लॉर्ड कर्जन की शिक्षा नीति का वर्णन

लाॅर्ड कर्जन की शिक्षा नीति

लाॅर्ड कर्जन की शिक्षा नीति

1899 में लाॅर्ड कर्जन भारत का गर्वनर जनरल नियुक्त हो कर आ गया। उसने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया। उसने शिक्षा विभाग में केन्द्रीकरण की नीति का अनुसरण किया एवं निरीक्षण स्थापित करने की प्रयत्न किया। उसने डायरेक्टर जनरल आफ एज्युकेशन की नियुक्ती एवं शिक्षा संबंधी समस्याओं पर विचार करने के लिये 1901 में एक शिक्षा सम्मेलन बुलाया जिसमें शिक्षा संबंधी अनेक प्रस्ताव पारित किये गये। 

1902 में उसने थामस रैले की अध्यक्षता में भारतीय विश्वविद्यालय आयोग गठित किया। आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1904 ई में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम निम्न सुझाव दिये गये-

1. विश्वविद्यालयों के उत्तरदायित्व मे वृद्धि की गई विश्वविद्यालयों का उच्च शिक्षा के अध्ययन और अनुसंधान की समुचित व्यवस्था करने और योग्य प्रोफेसरों और अध्यापकों की नियुक्ती करने, पुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं की स्थापना का उचित प्रबंध करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया। 

2. सीनेट के सदस्यों की संख्या कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 10 निर्धारित की गई। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया गया। सरकार द्वारा नामांकित सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई परंतु निर्वाचित सदस्यों की संख्या घटा दी गई। बंबई विश्वविद्यालयों के सीनेट के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 15 निर्धारित की गई। 

3. विश्वविद्यालय के सिंडीकेट में कुलपति/लोकशिक्षा निर्देशक तथा सीनेट एवं विभिन्न विभागों द्वारा निर्वाचित 7 से 15 सदस्य होंगे। 

4. महाविद्यालयों की सब शर्तें अधिक कठोर बनाई गई। उन पर विश्वविद्यालयों का नियंत्रण बढ़ा दिया गया। 

5. विश्वविद्यालयों की क्षेत्रीय सीमा निर्धारित करने का अधिकार गर्वनर जनरल और उसकी परिषद को सौंपा गया। 

6. कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार सरकार को दिया गया। 

7. अधिनियम में यह भी प्रावधान था कि महाविद्यालयों के छात्रों के लिये न्यूनतम शुल्क निर्धारित किया जाये। 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय 1917 में मैसूर और परता तथा 1918 में हैदराबाद में स्थापना की गईं।

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