भ्रामरी प्राणायाम करने की विधि, लाभ और सावधानियां

भ्रामरी प्राणायाम के लाभ

इस प्राणायाम को करते समय पूरक तथा रेचक में भौंरे तथा भौंरी जैसी आवाज मुख से उत्पन्न होती है, अतः इसे भ्रामरी प्राणायाम के नाम से जाना जाता है। 

इसको सुखासन, वज्रासन, सिद्धासन अथवा पद्मासन में बैठकर करना चाहिए। मानसिक तनाव एवं विचारों पर नियंत्रण पाने के लिए भ्रामरी प्राणायाम किया जाता है। 

भ्रामरी प्राणायाम करने की विधि

यह प्राणायाम किसी भी समय, कुर्सी पर बैठकर अथवा सोते समय लेटकर किया जा सकता है। इस योगासन में दोनों हाथों से दोनों कानों को पूरी तरह से बंद कर ले। दो उंगलियों को माथे पर रखें तथा छः उंगलियों को आंखों पर रखें। इसके पश्चात गहरी सांस लेकर गले से भँवरे जैसी आवाज निकालें।
  1. सबसे पहले समतल स्थान पर दरी अथवा चटाई बिछाकर बैठें।
  2. दोनों हाथों को बगल में अपने कंधों के समानांतर फैलायें।
  3. दोनों हाथों को कुहनियों से मोड़कर हाथ को कानों के पास रखें।
  4. दोनों हाथों के अंगूठों से दोनों कानों को बंद कर लें।
  5. दोनों हाथों की तर्जनी उंगली को माथे पर और मध्यमा , अनामिका, कनिष्ठा उंगली आंखों के ऊपर रखनी चाहिए। 
  6. कमर, पीठ, गर्दन तथा सिर को सीधा और स्थिर रखें।
  7. नाक से सांस अंदर लें (पूरक)।
  8. नाक से सांस बाहर छोड़ें (रेचक)।
  9. सांस बाहर छोड़ते हुए गले से भँवरे की भांति आवाज निकलनी चाहिए। यह आवाज पूर्ण सांस छोड़ने तक करनी है तथा आखिर तक एक जैसी रहनी चाहिए।
  10. सांस अंदर लेने का समय 10 सेकंड तथा बाहर छोड़ने का समय 20 से 30 सेकंड होना चाहिए।
  11. प्रारंभ में पांच मिनट करें तथा बाद में धीरे-धीरे समय बढ़ायंे।
  12. इस प्राणायाम को करते समय तर्जनी उंगली से दोनों कान बंद कर बाकी उंगलियां की हल्की मुद्रा बनाकर भी यह प्राणायाम किया जा सकता है।

भ्रामरी प्राणायाम के लाभ

इसके अभ्यास से हमारा मन पूर्ण रूप से एकाग्र होने लगता है, क्योंकि इसका अभ्यास करते समय गल से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, उस ध्वनि से हमारा मन बंध जाता है जिससे मन के अंदर किसी प्रकार के बाहरी विचार नहीं उत्पन्न होते, जिससे व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रहता है क्योंकि इसके अभ्यास से व्यक्ति के अन्दर जो मानसिक तनाव हो रहा है, बन्द हो जाता है, जिससे मन और शरीर दोनों को लाभ मिलता है ।

इस भ्रामरी प्राणायाम को करते समय जो ध्वनि निकलती है, उस ध्वनि का प्रभाव सीधा मस्तिष्क पर पड़ता है। मस्तिष्क एकदम शांत हो जाता है, जिससे मस्तिष्क के अंदर रक्त प्रवाह सूचारू रूप से हाता है, जिससे दो लाभ प्राप्त होते है। पहला याददाश्त तेज होती है, दूसरा माईग्रेन का दर्द जिनको होता है उसमें यह लाभ देता है। मन का तनाव दूर करता है।

भ्रामरी प्राणायाम करने में सावधानी

मेरूदण्ड पूर्ण रूप से सीधा रहना चाहिये। पूरक की क्रिया करते समय भौंरे जैसी आवाज गले से उत्पन्न होना चाहिये । रेचक के समय भौरी जैसी आवाज निकलनी चाहिये ।

गले से जो आवाज आती है, उसकी पूरक तथा रेचक में एक जैसी ध्वनि होना चाहिये। इस प्राणायाम में पूरक तथा रेचक दोनों नासिकाओं से ही करते है। पूरक तथा रेचक दोनों में भौरे तथा भौरी जैसी आवाज निकलती है, तथा त्रिबंधो का उपयोग करना चाहिये ।
  1. कान में दर्द या संक्रमण होने पर प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
  2. अपनी क्षमता से ज्यादा करने का प्रयास न करें।
  3. प्राणायाम करने का समय और चक्र धीरे-धीरे बढ़ायं।े
भ्रामरी प्राणायाम करने के बाद आप धीरे-धीरे नियमित सामान्य श्वसन कर श्वास को नियंत्रित कर सकते है। भ्रामरी प्राणायाम करते समय चक्कर अथवा घबराहट होना, खांसी आना, सिरदर्द या अन्य कोई परेशानी होने पर प्राणायाम रोककर अपने डाक्टर या योग विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

Post a Comment

Previous Post Next Post