ब्रिटिश सरकार ने 1939 से आरंभ हुए द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों से बिना पूछे
भारत को युद्ध में शामिल कर लिया था। इसके बाद विभिन्न प्रांतों के काँग्रेस
मंत्रिमंडलों ने त्यागपत्र दे दिया। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से
स्वतंत्रता एवं संविधान की मांग की। इसी समय अंतर्राष्ट्रीय स्थिति तेजी से बदल
रही थी। दक्षिण पूर्वी एशिया में जापान तेजी से आगे बढ़ रहा था। ब्रिटिश
प्रधानमंत्री चर्चिल को यह स्पष्ट होने लगा कि भारतीयों के सहयोग के बिना युद्ध
जीतना कठिन है। दूसरी ओर चर्चिल पर विश्व के प्रभावशाली नेताओं का दबाव
भी पड़ रहा था। इन परिस्थितियों में चर्चिल ने भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने
तथा गतिरोध दूर करने के लिए सर स्टेफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में मार्च 1943 में एक
मिशन भारत भेजा था। जिसका उद्देश्य भारत के राजनीतिक गतिरोध को दूर
करना था।
2. राष्ट्रपति रूजवेल्ट का दबाव- ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने 1941 में एटलांटिक चार्टर को भारत में लागू करने से मना कर दिया था। इस चार्टर का यह अभिप्राय था कि युद्ध की समाप्ति के बाद प्रत्येक राष्ट्र को आत्मनिर्णय का अधिकार होगा। अमेरिका के राष्ट्रपती रूजवेल्ट ने चर्चिल पर भारत से समझौता करने के लिये दबाव डाला, इसके बाद राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने यह घोषणा की कि, एटलाण्टिक चार्टर सारे संसार पर लागू होगा।
3. आस्ट्रेलिया का दबाव- आस्ट्रेलिया के विेदेश मंत्री इवाट ने पार्लियामेंट में कहा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के साथ समझौता कर लेना चाहिये।
4. जापान का तत्कालिक खतरा- जापान ने सिंगापुर, मलाया और इण्डोनेशिया को विजय करके अण्डमान तथा निकोबार द्वीप को जीत लिया था। 8 मार्च 1949 में जापान ने रंगून पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार जापान की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर ब्रिटिश सरकार घबरा गयी। रंगून में जापानियों के घुसने के तीन दिन बाद चर्चिल ने यह घोषणा भी कि भारत के राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिये ब्रिटिश सरकार ने एक योजना तैयार की है और इस हेतु क्रिप्स को भारत भेजा जायेगा।
क्रिप्स मिशन को भारत भेजने के कारण
1. युद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करना- ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीयो का सहयोग चाहती थी। भारतीय चाहते थे कि ब्रिटिश सरकार उनकी ‘‘स्वराज्य’’ संबंधी मांग को स्वीकार कर ले। ब्रिटिश सरकार के अस्वीकार करने पर गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने संविधानिक गतिरोध को दूर करने के लिये क्रिप्स को नवीन प्रस्तावों के साथ भारत भेजने का निर्णय किया।2. राष्ट्रपति रूजवेल्ट का दबाव- ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने 1941 में एटलांटिक चार्टर को भारत में लागू करने से मना कर दिया था। इस चार्टर का यह अभिप्राय था कि युद्ध की समाप्ति के बाद प्रत्येक राष्ट्र को आत्मनिर्णय का अधिकार होगा। अमेरिका के राष्ट्रपती रूजवेल्ट ने चर्चिल पर भारत से समझौता करने के लिये दबाव डाला, इसके बाद राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने यह घोषणा की कि, एटलाण्टिक चार्टर सारे संसार पर लागू होगा।
