मालवी भाषा का परिचय, प्रमुख उपबोलियां, सीमा क्षेत्र

मालवी भारत के मालवा क्षेत्र की भाषा है। मालवा क्षेत्र का भू-भाग अत्यंत विस्तृत है। पूर्व दिशा में बेतवा नदी, उत्तर-पश्चिम में चम्बल और दक्षिण में पुण्य सलिला नर्मदा नदी के बीच का प्रदेश मालवा है। मालवा क्षेत्र मध्यप्रदेश और राजस्थान के लगभग बीस जिलों में विस्तार लिए हुए हैं। इन क्षेत्रों के दो करोड़ से अधिक निवासी मालवी और उसकी विविध उपबोलियों का व्यवहार करते हैं। वर्तमान में मालवी भाषा का प्रयोग मध्यप्रदेश के उज्जैन संभाग के आगर मालवा, नीमच, मन्दसौर, रतलाम, उज्जैन, देवास एवं शाजापुर जिलों, इंदौर संभाग के धार, झाबुआ, अलीराजपुर, हरदा और इंदौर जिलों, के सीहारे , राजगढ, भोपाल, रायसेन और विदिशा जिलों, ग्वालियर संभाग के गुना जिले, राजस्थान के झालावाड़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा एवं चित्तौड़गढ़ जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में होता है। मालवी की सहोदरा निमाड़ी भाषा का प्रयोग बडवानी, खरगोन, खंडवा, हरदा और बुरहानपुर जिलों में होता है।

मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में मालवी तथा अन्य निकटवर्ती बोलियों जैसे निमाड़ी, बुंदेली आदि के मिश्रित रूप प्रचलित हैं। इन जिलों में हरदा, होशंगाबाद, बैतूल, छिन्दवाड़ा हैं। 

मालवी का केन्द्र उज्जैन, इंदौर, देवास और उसके आसपास का क्षेत्र है। इसी मध्यवर्ती मालवी को आदर्श या केंद्रीय मालवी कहा जाता है, जो अन्य निकटवर्ती बोलियों के प्रभाव से प्रायः अछूती है। आगर मालवा जिला तो प्रसिद्ध ही मालवा उपनाम से है क्योंकि जानकारों के अनुसार बहुत ज्यादा हद तक केंद्रीय या आदर्श मालवी इस जिले में ही बोली जाती है। केंद्रीय या आदर्श मालवी के अलावा मालवी के कई उपभेद या उपबोलियां भी अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं।

मालवी की प्रमुख उपबोलियां

मालवी के कई उपभेद या उपबोलियां अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। मालवी की प्रमुख उपबोलियां है-
  1. केंद्रीय या आदर्श मालवी 
  2. सोंधवाड़ी
  3. रजवाड़ी 
  4. दशोरी या दशपुरी
  5. उमठवाड़ी
  6. भीली
1. केंद्रीय या आदर्श मालवी - इंदौर-उज्जैन जिले शुद्ध मालवी के मध्यवर्ती या केंद्रीय क्षेत्र कहे जाएंगे । अन्य क्षेत्रां े की मालवी बाले ी पर विभिन्न निकटवर्ती बोलियों जैसे बुंदेलखंडी, गुजराती, मेवाडी़ , हाड़ौती, निमाड़ी आदि बोलियां  का पर्याप्त प्रभाव है। 

2. सोंधवाड़ी - सोंधवाड़ी बोली और संस्कृति अपनी विशिष्ट पहचान रखती है। सोंधिया राजपूत समाज की बहुलता लिए यह क्षेत्र मालवा और राजस्थान की संधि रेखा के आसपास है, जिसका विस्तार उज्जैन और शाजापुर जिले के उत्तरी भाग, पूर्वी मंदसौर और आलोट (रतलाम) से लेकर राजस्थान के झालावाड़ जिले के दक्षिणी हिस्से तक ह।ै कुल मिलाकर सोंधवाड़ अंचल मध्य प्रदेश के पाचं जिलां-े शाजापुर, उज्जैन, रतलाम, राजगढ़, मंदसौर जिले और राजस्थान के झालावाड़ जिले के हिस्सों को समेटता है।

