अप्पा शास्त्री राशिवडेकर का जीवन परिचय

अप्पाशास्त्री राशिवडेकर का जन्म महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के राशिवडेकर ग्राम में 2 नवम्बर 1873 ईसवी में हुआ था। उनके पिता श्री सदाशिव शास्त्री अपने समय के विख्यात वैदिक पण्डित, ज्योतिषी एवं कर्मकाण्ड के ज्ञाता थे। संस्कृतमय परिवेश में जन्मे, नैसगिर्क कवि अप्पाशास्त्री ने आठ वर्ष की बाल्यावस्था से ही देव वाणी में काव्यरचना प्रारम्भ कर दी थी। ज्योतिष का ज्ञान अर्जित कर उन्होंने 13 वर्ष की में ही पंचांग का निर्माण किया था। अप्पाशास्त्री राशिवडे कर का जन्म एक ऐसे युग में हुआ, जब यह भारत राष्ट्र ब्रिटिश साम्राज्य का गुलाम था। 

अप्पाशास्त्री ने सरकारी नाकैरी को ठुकराकर पुना के एक स्कूल में अध्यापक के रूप में अपने कमर्मय जीवन का प्रारम्भ किया। 

संस्कृत वाङ्मय की अभिवृद्धि में अप्पाशास्त्री का योगदान कई रूपों में परिलक्षित होता है। उन्होंने रामायण के बालकाण्ड, अश्वघोष के ‘बुद्धचरित’, कालिदास के ‘मालविकाग्निमित्र’ तथा भट्टनारायण के ‘वेणीसंहार’ पर संस्कृत टीकाग्रंथों की रचना कर पारम्परिक टीका पद्धति को नया रूप दिया। 

बङ्गला के प्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचन्द्र के उपन्यास सहित कई अन्य बङ्गला उपन्यास का संस्कृत में अनुवाद किया। 

उन्होंने संस्कृत-गद्य के क्षेत्र में शास्त्रीय एवं सामयिक विषयों पर सरल संस्कृत में निबन्ध-लेखन की नवीन पद्धति का पल्लवन किया। संस्कृत पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अप्पाशास्त्री का अमूल्य अवदान रहा है। उन्होंने सन् 1893 से सन् 1909 तक ‘संस्कृतचन्द्रिका’ नामक मासिक पत्रिका तथा लगभग साढ़े तीन वर्षों तक ‘सनूतवादिनी’ नामक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन एवं प्रकाशन किया। सम्पादक के रूप में अप्पाशास्त्री ने संस्कृत के उत्कृष्ट रचनाकारों को प्रोत्साहन दिया तथा पाठकों में युगचतेना आरै राष्ट्रीय भावना जगाई। ‘सनू ृतवादिनी’ लाके मान्य तिलक की ‘केसरी’ के समान ही लोकप्रिय हुई। 

अप्पाशास्त्री ने 40 वर्ष में ही 25 अक्टबूर 1913 को रुग्णावस्था में इस नश्वर दहे का त्याग किया।

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