मानव भूगोल क्या है? परिभाषा, उद्देश्य, शाखाएं

मानव भूगोल क्या है

मानव भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा है जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ संबंधों का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल को भूगोल की आधारभूत शाखा माना जाता है जिसमें अध्ययन का केन्द्र बिन्दु मानव है। किसी प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियाँ, भू संरचना, जलवायु, जलराशि, वनस्पति, खनिज सम्पत्ति, जीव-जन्तु आदि का मानव के रहन-सहन, कार्य-कलाप और आचार-विचारों पर क्या प्रभाव पड़ता है और मानव किस प्रकार इन भौगोलिक तत्त्वों को अपने कार्यों के लिए उपयोग में लाता है इन तथ्यों का समनियत अध्ययन मानव भूगोल में ही किया जाता है।

19 वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में जर्मनी के प्रख्यात भूगोलवेत्ता फ्रेड्रिक रेटजेल, जो मानव भूगोल के जन्मदाता कहे जाते हैं, ने 1882 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ में मानव के कार्यकलापों के अध्ययन को प्रमुखता दी। रेटजेल ने भूगोल के क्रमबद्ध अध्ययन के लिए एक नवीन प्रणाली को जन्म दिया। 

रेटजेल के अनुसार- ‘‘मानव भूगोल के दृश्य सर्वत्र वातावरण से सम्बन्ध हैं जो भौतिक दिशाओं का योग होता है।’

मानव भूगोल की परिभाषाएँ

1. फ्रांसीसी विद्वान प्रो. ब्लाश- ‘‘मानव भूगोल पृथ्वी और मानव के पारस्परिक संबंधों को एक नया विचार देता है, जिसमें पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों का तथा पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवों के पारस्परिक संबंधों का अधिक संयुक्त ज्ञान उपलब्ध होता है।’’

2. प्रो. जीन्स के अनुसार- ‘‘मानव भूगोल उन सभी तथ्यों का अध्ययन है जो मानव के क्रियाकलापों से प्रभावित है और जो हमारी पृथ्वी के धरातल पर घटित होने वाली घटनाओं में से छाँटकर विशेष श्रेणी में रखे जा सकते हैं।

3. प्रो. हटिंगटन- ‘‘मानव भूगोल भौगोलिक वातावरण और मनुष्य के कार्यकलाप एवं गुणों के पारस्परिक सम्बन्ध के स्वरूप और वितरण का अध्ययन है।’’ 4. रैटजेल- ‘‘मानव भूगोल के दृश्य सर्वत्र वातावरण से सम्बन्धित होते हैं, जो स्वयं भौतिक दशाओं का योग होता है।’’

5. कुमारी सेम्पल- ‘‘मानव भूगोल क्रियाशील मानव और अस्थिर पृथ्वी के परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।’’

6. डिमाजियाँ- ‘‘मानव भूगोल की समस्याओं पर लिखे गए लेखों के अनुसार मानव भूगोल समुदायों और समाजों का भौतिक वातावरण से संबंधों का अध्ययन है।’’

7. डेविस के अनुसार- ‘‘मानव भूगोल मुख्यतः प्राकृतिक वातावरण और मानव कार्यकलाप दोनों ही के पारस्परिक सम्बन्ध और उस सम्बन्ध के परिणाम के पार्थिवस्वरूप की खोज है अथवा प्राकृतिक वातावरण के नियंत्रण को उनके आधार के रूप में सिद्ध करने का प्रयास है।

8. लेबान के अनुसार- ‘‘मानव भूगोल एक समष्टि भूगोल है, अर्थात् विस्तृत स्वरूप वाला जिसके अन्तर्गत मानव और उसके वातावरण के बीच के संबंधों के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली समान्य समस्याओं का स्पष्टीकरण किया जाता है।’’

मानव भूगोल का उद्देश्य

मानव भूगोल का उद्देश्य विश्व के विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले मानव समूह एवं वहाँ के वातावरण से सम्बन्धित संसाधनों के प्रयोग से उस प्रदेशों के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य का अध्ययन करना है।

