G. S. Ghurye (गोविन्द सदाशिव घुर्ये) का जीवन परिचय और उनकी रचनाएं

G. S. Ghurye (गोविन्द सदाशिव घुर्ये) का जन्म 12 दिसम्बर,1893 को महाराष्ट्र में हुआ था और वर्ष 1984 में 91 साल की उम्र में बंबई में उनका निधन हो गया। उन्हें भारतीय समाजशास्त्र में उनके योगदान के लिए ‘भारतीय समाजशास्त्र के पिता’ के रूप में जाना जाता है। वे भारतीय समाजशास्त्रियों की पहली पीढ़ी का निर्माण करने वाले पहले व्यक्ति थे। घुर्ये ने 1952 में इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी और इसके प्रमुख जर्नल सोशियोलॉजिकल बुलेटिन की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई। उनकी रुचि की सीमा बहुत व्यापक थी। उन्हें विश्व सभ्यता और विशेष रूप से हिंदू सभ्यता में बहुत रुचि थी। उनका ध्यान भारत-आर्य सभ्यता और भारत में इसके विकास पर था।

घुर्ये ने भारत-आर्य सभ्यता के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे जाति का विकास, परिवार संरचना और इसके भारत-यूरोपीय परिवार संरचना के साथ संबंध, धार्मिक चेतना के विकास पर ध्यान देने की कोशिश की। वे न केवल पिछले विकास के साथ बल्कि अपने समय की समकालीन समस्याओं से भी मतलब रखते थे। ‘द बर्निंग कॉलड्रन ऑफ द नॉर्थ ईस्ट इंडिया’ समकालीन मुद्दों में उनकी रुचि का एक सबसे अच्छा उदाहरण है। उनके अनुसार, समाजशास्त्री का कर्तव्य भूतकाल के सामाजिक इतिहास का पता लगाना है।

गोविन्द सदाशिव घुर्ये की रचनाएं

कुछ बड़े अध्ययन जो कि घुर्ये कि रचनाओं में है,
  1. कास्ट एंड रेस इन इंडिया (1932) 
  2. इंडियन साधुज (1953) 
  3. भरतनाट्यम एंड इट्स कॉस्ट्यूम (1958) 
  4. फैमिली एंड किनशिप इन इंडो यूरोपियन कल्चर (1955) 
  5. सोशल टेंशन इन इंडिया(1968) 
  6. शैड्यूल्ड ट्राइब्स (1963)

Bandey

मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता (MSW Passout 2014 MGCGVV University) चित्रकूट, भारत से ब्लॉगर हूं।

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