मुंशी प्रेमचंद के पिता
अजायबराय डाकखाने में मुंशी पद पर कार्यरत थे। पारिवारिक उथल-पुथल एवं बड़े
भाई एवं उनके पुत्र की असामयिक मृत्यु से उनके ऊपर भारी आर्थिक संकट आ पड़ा।
परिवार बड़ा होने के कारण उनकी आमदनी से घर का खर्च बमुश्किल चल पाता था।
इसी कारण मुंशी प्रेमचंद को अपने जीवन के शुरुआती दिनों में गहरी आर्थिक विपन्नता का
सामना करना पड़ा।
मुंशी प्रेमचंद की माता आनन्दी देवी बड़े सरल स्वभाव की महिला थीं, किन्तु संग्रहणी
की मरीज होने के कारण उन्हें अधिक दिनों तक माता का दुलार न दे सकीं और जब
मुंशी प्रेमचंद की अवस्था मात्र सात-आठ वर्ष थी, उनका निधन हो गया। मुंशी प्रेमचंद का
बाल्यकाल पिता के तबादलों एवं पारिवारिक समस्याओं के कारण अभावग्रस्त तो था ही,
पिता द्वारा दूसरा विवाह कर लेने पर उनकी परेशानियाँ और बढ़ गई थीं। विमाता के
साथ पारस्परिक सम्बन्ध अच्छे न होने के कारण उनके जीवन में मातृत्व स्नेह, करुणा
एवं प्रेम का भी अभाव रहा।
मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ
मुंशी प्रेमचन्द की ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ प्रथम कहानी है जिसका प्रकाशन सन् 1907 ई. में ‘जमाना’ नामक उर्दू पत्रिका में हुआ। इसके साथ ही मुंशी की कहानियों में रुचि इतनी बढ़ गई कि उन्होंने कहानियों का बहुत बड़ा पर्वत बना दिया। इन कहानियों का प्रभाव समाज पर बहुत गहरा दिखाई देने लगा।
- पंच परमेश्वर।
- आत्माराम।
- नमक का दरोगा।
- बड़े घर की बेटी।
- बूढ़ी काकी।
- सुजान भगत।
- मित्र।
- रामलीला।
- सवासेर गेहूँ।
- शतरंज के खिलाड़ी।
- विद्रोही।
- गुल्ली-डंड़ा।
- मंत्र।
- सद्गति।
- पूस की रात।
- दो बैलों की कथा।
- ठाकुर का कुआँ।
- ईदगाह।
- रसिक संपादक।
- कफन आदि।
मुंशी प्रेमचंद की कितनी कहानियाँ इस
सीधे ढंग से शुरू नहीं होती ?
‘‘किसी गाँव मेंशंकर नाम का एक कुरमी किसान रहता था। सीधा-सादा गरीब व्यक्ति
था। अपने काम से काम, न किसी के लेने में, न किसी के देने में, एक दिन संध्या समय एक
महात्मा ने आकर उसके द्वार पर डेरा डाल दिया।
प्रेमचन्द की कहानियों में विभिन्नता, विविध पात्रों का भारी जमाव आश्चर्यजनक रुप से मिलते हैं। विषय वस्तु में विविधता और नवीनता मिलती है। उदाहरण के तौर पर ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘दो बैलों की कथा’ में ऐसे ही पात्रों की विविधता नजर आती है। उनमें पात्रों की चरित्र-चित्रण की कुशलता है। कहानी पढ़ते-पढ़ते पात्र भी बहुत दिनों तक याद रहती है। कहानी की भाषा ग्रामीण भाषा होती है। पात्रानुकूल होती है जो कृति को सफल बना देती है। जिससे भाषा का प्रवाह सरल स्वाभाविक लगता है।
प्रेमचन्द की कहानियों में विभिन्नता, विविध पात्रों का भारी जमाव आश्चर्यजनक रुप से मिलते हैं। विषय वस्तु में विविधता और नवीनता मिलती है। उदाहरण के तौर पर ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘दो बैलों की कथा’ में ऐसे ही पात्रों की विविधता नजर आती है। उनमें पात्रों की चरित्र-चित्रण की कुशलता है। कहानी पढ़ते-पढ़ते पात्र भी बहुत दिनों तक याद रहती है। कहानी की भाषा ग्रामीण भाषा होती है। पात्रानुकूल होती है जो कृति को सफल बना देती है। जिससे भाषा का प्रवाह सरल स्वाभाविक लगता है।
