श्रीनिवास रथ का जीवन परिचय

श्रीनिवास रथ अर्वाचीन संस्कृत के उन कवियों में प्रमुख है श्रीनिवास रथ का जन्म 1933 में ओडिशा के पुरी में हुआ था। उन्होंने ग्वालियर, मध्य प्रदेश और वाराणसी के मुरैना में पढ़ाई की। श्रीनिवास रथ के पिता एक पारंपरिक संस्कृत पंडित थे और रथ साहिब ने उनके साथ व्याकरण और अन्य शास्त्र सीखें। श्रीनिवास रथ ने प्रारम्भिक शिक्षा मुरैना (म.प्र.) से तथा हाईस्कूल एवं इण्टरमीडिएट स्तर की शिक्षा सहारनपुर (उ.प्र.) से प्राप्त की। उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर से बी.ए., काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से एम.ए. (संस्कृत) तथा क्वीन्स कॉलेज बनारस से ‘‘साहित्याचार्य’ की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1955 से 1957 तक सागर विश्वविद्यालय में, तत्पश्चात माधव कॉलेज, उज्जैन एवं विक्रम विश्वविद्यालय में वे प्राध्यापक रहे। 

वे 1960 में ‘कालिदास’ नामक हिन्दी मासिक पत्रिका की परामर्शदात्री समिति के सदस्य बने। साठ के दशक में श्रीनिवास रथ रङ्गकर्म से जुड़े। कालिदास समारोह में प्रस्तुत सर्वप्रथम हिन्दी नामक हिन्दी मासिक पत्रिका की परामर्शदात्री समिति के सदस्य बने।

उन्होंने उज्जैन के माधव कॉलेज में संस्कृत के व्याख्याता के रूप में अपना करियर शुरू किया और उन्होंने कम उम्र में ही संस्कृत में कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनका एकमात्र कविता संग्रह ‘तदेव गगनं सैवधरा‘ (वही धरती, वही आकाश) 1995 में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ था। 


भास के ‘दूतवाक्यम्’ और ‘स्वप्नवासवदत्तम्’ का भी उन्होंने निर्देशन किया था। संस्कृत के आद्य नाटयकार भास पर उनका मौलिक चिन्तन है। संस्कृत की कई रचनाओं यथा भास के ‘उरुभङ्ग’ एव ं ‘कर्णभार’, कालिदास के ‘मालविकाग्निमित्र’ ‘विक्रमोर्वशीय’, तथा ‘मेघदूत’ एवं विशाखादत्त के ‘मुद्राराक्षस’ का हिन्दी अनुवाद उन्होंने किया, जो स्वयं में मानक बन गये है। 

श्रीनिवास रथ की काव्य रचनाओं में ‘पुरुषार्थसंहिता’, ‘नवा कविता’, ‘विपत्रिता’, ‘तदेव गगनं सैव धरा’ आदि नवीन भावबाध्े ा को अभिव्यक्त करने वाली उत्तम रचनाएँ हैं। अपने ‘बलदेवचरितमहाकाव्यम्’ में उन्होंने एक व्यापक फलक को ग्रहण किया है। देववाणी के प्रति अपने अवदान के लिए श्रीनिवास रथ ‘राष्ट्रपति सम्मान’ से सम्मानित हुए हैं।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

1 Comments

Previous Post Next Post