3. आस्ट्रेलिया का दबाव- आस्ट्रेलिया के विेदेश मंत्री इवाट ने पार्लियामेंट में कहा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीयों के साथ समझौता कर लेना चाहिये।
4. जापान का तत्कालिक खतरा- जापान ने सिंगापुर, मलाया और इण्डोनेशिया को विजय करके अण्डमान तथा निकोबार द्वीप को जीत लिया था। 8 मार्च 1949 में जापान ने रंगून पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार जापान की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर ब्रिटिश सरकार घबरा गयी। रंगून में जापानियों के घुसने के तीन दिन बाद चर्चिल ने यह घोषणा भी कि भारत के राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिये ब्रिटिश सरकार ने एक योजना तैयार की है और इस हेतु क्रिप्स को भारत भेजा जायेगा।
क्रिप्स का भारत आगमन
सर स्टैफर्ड क्रिप्स 22 मार्च 1942 को भारत पहुँचे। भारत में उन्होंने सभी
राजनीतिक दलों के नेताओं से भेट की। क्रिप्स कुछ निश्चित प्रस्ताव लेकर आये थे
उनके प्रस्तावों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. युद्ध के उपरांत लागू होने वाले सुझाव-
क्रिप्स ने भारतीय जनता के विभिन्न वर्गों के नेताओं से युद्ध के मामले में रचनात्मक तथा सक्रिय सहायता प्रदान करने की अपील की।
- एक नये भारतीय संघ की स्थापना होगी, जिसमें ब्रिटिश भारत के प्रांत और देशी राज्य सम्मिलित होंगे। भारतीय संघ एक गणराज्य बनेगा जिसका इंग्लैन्ड व अन्य डोमिनियनो से संबंध रहेगा। भारतीय संघ को अपनी आंतरिक और विदेशनीति में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होगी।
- युद्ध समाप्त होने के बाद एक संविधान सभा की स्थापना की जायेगी, जिसमें ब्रिटिश प्रांत तथा देशी राज्यों के प्रतिनिधि सम्मिलित होगे।
- संविधान सभा का निर्माण इस प्रकार होगा- प्रांतीय विधानमंडलों के सभी सदस्य मिलकर एक निर्वाचन मंडल का निर्माण करेंगे। निर्वाचक मंडल अपने में से 1/10 सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से करेंगे। ये 1/10 सदस्य संविधान सभा के सदस्य होंगे। देशी राज्यों के प्रतिनिधि वहाँ की जनसंख्या के अनुपात में नियुक्त होंगे।
- ब्रिटिश भारत के प्रांत या देशी रियासतों को संघ से अलग रहने का अधिकार होगा।
- सम्राट की सरकार और संविधान सभा के मध्य एक संधि होगी। संधि में जातीय तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा का भी प्रबंध होगा।
क्रिप्स ने भारतीय जनता के विभिन्न वर्गों के नेताओं से युद्ध के मामले में रचनात्मक तथा सक्रिय सहायता प्रदान करने की अपील की।
क्रिप्स प्रस्तावों के दोष
काँग्रेस द्वारा क्रिप्स प्रस्तावों को अस्वीकृत करने के कारण-- भारत को युद्ध के बाद औपनिवेशिक स्वराज्य देने की बात कही गयी थी जबकि काँग्रेस की मांग पूर्ण स्वराज्य की थी।
- संविधान सभा के गठन में प्रतिनिधि भेजने का अधिकार राजा-महाराजाओं को था, जनता को यह अधिकार नहीं दिया गया।
- प्रांतों और देशी रियासतों को संघ से पृथक रहने या पृथक संघ निर्माण का अधिकार दिया गया था। इससे देश की एकता को आघात होता।
- ब्रिटिश सरकार ने भारत को प्रतिरक्षा विभाग पर नियंत्रण देने से मना कर दिया था।
- प्रस्तावों में पाकिस्तान की मांग को स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया गया था।
- लीग मुसलमानों के लिये अलग संविधान सभा चाहती थी।
- संविधान सभा के गठन के लिये निश्चित निर्वाचन पद्धति में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की कोई व्यवस्था नहीं की गयी थी।