मदर मैरी टेरेसा एग्नेस गोंझा बोयाजिजू
जिन्हें हम मदर टेरेसा के नाम से जानते हैं। रोमन कैथेलिक
चर्च द्वारा इन्हें कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से नवाजा गया
था। वर्ष 1910 को मदर टेरेसा का जन्म उत्तर मैसेडोनिया में हुआ था।
मदर टेरेसा रोमन कैथोलिक नन थी जिन्होनें 1948 में स्वेच्छा
से भारतीय नागरिकता ले ली। सिस्टर टेरेसा 6 जनवरी, 1929
को आयरलेंड से कोलकाता पहुंची। प्रारंभ में वे पेशे से शिक्षिका
थी।
मदर टेरेसा का वक्तव्य कि “शब्दों से मानव जाति की सेवा नहीं होती, उसके लिए पूरी लगन से कार्य में जुट जाने की आवश्यकता है।”, कर्म के प्रति उनके समर्पण को परिलक्षित करता है।
सन् 1943 के अकाल में शहर में लोग गरीबी से बेहाल
हो गए थे जिससे बड़ी संख्या में मौतें हुई। इसके बाद 1946
के हिंदू-मुस्लिम दंगों में शहर की स्थिति और भी भयावाह हो
गई। अब मैरी टेरेसा ने जीवनपर्यंत लोगों की सेवा करने का
मन बना लिया था जिसके लिए उन्होनें पटना से नर्सिंग का
प्रशिक्षण लिया और सन् 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और
गरीबों, रोगियों की सेवा में लग गईं।
मदर टेरेसा का इस कार्य
में प्रारंभिक दौर अत्यंत कठिन था। पढ़ाने का कार्य वे छोड़
चुकी थी और उनके पास आमदनी का कोई स्रोत नहीं था।
अक्टूबर 1950 को उन्हे वैटिकन से ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’
की स्थापना की अनुमति मिल गई जिसके बाद वर्ष 1950 में
इन्होनें कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की
जिसका उद्देश्य विश्वभर में गरीब, शरणार्थियों, गंभीर रोगों
से पीडि़त बीमार, शोषित, वंचित तथा युद्ध पीडि़त लोगों की
निःशुल्क सेवा करना था। इस चैरिटी का प्रारंभ केवल 13 लोगों
के साथ हुआ था। इनकी मृत्यु तक मिशनरीज ऑफ चैरिटी
विश्व के 123 देशों में विस्तृत हो चुका था जिसमें 4 हजार से
ज्यादा सिस्टर्स जनसेवा में जुड़ीं हुई हैं।
भारत सरकार द्वारा 1962 में उन्हें पद्मश्री की उपाधि दी गई।
संत टेरेसा को मानव कल्याण कार्यों के लिए 19 दिसंबर,
1979 को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया तथा 1980
में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से विभूषित किया गया। वर्ष 1988 में ब्रिटेन द्वारा ‘ईयर ऑफ द ब्रिटिश
इम्पायर’ प्रदान किया गया। मदर मैरी टेरेसा का 5 सितंबर
1997 को दिल के दौरे के कारण मृत्यु हो गई।