मोहन राकेश का जीवन परिचय, कृतित्व

मोहन राकेश का जन्म अमृतसर में 8 जनवरी, 1925 में हुआ । इनका मूल नाम मदन मोहन गुगलानी था। उनकी दीदी ने लिखने के लिए उसे नया नाम चुन दिया । नया नाम था मदन मोहन राकेश । बाद में उन्होंने स्वयं परिवर्तित कर मोहन राकेश कर डाला । मोहन राकेश के पिता श्री करमचंद गुगलानी वकालत करते थे । मोहन राकेश के दादा परम वैष्णव थे। उन्होंने दो विवाह किए थे । राकेश के पिता दूसरी पत्नी के बेटे थे। 

राकेश ने पहला विवाह सुशीला के साथ सन् 1950 में किया और विच्छेद 12 अगस्त, 1957 में । दूसरा विवाह पुष्पा के साथ 9 मई, 1960 में किया और विच्छेत संभवतः 1962 में अनब्याहता अनिता को अपनाया 23 जुलाई, 1963 में और अंतिम साँस तक मधुर दाम्पत्य जीवन जिया ।

राकेश ने आरंभिक शिक्षा अमृतसर में ली और उच्चतर शिक्षा लाहौर के ओरिएण्टल कॉलेज से ली । यही से उन्होंने सोलह वर्ष की आयु में संस्कृत में शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की। उसी वर्ष उनके पिता भी दिवंगत हुए। बाद में अंग्रेजी लेकर बी. ए. किया । सत्रह वर्ष की आयु में संस्कृत से एम. ए. किया, जिसमें स्वर्ण- चंद्रक प्राप्त हुआ था । एम. ए. करने के बाद राकेश की प्रतिभा को ध्यान में रखकर दो वर्ष के लिए शोध छात्रवृत्ति प्रदान की गई । जालंधर में आकर राकेशजी ने हिंदी में एम. ए. किया और प्रथम श्रेणी में प्रथम रहे। 

राकेशजी ने एम. ए. होने के बाद प्रथम 1945 में एक फिल्मी कम्पनी में कहानीकार के रूप में आजीविका का श्रीगणेश किया । परंतु उनके जीवन में लेखन मुख्य था, आजीविका गौण । 1949 में लेक्चररशिप मिली। किंतु आँखों की अति कमजोरी के कारण वह भी छिन गई। जालंधर के डी. ए. बी. कॉलेज में लेक्चररशिप की। उससे भी टीचर्स युनियन में सक्रिय भाग लेने के कारण बिना कन्फर्म किए 1950 में हटा दिया गया । काफी दौड़-धूप के बाद शिमला में 'विशप कोटन स्कूल' में शिक्षक के रूप में अध्यापन शुरू किया, पर दांपत्य जीवन की तनावपूर्ण मनःस्थिति तथा विपरीत परिस्थितियों के कारण 1952 में शिक्षक पद से भी त्यागपत्र दे दिया। 

1953 में डी. ए. बी. कॉलेज जालंधर में विभागाध्यक्ष के रूप में नियुक्ति हुई। चार वर्ष बाद 1957 में उससे भी त्यागपत्र दे दिया। यह उनकी सबसे लंबी नौकरी थी। 1960 में दिल्ली विश्वविद्यालय में लेक्चरशीप शुरु की; परंतु अधिक दिन तक ननिभ पाई। 1962 में 'सारिका' में संपादन कार्य संभाला। वहाँ से भी एक वर्ष पूरा होने के पहले ही 1963 में त्यागपत्र दे दिया । फिर जीवन की अंतिम साँस तक स्वतंत्र सर्जनात्मक लेखन कार्य की साधना में रत हो गए । लेखक के उच्च स्वाभिमानपूर्ण व्यक्तित्व से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि एक साहित्यकार भी आजीविका की दृष्टि से मुक्त जीवन साहित्य साधना में जी सकता है। बेकारी और नौकरी की नियति तथा स्वतंत्र लेखन की भूख की ऊबड़-खाबड़ यात्रा में राकेश ने दमननीति, बेरोजगारी, आतंक, व्यंग्यात्मक और मोहभंग की स्थिति का कटु अनुभव किया ।

साहित्यकार के रुप में मोहन राकेश ने अपनी सशक्त साहित्यिक कृतियों के द्वारा मान-सन्मान और प्रतिष्ठा अर्जित की। 1959 में संगीत नाटक अकादमी की ओर से उनके 'आषाढ का एक दिन' नाटक को कथ्य, शिल्प, भाषा और प्रयोग की मौलिक दृष्टि से हिंदी का सर्वोत्कृष्ट नाटक पुरस्कार मिला, जिसे राकेश ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन के वरद् हस्त से प्राप्त किया । इसी अकादमी का 1968 में नाटककार मोहन राकेश पुरस्कार राष्ट्रपति श्री. वि. वि. गिरि से राकेश जी ने स्वीकार किया। उनका 'अंधेरे बंद कमरे' उपन्यास भी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत है। 'आधे-अधूरे' नाट्यकृति पर राकेश को कलकत्ता के 'संगीत कला मंदिर' ने देश की बारह भाषा में 1966 से 1971 के बीच प्रकाशित अथवा प्रदर्शित नाटकों में सर्वश्रेष्ठ नाटक का दस हजार रुपयों का पुरस्कार घोषित किया। 5 अगस्त, 1973 को इस पुरस्कार की घोषणा की गई थी।