3. रजवाड़ी या रांगड़ी - रजवाड़ी या रांगड़ी भी मालवी की एक महत्वपूर्ण उपबोली है। डॉ. ग्रियर्सन ने 1907 में राजस्थानी एवं मालवी का भाषाई सर्वेक्षण किया था, तब उन्होंने े रांगड़ी एवं सोंधवाड़ी को मालवी की उपबोली के रूप में मान्यता दी थी। रांगड़ी या रजवाड़ी रतलाम, मंदसौर एवं झाबुआ जिले का शहरी भाग रजवाड़ी अथवा रांगड़ी का क्षेत्र माना जाता है। मालवी का भाषागत यह रांगड़ी रूप एक विशिष्ट परंपरा एवं संस्कृति का भी परिचायक है। नाम से ही स्पष्ट है कि रजवाड़ी राजस्थानी भाषा से प्रभावित है। रतलाम जिले का भाग शुद्ध रजवाड़ी का क्षेत्र कहा जा सकता है। झाबुआ की शहरी एवं मध्यमवर्गीय जनता रजवाड़ी का ही प्रयोग करती है। रजवाड़ी
का क्षेत्र सोंधवाड़ी से अधिक व्यापक है।

4. दशोरी या दशपुरी - मंदसौर का प्राचीन नाम दशपुर है। इसलिए मंदसौर एवं नीमच जिले की मालवी की उपबोली को दशोरी या दशपुरी मालवी संज्ञा दी जाती है। दशोरी मालवी पर मेवाड़ी, हाड़ौती, सोंधवाड़ी और रजवाड़ी का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। 

5. उमठवाड़ी  - मध्य प्रदेश का राजगढ़ जिला उमठवाड़ क्षेत्र कहलाता है। इसके अंतर्गत जीरापुर, माचलपुर, खिलचीपुर, राजगढ,़ ब्यावरा, पचारे , सारगं परु और नरसिंहगढ़ तहसीले आती है। यह पूरा क्षेत्र उमठवाड़ राजपूतों की बहुलता के कारण उमठवाड़ कहलाता है तथा यहां की बोली उमठवाड़ी कही जाती है। यहाँ के ग्रामीण अंचलों के लोग उमठवाड़ी ही बालेते है।

6. भीली - मालवा में भीली का क्षेत्र उसके दक्षिण-पश्चिम का भाग है। दक्षिण में जहां यह मराठा से सम्पृक्त हुई है, वहीं पश्चिम में इसका संबंध गुजराती से होता है। मालवा में भीली क्षेत्र है- “मध्य प्रदेश के उज्जैन, इंदौर, धार, झाबुआ, रतलाम तथा दशपुर आदर्श मालवी के प्रसार क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में धार, झाबुआ और रतलाम भील बहुल क्षेत्र हैं। भील जनजाति द्वारा प्रयुक्त भीली बोली का मालवी के साथ गहरा संबंध है। भीली के अनेक शब्द मालवी में घुल-मिल गए हैं, तो मालवी के अनेक शब्दों को भीली ने समाहित कर लिया है। इस अर्थ में भीली मालवी की ही एक उपबोली कही जा सकती है। 

मालवी भाषा का सीमा क्षेत्र

मालवा भारत का हृदय अंचल है। वर्तमान में मालवी भाषा का प्रयोग मध्य प्रदेश के उज्जैन संभाग के नीमच, मंदसौर, रतलाम, उज्जैन, देवास एवं शाजापुर जिलों, इंदौर संभाग के धार, झाबुआ, अलीराजपुर, हरदा और इंदौर जिलों, भोपाल संभाग के सीहो,राजगढ़, भोपाल, रायसेन और विदिशा जिलों, ग्वालियर संभाग के गुना जिले, राजस्थान के झालावाड़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा एवं चित्तौड़गढ़ जिलों के सीमावर्ती क्षेत्र में होता है। 

मालवी की सहादेरा निमाड़ी भाषा का प्रयोग बडवानी, खरगोन , खडंवा, हरदा और बुरहानपुर जिलों मे होता है। मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में मालवी तथा अन्य निकटवर्ती बोलियों जैसे निमाड़ी, बुन्देली के मिश्रित रूप प्रचलित है। इन जिलों में हरदा, होशंगाबाद, बैतूल, छिंदवाड़ा आदि उल्लेखनीय हैं। 

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