। उदाहरण के लिए ब्रजभाषा के क्षेत्र में भुक्सा, डांगी जैसी उपबोलीया बोली जाती हैं।

बोली कैसे बनती है?

बोलियों के बनने का प्रमुख कारण भौगोलिक है। किसी एक मूल भाषा से कई शाखाएं फूट कर अलग-अलग चली गईं और दूर-दूर जा बसीं। इन अलग-अलग शाखाओं में कुछ विशेषताएं विकसित हो गई और इस प्रकार अलग-अलग बोलियां विकसित हो गई। अतः यह कहा जा सकता है कि किसी भाषा से अन्य शाखा का अन्य से अलग होना ही बोली बनने का मुख्य कारण है। कई बार ऐसा भी होता है कि यदि कोई भाषा एक बड़े क्षेत्र में बोली जा रही है और उस क्षेत्र में दूरी के कारण एक उपक्षेत्र के लोग, दूसरे उपक्षेत्र के लोगों से नहीं मिल पाते तो उन दोनों क्षेत्रों में अलग-अलग बोलियों विकसित हो जाती हैं। हिन्दी भाषा की विभिन्न बोलियां जैसे ब्रज और अवधी भी इसी प्रकार विकसित हुई हैं। कभी-कभी राजनैतिक एवं आर्थिक कारणों से लोगों को दूर बसना पड़ता है और वहां पर नई भाषा के प्रभाव से उनकी नई बोली विकसित हो जाती हैं। 

बोली भाषा कैसे बनती है?

कई बार बोलियां इतना महत्व प्राप्त कर लेती हैं कि वह भाषा बन जाती हैं। इसके पीछे ये कारण हो सकते हैं- 
  1. कुछ बोलियां अपनी अन्य शाखाओं से अलग बची रह जाती हैं और इसलिए उनको महत्वपूर्ण समझा जाता है और वे भाषा मानी जाने लगती हैं पर ऐसा जरूरी नहीं कि हमेशा ही बोली, भाषा बन जाए। 
  2. जिस बोली में साहित्य रचना अधिक होती है वह बोली महत्वपूर्ण हो जाती है। 
  3. धार्मिक श्रेष्ठता भी बोली के महत्व को बढ़ा देती है। जैसे अयोध्या की बोली अवधी और मथुरा की बोली ब्रज को अन्य बोलियों से अधिक महत्व मिला है। ब्रज को तो ब्रजभाषा ही कहा जाता है। 
  4. बोली के महत्वपूर्ण होने का एक प्रमुख कारण है- राजनीति। जहां राजनीति का मुख्य केंद्र होगा वहाँ की बोली, भाषा का दर्जा पा जाती है। उदाहरण के लिए दिल्ली के समीप की खड़ी बोली आज अन्य हिन्दी भाषा भाषी प्रान्तों की प्रमुख भाषा है। उसने अन्य बोलियों जैसे अवधी, मैथिली और ब्रज जैसे प्राचीन एवं महत्वपूर्ण बोलियों को दबाकर अपना स्थान बना लिया है। 
  5. कई बार कोई बोली विशेष शिक्षा का माध्यम, सेना में स्वीकृत होने के कारण, व्यापारिक कारणों, विज्ञान आदि में प्रयोग के कारण महत्वपूर्ण हो जाती है।

भाषा एवं बोली में अंतर 

भाषा एवं बोली में बहुत अंतर पाया जाता है। उनमें से कुछ अंतर इस प्रकार हैं- 
  1. भाषा बड़े क्षेत्र में बोली जाती है जबकि बोली अपेक्षाकृत छोटे क्षत्रे में बोली जाती है। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा भारत के कई राज्यों में बोली जाती है जैसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि जबकि इन क्षेत्रों में बोली जाने वाली ब्रज, अवधी आदि सीमित क्षेत्र में बोली जाती है। 
  2. एक भाषा के अंतर्गत कई बोलियां आ सकती हैं परंतु एक बोली के अंतर्गत कई भाषाएं नहीं हो सकतीं। 
  3. भाषा का मानक रूप अवश्य होता है जबकि बोली का कोई मानक रूप नहीं होता। 
  4. भाषा स्वायत्त होती है जिसका परिचय प्रायः स्वतंत्र रूप से दिया जाता है। इसके विपरीत बोली की पहचान इस बात से होती है कि वह किस भाषा की है। 
  5. भाषा शासन के कार्यों, शिक्षा, साहित्यिक रचनाओं का निर्माण करने के काम आती है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो बोली इन सबके काम नहीं आती। हां लोक साहित्य की रचना अवश्य बोली में की जाती है। 
  6. किसी एक भाषा की बोलियांे को बोलने वाले एक-दूसरे की बात को समझ लेते हैं परंतु किसी एक भाषा को बोलने वाला प्रायः दूसरी भाषा को नहीं समझ सकता। उदाहरण के लिए हिन्दी-भाषी, तमिल या तेलुगु भाषा को नहीं समझ सकता जबकि हिन्दी की ही दो बोलियां-े बुन्देली एवं ब्रज को बाले ने वाले लोग एक-दूसरे की बात को समझ सकते हैं। 
  7. भाषा, बोली से अधिक प्रतिष्ठित होती है इसलिए औपचारिक परिस्थितियांे में भाषा का प्रयोग होता है। 
  8. बोली बाले ने वाले लोग अपने क्षेत्र के लोगों से सम्प्रेषण के लिए बोली का प्रयोग करते हैं जबकि बाहरी क्षेत्र के व्यक्ति के लिए भाषा का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार यह दृष्टिगत होता है कि भाषा एवं बोली का अंतर वैज्ञानिक न होकर समाजशास्त्रीय है।

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