मानव भूगोल का अध्ययन मात्र मानव पारिस्थितिकी तक ही सीमित नहीं है बल्कि उससे कहीं व्यापक, क्योंकि मानव भूगोल में प्राकृतिक वातावरण का ही नहीं वरन् सांस्कृतिक वातावरण का भी अध्ययन किया जाता है जबकि मानव परिस्थितियों में प्राकृतिक वातावरण की क्रियाओं का मानव पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका अध्ययन करते हैं, परन्तु सांस्कृतिक वातावरण में मानव की शक्तियों, तथ्यों, प्रक्रियाओं तथा प्रभावों एवं उनके द्वारा किए गए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है।

मानव एवं भूगोल में यह विश्लेषण किया जाता है कि पृथ्वी के किसी क्षेत्र में रहने वाला कोई मानव समूह अपने जैविक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विकास के लिए वातावरण का किस प्रकार प्रयोग करता है। इसमें मानव समूह द्वारा किए गए विभिन्न वातावरण समायोजन और उनके संगठन का अध्ययन किया जाता है।

मानव भूगोल की शाखाएं

मानव भूगोल, भूगोल की वह शाखा है जो मानव समाज के क्रियाकलापों और उनके परिणामस्वरूप बने भौगोलिक प्रतिरूपों का अध्ययन करता है। इसके अन्तर्गत मानव के राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक पहलु आते हैं।

प्रो. राॅक्सबी ने मानव भूगोल निम्न शाखाओं में विभाजित किया है- 
  1. आर्थिक भूगोल, 
  2. सामाजिक भूगोल, 
  3. राजनीतिक भूगोल, 
  4. ऐतिहासिक भूगोल, 
  5. सामरिक भूगोल और 
  6. प्रजातीय भूगोल।
1. आर्थिक भूगोल- आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की ही एक शाखा है जिसका मुख्य सम्बन्ध मनुष्य के भोजन, विश्राम, कपड़ों और आराम की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए मनुष्य द्वारा किए गए उत्पादक प्रयत्नों से ही है। विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में मानव समुदाय अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न जीविकोपार्जन के साधनों-लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, शिकार करना, खेती करना, भोज्य पदार्थ एकत्रित करना, खानें खोदना, उद्योगधन्धे चलाना, व्यापार करना और नौकरी आदि व्यवसाय में लगे रहना- में व्यस्त रहता है। उसके इन आर्थिक प्रयत्नों पर मिट्टी, भूमि की बनावट, जलवायु, वनस्पति, खनिज संसाधन भौगोलिक स्थिति, यातायात की सुविधा, जनसंख्या का घनत्व आदि वातावरण के विभिन्न अंगों के प्रभाव का मूल्यांकन कर उसका विश्लेषण करना है। 

इसके अतिरिक्त विकास की सन्तुलित अवस्था प्राप्त करने के लिए कृषि और औद्योगिक दृष्टि से पृथ्वी के विभिन्न भागों में प्राकृतिक साधनों की सुरक्षा का अध्ययन, आर्थिक उपयोग के लिए उनकी जाँच करना ही आर्थिक भूगोल का कार्य है।

2. सामाजिक भूगोल- सामाजिक भूगोल का उद्देश्य यह बताता है कि मानव समाज चाहे वह परम्परागत, ग्रामीण और शहरी हो तो भी उसके परिस्थिति विज्ञान के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध है। मानव अपने विशिष्ट भौगोलिक वातावरण के बीच समान, भोजन और आश्रय तथा प्राकृतिक साधनों पर नियंत्रण करने हेतु निरन्तर द्वन्द करता रहता है। उसके इस द्वन्द की प्रकृति और वातावरण का चरित्र ही समाज के मुख्य पहलुओं और लक्षणों को निर्धारित करते हैं। हम चाहें कनाडा के जंगल के लकड़हारा समुदाय, मलेशिया के रबर के खेतों में काम करने वाले मजदूरों, लंकाशायर की कोयले की खानों में काम करने वाले श्रमिकों, मेक्सिको के उच्च प्रदेशों में पशु चराने वाले घुमक्कड़ पशुपालक तथा हंगरी के मैदान में खेती करने वाले कृषकों आदि किसी के बारे में छानबीन करें तो उनकी क्रियाओं पर भौगोलिक छाप स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होगी। उनकी सामाजिक व्यवस्था और सामाजिक जीवन का ताना.बाना उनके अपने वातावरण से सम्बन्धित ही मिलेगा।