3 दिसंबर 1972 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। 

"वह मेरे बहुत अच्छे मित्र है, और एक अच्छे मित्र के सभी गुण उनमें हैं।” राकेश की आत्मीयता का रिश्ता ईमानदारी पर आधारित था । इसीलिए दोस्तों से आनंद बटोर पाते थे। लेना और देना दोनों ही कला में वे माहिर थे ।
राकेश के दोस्तों में लेखक, कवि, कलाकार, दिग्दर्शक, संपादक, प्रकाशक आदि सभी प्रकार के लोग थे। प्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश्वर उनके सन्निकटस्थ - आत्मीय मित्र थे। राकेश छात्रावास से ही घनिष्ठ मित्रों को बनाने लग गए थे। ज्ञानचंद शर्मा उनके अन्यतम मित्र थे ।

मोहन राकेश के कृतित्व

मोहन राकेश के कुल 16 कहानी संग्रह, 3 उपन्यास, 4 नाटक, एकांकी, यात्रा-संस्मरण, आलेख, डायरी आदि भी प्रकाशित हुए। मोहन राकेश के कहानी संग्रह हैं- 

1) कहानी संग्रह :
  1. इंसान के खण्डहर 1950
  2. नये बादल 1957
  3. जानवर और जानवर 1958
  4. एक और जिंदगी 1961
  5. फौलाद का आकाश 1966
  6. मेरी प्रिय कहानियाँ 1971
2) नाटक :

1) आषाढ़ का एक दिन : मोहन राकेश का यह प्रथम नाटक है, जिसका प्रकाशन 1958 में हुआ। इसी नाटक के कारण मोहन राकेश प्रथम श्रेणी के नाटककारों के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

2) लहरों के राजहंस : 'लहरों के राजहंस' मोहन राकेश का दूसरा नाटक है। इसका प्रकाशन 1963 में हुआ था । 'आषाढ़ का एक दिन' की ही भाँति इसका भी कथानक ऐतिहासिक ही है। वास्तव में इस नाटक का कथानक लेखन कार्य 'आषाढ़ का एक दिन' से पूर्व आरंभ किया जा चुका था; परंतु किन्हीं अपरिहार्य कारणों से लेखक को इस नाटक का लेखन कार्य बीच में ही रोक देना पड़ा था। 

पहले यह नाटक कहानी के रुप में था और इसके चार पात्र थे । इस नाटक की मूल प्रेरणा अश्वघोष के सौंदरनंद से मिली है। इसमें कपिलवस्तु के राजकुमार नंद के बौद्ध भिक्षु बनने एवं उसकी पत्नी सुंदरी के गर्व की कथा कही गई है। 

3) आधे अधूरे - 'आधे-अधूरे' मोहन राकेश का तीसरा नाटक है। इसका प्रकाशन 1969 में हुआ । प्रस्तुत नाटक मध्यमवर्गीय समाज में उच्चवर्ग से बराबरी करने की घातक प्रवृत्ति के दुष्परिणाम को अप्रत्यक्ष रुप में व्यक्त करता है । 

प्रस्तुत नाटक में नाटककार ने इसी आपाधापी भरे जीवन के सवालों को उठाया है । नाटककार स्वयं कोई समाधान प्रस्तुत नहीं करता, तो अनिश्चयात्मक स्थिति में नाटक को समाप्त करके दर्शकों को ही समस्या का समाधान ढूँढ़ निकालने की सामग्री प्रस्तुत करता है ।

4) पैर तले की जमीन : यह नाटक अस्तित्त्ववादी जीवन-दर्शन पर आधारित हिंदी का अभी तक का पहला या एकमात्र नाटक कहा जा सकता है । रचना प्रक्रिया की दृष्टि से 'पैर तले की जमीन' स्वर्गीय मोहन राकेश का अंतिम नाटक है। 

3) उपन्यास :

मोहन राकेश का प्रथम प्रकाशित उपन्यास 'अंधेरे बंद कमरे' सन् 1961 में प्रकाशित हुआ । जबकि 'स्याह और सफेद' उनका वस्तुतः प्रथम उपन्यास है । तीसरा उपन्यास 'अंतराल' जो 'नीली रोशनी की बाहें' नाम से 'धर्मयुग' में 24 जून, 1962 से 23 सितंबर, 1962 तक चौदह किस्तों में धारावाहिक रुप में प्रकाशित हुआ। 

राकेश का चौथा उपन्यास 'काँपता हुआ दरिया' नई कहानियाँ पत्रिका में 1964-65 के अंतर्गत रुप में धारावाहिक प्रकाशित हुआ । 'कई एक अकेले' उपन्यास के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त नहीं है ।

4) निबंध :
  1. परिवेश - 1967
  2. बकलमखुद - 1974
  3. मोहन राकेश : साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि 1975
  4. रंगमंच और शब्द - प्रकाश्य
5) यात्रा - वृत्त :
  1. आखिरी पट्टान तक - 1953
  2. पतझड का रंगमंच प्रकाश्य -
6) डायरी :
  1. मोहन राकेश की डायरी - 1985
7) जीवन चरित्र (किशोर साहित्य) :
  1. समय सारथी - 1972
8) काव्य
  1. दो कविताएँ -
9) अनुवाद :
  1. मृच्छकटिक - 1961
  2. शाकुंतल - 1965
  3. एक औरत के चेहरे-
10) संपादन :
  1. पाँच पर्दे (पाठ्य पुस्तक)
11) बालसाहित्य :
  1. बिना हाडमाँस के आदमी 1974

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