यशोवर्मन की सैनिक उपलब्धियां

कन्नौज में 75 वर्षों के पश्चात हर्ष के पुत्र यशोवर्मन का शासन रहा। वह एक शक्तिशाली तथा महत्वाकांक्षी शासक था। उसके प्रारंभिक जीवन वृत्त के विषय में हमें कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। उसके नाम को लेकर विद्वानों में मतभेद है; उसके नाम के साथ ‘वर्मन’ शब्द जुड़ा है, जिससे विद्वान आशंका व्यक्त करते हैं कि वह ‘मौखरी’ होगा। इस विषय को सत्य सिद्ध करने के लिए हमारे पास अन्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। वाक्पति के ‘गौडवहो’ से ही हमें उसके शासन की घटनाओं का विवरण मिलता है। उसके धर्म के विषय में सिर्फ इतना ही ज्ञात है कि वह शैवमतानुयायी था। 

यशोवर्मन एक महत्वाकांक्षी शासक होने के साथ साहित्य प्रेमी तथा विद्यानुरागी भी था। उसने अनेक विद्वानों को आश्रय प्रदान दिया। उसके दरबार में वाक्पति के साथ संस्कृत के महान नाटककार ‘भवभूति’ को आश्रय प्रदान किया गया था। भवभूति ने तीन प्रमुख नाटक ग्रंथों की रचना की थी - ‘मालतीमाधव’, ‘उत्तररामचरित’, ‘महावीरचरित’। भवभूति करूणा रस के आचार्य माने जाते थे।

यशोवर्मन के इतिहास के स्रोत

यशोवर्मन के शासन इत्यादि पर विद्वानों में मतभेद है, फिर भी यशोवर्मन के इतिहास के दो प्रकार के साधन उपलब्ध हैं-

1. प्राकृत काव्य - यशोवर्मन के दरबार का राजकवि ‘वाक्पति’ द्वारा लिखित ग्रंथ ‘गौडवहो’ में यशोवर्मन के शासन की घटनाओं का उल्लेख किया गया है।

2.  नालंदा अभिलेख - नालंदा अभिलेख से भी यशोवर्मन के शासन तथा उसकी दिग्विजय की पुष्टि होती है। किंतु विद्वानों में मतभदे है कि अभिलेख में वर्णित राजा का नाम यशोवर्मन देव के समीकरण यशोवर्मन से करते हैं, जो अन्य उदाहरणांे से स्पष्ट हो चुका है। इसके मंत्री मार्गपति के पुत्र मालद ने नालंदा के एक बौद्ध विहार को दान में दिया था।

यशोवर्मन की सैनिक उपलब्धियां

यशोवर्मन की सैनिक उपलब्धियां का विवरण हमें गौडवहो से ही मिलता है, जिसके आधार पर सैनिक उपलब्धियां हैं-

1. मगध पर विजय - गौडवहो में इस विजय का उल्लेख कुछ इस प्रकार से किया गया है- ‘‘ वर्षा ऋतु के अंत में अपनी सेना के साथ सोन घाटी होता हुआ, विंध्यवासिनी देवी को प्रसन्न करके उसने मगध पर आक्रमण किया तथा वहां के राजा की हत्या कर दी।’’ इस प्रकार उसने मगध पर अधिकार किया। 

2. बंगाल विजय - मगध पर विजय करने के पश्चात वह बंगाल विजय के लिए निकल पड़ा। उस समय के बंग के राजा के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है।

3. दक्षिण भारत - यशोवर्मन ने दक्षिण भारत पर भी विजय प्राप्त की थी। उसकी उपरोक्त विजयों की पुष्टि नालदं ा अभिलेखों से होती है, किंतु दक्षिणी भारत की विजय की पुष्टि नहीं होती है।

4. पारसीको पर विजय - यहां पर पारसीको का संबंध मुसलमानों से किया गया है। इस समय पश्चिमी भारत में मुसलमानों के आक्रमण हो रहे थे, जिससे संभव है कि यशोवर्मन ने इन्हें परास्त किया होगा।

5. मध्य भारत - मध्य भारत पर अधिकार के संबंध में चीनी साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि वहां का राजा ‘यि-शा-फु-मां’े था।

6. पश्चिमोत्तर प्रदेश - पश्चिमोत्तर प्रदेशों पर यशोवर्मन के अधिकार के संदर्भ में अनेक साक्ष्य मिलते हैं। मनिक्याल से उसकी मुद्राएं प्राप्त होती हैं। नालंदा अभिलेख से उसके मंत्री ‘उदीचीपति’ का उल्लेख मिलता है। इनसे ज्ञात होता है कि यशोवर्मन का अधिकार पश्चिमोत्तर प्रदेश पर था।

7. कश्मीर - राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि पराजित होने पर यशोवर्मन, ललितादित्य का गुणगान करता है। इस समय कश्मीर के कार्कोटवंश का शासक ललितादित्य मुक्तपीड़ राज्य कर रहा था। वह अत्यंत महत्वाकं ाक्षी शासक था। वह भी समस्त उत्तरी भारत पर अधिकार करना चाहता था। उसके द्वारा यशोवर्मन पराजित हुआ। चीनी साक्ष्यांे में वर्णित है कि मंग-टी ने भूमध्य भारत के राजा से संधि की थी। यहां ‘मंग-टी’ का अर्थ मुक्तपीड़ से है और मध्यभारत का राजा यशोवर्मन था।

इस प्रकार यशोवर्मन ने मगध, बंगाल, पश्चिमी भारत तथा दक्षिणी क्षेत्रों पर भी अपना साम्राज्य स्थापित किया था।

यशोवर्मन का पतन

यशोवर्मन के विषय में इतिहास कुछ अवसर पर मौन है। जैसा कि उल्लेख किया गया है कि ललितादित्य मुक्तपीड़ ने यशोवर्मन को परास्त किया था। हालांकि यशोवर्मन ने मगध, बंगाल, पश्चिम भारत तथा दक्षिण भारत पर अधिकार किया था। किंतु यशोवर्मन के पतन के विषय में हम साक्ष्यों के अभाव में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कह सकते है किंतु उसके पुत्र आमराज के शासन का उल्लेख मिलता है। फिर भी यशोवर्मन और उसके वंश के पतन के विषय में कुछ भी स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं होता है।

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