3. मानव भूगोल और राजनीतिशास्त्र- राजनीति विज्ञान के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु ‘शासन व्यवस्था’ है। इसमें विभिन्न राष्ट्रों एवं राज्यों की शासन प्रणालियों, सरकारें, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध आदि का अध्ययन किया जाता है। राजनीतिक भूगोल मानव भूगोल की एक शाखा है जिसमें राजनीतिक रूप से संगठित क्षेत्रों की सीमा, विस्तार, उनके विभिन्न घटकों, उपविभागों, शासित भूभागों, संसाधनों आन्तरिक तथा विदेशी राजनीति सम्बन्ध आदि का अध्ययन सम्मिलित होता है। 

4. ऐतिहासिक भूगोल- ऐतिहासिक भूगोल का प्रयास इस बात को स्पष्ट करने में रहता है कि एक राष्ट्र के ऐतिहासिक भाग्य के पीछे भौगोलिक अवस्थाओं का अवश्यम्भावी प्रभाव रहता है यद्यपि यह सर्वविदित है कि सम्पूर्ण ऐतिहासिक नाटक खेले जाने वाले कई आकस्मिक घटनाएँ तथा शासकों की व्यक्तिगत कुशलता छिपी होती है लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि धरातल, स्थिति, प्राकृतिक बाधाएँ, भौगोलिक एकान्तता और राज्य या प्रदेश का विस्तार आदि ऐसी भौगोलिक अवस्थाएँ हैं जो राष्ट्र के ऐतिहासिक भाग्य को निर्धारित करने में एक निश्चित शक्ति के अनुरूप काम करती हैं। अगर यूरेशिया महाद्वीप के इतिहास का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि किस प्रकार भौगोलिक अवस्थाओं ने उसके सम्पूर्ण ऐतिहासिक मार्ग को निर्धारित किया है।

5. सामरिक भूगोल- सामरिक भूगोल का उद्देश्य थल तथा जल में भौगोलिक चरित्र का युद्ध की सैनिकता पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट करना है। इतिहास के पृष्ठों में अंकित की गई कई घटनाएँ जैसे- पारसी सेना का रजिनियन सागर से पुरू को निकालने का प्रयत्न, एलेक्जेण्डर के साम्राज्य में ग्रीक और फोनियनन्स पर मैकडीनियन्स का आक्रमण, भूमध्य सागर से रोमन सन्त को उखाड़ फैंकने के लिए काथोज से छैनीवाल की ऐतिहासिक चढ़ाई और नेपोलियन द्वारा उत्तरी इटली, फ्रांस और प्रशा में युद्ध थल और जल के भौगोलिक चरित्र का सही मूल्यांकन कर लड़ गए थे। जिससे शत्रुओं के विरूद्ध सैनिक सर्वोपरिता स्थापित रह सके। सामरिक भूगोल के अध्ययन का सही विस्तार सेनाओं के अध्यक्ष और जल सेना के नायकों द्वारा ही हुआ है और इन्हीं के प्रयत्नो से इसके सही क्षेत्र का निर्माण हुआ है। 

6. प्रजातीय भूगोल- इसमें मानव जाति के विकास से लेकर उसकी संस्कृति और सभ्यता तक का विशद विश्लेषण किया जाता है। इसके दो भाग माने गए हैं। एक भाग में मानव शरीर एवं जीव प्रकृति में मानव का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत प्रजाति की विभिन्नताएँ, मानव प्राणी का विकास, शारीरिक ढ़ाँचे में अन्तर और प्राणी पर वातावरण का प्रभाव आदि विषय सम्मिलित किए जाते हैं इसे शारीरिक मानव शास्त्र कहा जाता है।

दूसरे भाग में मानव संस्कृति का अध्ययन किया जाता है संस्कृति के अन्तर्गत- रीति.रिवाज, सामाजिक संगठन आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्था, विज्ञान, कला, धर्म, विश्वास, परम्पराएँ, धर्म नैतिकता, यंत्र उपकरण आदि सभी बातें आती हैं।

इसे सांस्कृतिक मानव शास्त्र कहा जाता है। ‘बील्स’ और हाइजर ने मानव संस्कृति शास्त्र के बारे में लिखा है-‘‘यह मानव संस्कृतियों की उत्पत्ति एवं इतिहास, उनका उद्भव और विकास तथा प्रत्येक स्थान तथा काल के मानव संस्कृति के ढ़ाँचों एवं कार्यप्रणालियों का अध्ययन करता है। यह संस्कृति मानव तथा अपने वातावरण से सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए निर्मित करता है।

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