जानकी वल्लभ शास्त्री का जीवन परिचय एवं प्रमुख रचनाएँ

श्री जानकी वल्लभ शास्त्री का जन्म 5 फरवरी, 1916 में बिहार के मैगरा गांव में हुआ था। श्री जानकी वल्लभ शास्त्री के पिता का नाम श्री रामानुग्रह शर्मा था। श्री जानकी वल्लभ शास्त्री के पिता का देहांत जानकी वल्लभ के बचपन के समय में ही हो गया था। उन्हें पशुओं का पालन करना बहुत ही पसंद था। श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की पत्नी का नाम छाया देवी है। जानकी वल्लभ शास्त्री ने11 वर्ष की आयु में ही 1927 में बिहार-उड़ीसा की सरकारी संस्कृत परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। 16 वर्ष की आयु में शास्त्री की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले गए। वे वहाँ 1932 से 1938 तक रहे। उनकी विधिवत् शिक्षा-दीक्षा तो संस्कृत में ही हुई थी, लेकिन अपनी मेहनत से उन्हांने े अंग्रेज़ी और बांग्ला का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। 

छोटी उम्र में ही अपने पिता के देहांत के कारण वे आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे थें आर्थिक समस्याओं के निवारण के लिए उन्होंने बीच-बीच में नौकरी भी की थी। 1936 में लाहौर में अध्यापन कार्य किया 1934-35 में इन्होंने साहित्याचार्य की उपाधि स्वर्णपदक के साथ अर्जित की और पूर्वबंग सारस्वत समाज ढाका के द्वारा साहित्यरत्न घोषित किए गए।

साल 2011 में 7 अप्रैल को मुज़फ्फऱपुर में उनके निवास-स्थान ‘निराला निकतेन’ में श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की मृत्यु हो गई ।

जानकी वल्लभ शास्त्री का जीवन परिचय
जानकी वल्लभ शास्त्री

जानकी वल्लभ शास्त्री की प्रमुख रचनाएँ

जानकी वल्लभ शास्त्री की प्रमुख रचनाएँ हैं- ‘राधा,’ ‘एक किरण, सौ झाइयाँ,’ ‘दो तिनकों का घोंसला,’ ‘अश्वबुद्ध,’ ‘कालिदास,’ ‘कानन,’ ‘अपर्णा,’ ‘लीला कमल,’ ‘सत्यकाम,’ ‘बांसों का झुरमुट,’ ‘अजन्ता की ओर,’ ‘निराला के पत्र,’ ‘स्मृति के वातायन,’ ‘नाट्î सम्राट् पृथ्वीराज कपूर,’ ‘हंस-बलाका’ आदि!

उन्होंने 16 साल की आयु में ही लिखना आरंभ किया था। उनकी पहली रचना ‘गाेवन्दगानम्’ है जिसकी पदशय्या को कवि जयदेव से अबोध स्पद्र्धा की विपरिणति मानते है।। वे हिन्दी काव्यजगत् में छायावादी युग के कवि के रूप में प्रख्यात रह े हैं, किन्तु बचपन से ही उनकी प्रवृत्ति संस्कृत काव्यरचना में थी। 19 वर्ष की आयु में, 1935 में उनकी संस्कृत काव्य रचनाओं का प्रथम संकलन ‘काकली’ प्रकाशित हुआ था।

‘रूप-अरूप’ और ‘तीन-तरंग’ के गीतों के बाद ‘कालन’, ‘अपर्णा’, ‘लीलाकमल’ और ‘बासं ांे का झुरमुट’- उनके चार कथा संग्रह प्रकाशित हुए। उनके द्वारा लिखित चार समीक्षात्मक ग्रंथ-’साहित्यदर्शन’, ‘चिंताधारा,’ ‘त्रयी’, और ‘प्राच्य साहित्य’ हिन्दी में भावात्मक समीक्षा के सर्जनात्मक रूप के कारण समादृत हुए। 1945-50 तक इनके चार गीति काव्य प्रकाशित हुए-’शिप्रा’, ‘अवन्तिका’,’ मेघगीत’ और ‘संगम’। कथाकाव्य ‘गाथा’ का प्रकाशन सामाजिक दृष्टिकोण से क्रांतिकारी है। इन्होंने एक महाकाव्य ‘राधा’ की रचना की जो सन 1971 में प्रकाशित हुई।

’हसं बलाका’ गद्य महाकाव्य की इनकी रचना हिन्दी जगत् की एक अमूल्य निधि है। छायावादोत्तर काल में प्रकाशित पत्र-साहित्य में व्यक्तिगत पत्रों के स्वतंत्र संकलन के अंतर्गत शास्त्री द्वारा संपादित ‘निराला के पत्र’ (1971) उल्लेखनीय है। 

जानकी वल्लभ शास्त्री की प्रमुख कृतियाँ संस्कृत में- ’काकली’, ‘बंदीमंदिरम्’, ‘लीलापद्मम्’, हिन्दी में ‘रूप-अरूप’, ‘कानन’, ‘अपर्णा’, ‘साहित्यदर्शन’, ‘गाथा’, ‘तीर-तरंग’, ‘शिप्रा’, ‘अवन्तिका’, ‘मघ्े ागीत’, ‘चिंताधारा’, ‘प्राच्यसाहित्य’, ‘त्रयी’, ‘पाषाणी’, ‘तमसा’, ‘एक किरण सौ झाइयाँ’, ‘स्मृति के वातायन’, ‘मन की बात’, ‘हसं बलाका’, ‘राधा’ आदि प्रमुख है। 

ये किशोरावस्था में ही, संस्कृत कवि के रूप में मान्यता एवं प्रसिद्धि पा चुके थे। 1931 से 1941 तक दस वर्षां े के अपने रचनाकाल में जानकीवल्लभ शास्त्री ने संस्कृत काव्यधारा के दिक्परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

पुरस्कार एवं सम्मान

उन्हें उनके लेखन के लिए बहुत से सम्मानों से नवाज़ा गया, जिनमें दयावती पुरस्कार, राजेन्द्र शिखर सम्मान, भारत-भारती सम्मान, साधना-सम्मान, शिवपजू न सहाय सम्मान शामिल हैं। जब उन्हें साहित्य में उनके योगदान के लिए बिहार का सबसे सर्वश्रेष्ठ और प्रतिष्ठित ‘राजेन्द्र शिखर सम्मान’ दिया गया,

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