लक्ष्मीनारायण लाल का जीवन परिचय, प्रमुख नाटक

डाॅ. लक्ष्मीनारायण लाल स्वातंत्र्योत्तर भारत के प्रमुख नाटककारों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी नाट्य-साहित्य की उस परंपरा को आगे बढ़ाया, जो आधुनिक काल में भारतेंदु युग में शुरू हुई थी तथा जिसका प्रसाद युग में प्रवर्तन हुआ।
लक्ष्मीनारायण लाल का जीवन परिचय

लक्ष्मीनारायण लाल का जीवन परिचय

डाॅ. लक्ष्मीनारायण लाल का जन्म 4 मार्च, 1925 को बस्ती जनपद के ग्राम जलालपुर में हुआ। लक्ष्मीनारायण लाल ने बहादुरपुर प्राइमरी स्कूल से आरंभिक शिक्षा प्राप्त की। बस्ती के सक्सेरिया काॅलेज से इन्होंने सन् 1946 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय पढ़ने चले गए। आर्थिक अभावों को दूर करने हेतु वे प्रूफ रीडिंग तथा लेखन कार्य करके विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे। शीघ्र ही वे रेडियो के लिए लिखने लगे। इनका पहला एकांकी ‘ताजमहल के आंसू’ विश्वविद्यालय की पत्रिका में छपा तथा दीक्षांत समारोह में उसका मंचन भी हुआ। 

डी. फिल करने के बाद ये एम. एस. काॅलेज चंदौसी में हिंदी के प्राध्यापक बन गए। इलाहाबाद में सी. एम. पी. डिग्री काॅलेज में डाॅ. लाल हिंदी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। बाद में लखनऊ आकाशवाणी केंद्र पर इनको ड्रामा प्रोड्यूसर का पद मिल गया। 

सन् 1964 ई. में डाॅ. लाल दिल्ली विश्वविद्यालय की नौकरी छोडक़र नेशनल बुक ट्रस्ट में संपादक नियुक्त हो गए। अंत में नौकरी छोडक़र स्वतंत्र लेखन द्वारा अपनी आजीविका चलाने लगे। हिंदी नाट्य जगत में उन्होंने जो कीर्तिमान स्थापित किए, वे चिरस्मरणीय रहेंगे।

लक्ष्मीनारायण लाल के प्रमुख नाटक

 उन्होंने लगभग 16-17 नाटकों की रचना की है। उनके प्रमुख नाटकों का परिचय इस प्रकार हैं-
  1. मादा कैक्टस
  2. अंधा कुआं
  3. दर्पण
  4. कलकी
  5. मिस्टर अभिमन्यु
  6. सूर्यमुख
  7. कफ्र्यू
  8. सुंदर रस
  9. रक्त कमल
  10. अब्दुल्ला दीवाना
लक्ष्मीनारायण लाल ने अपने साहित्य जीवन में अनेक नाटक का सृजन करके हिंदी नाट्य-साहित्य की अभिवृद्धि में योगदान दिया। इन्हें रंगमंच का गहरा ज्ञान था। उनके प्रायः सभी नाटक रंगमंच की दृष्टि से सफल नाटक हैं और प्रायः सभी सफलता के साथ रंगमंच पर अभिनीत हो चुके हैं। इनके नाटक अधिक लंबे न होने के कारण दर्शकों को बाधे रखने में सफल है। रंगमंच की सफलता के लिए नाटकों में पात्रों की संख्या सीमित होना भी आवश्यक माना गया है क्यांेिक इससे न केवल रंगमंच के व्यवस्थापकों सुविधा रहती है, अपितु दर्शक भी असुविधा का सामना नहीं करते। इस दृष्टि से भी इनके नाटक सफल नाटक हैं क्योंकि इनके नाटकों मे पात्रों की संख्या सीमित है। इनके नाटकों में पात्रों की सीमित संख्या के साथ ही संवाद भी छोटे-छोटे तथा रोचक हैं। संवादों का छोटा व रोचक होना भी इनके नाटकों की रंगमंचीय सफलता का द्योतक है।

डाॅ. लक्ष्मीनारायण लाल के सभी नाटकों में भाषा का सार्थक प्रयोग हुआ है। उन्होंने अपने पात्रों के हृदयगत राग-द्वेष, हर्ष-विषाद, संतोष-असंतोष आदि की अभिव्यक्ति भाषा के द्वारा ही की है। उन्होंने प्रायः पात्रानुकूल एवं प्रसंगानुकलू भाषा का ही प्रयोग किया है। इनकी भाषा आम बोलचाल की खड़ी बोली है। इनकी भाषा में तत्सम, तद्भव तथा विदेशी (अंग्रेजी और उर्दू) शब्दों का खुलकर प्रयोग हुआ है। 

डाॅ. लक्ष्मीनारायण लाल के पात्र उनके नाटकों में अविभाज्य अंग लगते हैं। पात्रों का चरित्र-चित्रण करने के लिए उनके कार्यों तथा गतिविधियों का भी लेखक ने समुचित परिचय दिया है। अपने नाटकों में लक्ष्मीनारायण लाल पात्रों के परस्पर वार्तालाप  उनकी चारित्रिक विशेषताओं को उद्घाटित करते हैं।

Bandey

मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता (MSW Passout 2014 MGCGVV University) चित्रकूट, भारत से ब्लॉगर हूं।

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