जनसंख्या वृद्धि के परिणाम

जनसख्या वृद्धि से कई सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय समस्याएँ भी पैदा हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ मानवीय आवश्यकताओं में असीमित वृद्धि हो रही है, जिससे पृथ्वी के सीमित संसाधनों पर विशेष रूप से भूमि, वायु तथा पानी पर दबाव पड़ रहा है। ये तीनों तत्व जहाँ मनुष्य के लिए आवश्यक हैं वहीं मनुष्य के भोगवादी क्रियाकलापों के कारण ये तीनों तत्व अधिक प्रदूषित हो रहे है। मानव चाहें कितना ही अधिक वैज्ञानिक प्रगति कर ले, लेकिन पृथ्वी पर नई भूमि, नई वायु और नया जल जोड़ने की उसकी सामर्थ्य नहीं है।

जनसंख्या वृद्धि के परिणाम

तेजी से बढ़ती जनसंख्या का प्रभाव है- ;

(1) जनसंख्या तथा खाद्य सामग्री में असंतुलन - हमारे देश में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण खाद्यान्न संकट पैदा हो रहा है। यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारे देश में खाद्यान्न का उत्पादन तीन गुना अधिक बढ़ा है, किन्तु जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण आज भी प्रति व्यक्ति खाद्यान्न अनुपात कम है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व यह स्थिति और भी गंभीर थी। 

(2) प्राकृतिक संसाधनों तथा जनसंख्या में असंतुलन - तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या का दबाव हमारे देश के प्राकृतिक संसाधनों पर भी अत्यधिक पड़ रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए प्राकृतिक संसाधनों के वाणिज्यिक महत्त्व को अधिक आंका जा रहा है, जबकि इनके पर्यावरणीय महत्व की अपेक्षा की जा रही है। प्राकृतिक संसाधनों तथा जनसंख्या के मध्य संतुलन बिगड़ने से अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ जैसे- प्रदूषण, भू-क्षरण, बाढ़, सूखा तथा महामारियाँ आदि विपत्तियाँ पैदा हो रही है। संसाधनों की भरण-पोषण क्षमता कम होने के कारण एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जनसंख्या का अधिक आकर्षण हो रहा है। देश के जिन भागों में खनिज संसाधन जैसे- कोयला, लौह अयस्क व मैंगनीज का अधिक उत्पादन हो रहा है। ऐसे क्षेत्रों में जनसंख्या का पलायन हो रहा है। इन क्षेत्रों में जनसंख्या के अधिक जमाव से खनिज संसाधनों तथा जनसंख्या के मध्य संतुलन बिगड़ रहा है।

(3) नगरीय समस्याएँ तथा जनसंख्या वृद्धि - तीव्र जनंसख्या वृद्धि तथा ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या के स्थानांतरण के कारण देश के नगरीय क्षेत्रों में विशेष रूप से महानगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव अधिक बढ़ रहा है। नगरीयकरण के कारण भूमि की कीमतें बढ़ रही हैं। भूमि महँगी होने के कारण नगरीय क्षेत्रों में आवासीय समस्याएँ पैदा हो गई हैं। आवासीय सभ्यता के कारण नगरीय क्षेत्रों में झोपड़ पट्टियों का विकास हो रहा है। इससे नगरीय क्षेत्रों में गंदगी बढ़ने के साथ-साथ कूड़ा-करकट के एकत्रीकरण की समस्या भी बढ़ी है। जनसंख्या वृद्धि से नगरीय क्षेत्रों में पेय जल का संकट भी पैदा हो रहा है और साथ ही आवागमन के साधनों के अधिक विकास से ध्वनि प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण की समस्या भी पैदा हो रही हैं। इस प्रकार नगरीय जनसंख्या के असीमित विकास से नगरीय पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।

(4) गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या - जनसंख्या वृद्धि के कारण हमारे देश में गरीबी और बेरोजगारी की समस्याएँ पैदा हो गई है। इससे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है। जनसंख्या वृद्धि के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त श्रम शक्ति तेजी से बढ़ रही है। हमारे देश की जनसंख्या में प्रतिवर्ष 2% दर से वृद्धि हो रही है, जबकि श्रमिक क्षेत्र में 2.4ः की दर से वृद्धि हो रही है। इसमें सर्वाधिक जनसंख्या युवकों की है। बड़े पैमाने पर गरीबी, बेरोजगारी तथा भुखमरी के बोझ को वहन करने के कारण हमारे राष्ट्र का आर्थिक स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया है। जनसंख्या बढ़ने से भूमिहीन किसानेां का प्रतिशत बढ़ रहा है, जिससे ग्राम नगरीय प्रवास को बढ़ावा मिल रहा है।

(5) जनसंख्या वृद्धि तथा ऊर्जा संकट - हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के कारण न केवल खाद्य संकट पैदा हो रहा है, बल्कि भोजन को पकाने के लिए, उद्योगों को चलाने के लिए तथा घरेलू कार्यों तथा प्रकाश के लिए भी ऊर्जा संकट पैदा हो रहा हे। हमारे देश में वर्ष 1980 में 18 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इतने अनाज को पकाने के लिए लगभग 27 करोड़ टन जलाऊ लकड़ीं की आवश्यकता होगी। इतनी अधिक जलाऊ लकड़ी व अन्य ईंधन के वाणिज्यिक स्रोंतों को प्राप्त करने के लिए देश के पर्यावरण को तहस-नहस करना होगा। ऊर्जा संकट को दूर करने के लिए मनुष्य ने परमाणु ऊर्जा को भी अपनाया, जिससे नाभिकीय प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न हुई।

Post a Comment

Previous Post Next Post