मुंशी प्रेमचंद की शैली में ओज और व्यंग्य की
प्रधानता होती है। उसमें अन्याय से घृणा रहती है। शायद ही इसलिए ऐसी उनकी शैली रही
होगी। ‘‘उनकी शैली की चित्रमयता, भाषा पर असाधारण अधिकार, चरित्र-चित्रण का कौशल
और हर जगह व्यंग्य और हास्य ढूँढ़ लेने की क्षमता उन्हें एक प्रभावशाली कलाकार बनाती है।
उसकी सहृदयता और मानव प्रेम उन्हें जनता का प्रिय कलाकर बनाते हैं।’’
मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास
हिन्दी साहित्य में उपन्यास को मुंशी का योगदान बहुमुखी है। प्रेमचन्द जी ने हिन्दी कथा साहित्य को मनोरंजन के स्तर से उठाकर जीवन के हर पहलू से जोड़कर उसमें वास्तविकता दर्शाने का काम किया है। चारों ओर फैले हुए सामाजिक और वैयक्तिक सामयिक समस्याओं, पराधीनता, जमींदारों, पूंजीपतियों और सरकारी कर्मचारियों द्वारा किसानों का शोषण, निर्धनता, अशिक्षा, अन्धविश्वास, दहेज प्रथा, बाल विवाह और समाज में नारी की स्थिति, वेश्याओं की जिन्दगी, वृद्ध विवाह, विधवा समस्या, सांप्रदायिक वैमनस्य, अस्पृश्यता मध्यमवर्ग की कुण्ठाएँ आदि ने उन्हें उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित किया था।- ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ सन् 1906 ई. में प्रकाशित है।
- ‘असरारे मआबिद’ उर्फ ‘देव स्थान रहस्य’। ये उपन्यास 8 अक्तूबर 1903 ई. से 1 फरवरी 1905 ई. तक बनारस के उर्दू साप्ताहिक ‘आवाज-ए-खल्फ’ में क्रमश: प्रकाशित हुआ।
- ‘प्रेमा’ उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ का हिन्दी रुपान्तर है।
- ‘किशना’ उपन्यास सन् 1907 ई. में बनारस मेडिकल हाल प्रेस से प्रकाशित है।
- ‘रूठी राणी’ उपन्यास अप्रेल 1907 ई. से अगस्त सन् 1907 ई. तक ‘जमाना’ पत्रिका में क्रमश: प्रकाशित हुआ।
- ‘जलवए ईसार’ सन् 1912 ई. में इण्डियन प्रेस इलाहाबाद से प्रकाशित है।
- ‘सेवा सदन’ उपन्यास का सन् 1919 ई. में प्रकाशन हुआ, जिस पर ‘बाजरे हुश्न’ हिन्दी फिल्म बनी है। यह उपन्यास पहले उर्दू में लिखा गया, परन्तु प्रकाशित हिन्दी में पहले हुआ।
- ‘प्रेमाश्रम’ सन् 1921 ई. में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास ‘गोशए आफियत’ नाम से पहले उर्दू में लेखन हुआ लेकिन इसकी छपाई पहले हिन्दी में हुई।
- ‘वरदान’ उपन्यास भी उर्दू के ‘जलवए इसार’ का हिन्दी रुपान्तर है जो सन् 1912 ई. में ग्रंथ भण्डार, बम्बई से प्रकाशित हुआ।
- ‘रंगभूमि’ उपन्यास का प्रकाशन सन् 1925 ई. में हुआ। यह उर्दू का उपन्यास ‘चौगाने हस्ती’ का रुपान्तर है लेकिन इसकी छपाई पहले हिन्दी में हुई और लेखन पहले उर्दू में हुआ।
- ‘कायाकल्प’ जो उर्दू में ‘पर्दए मजाज’ नाम से है। इसका प्रकाशन सन् 1926 ई. में हुआ।
- ‘अहंकार’ यह उपन्यास अनातोल फ्रांस के ‘थायस’ का हिन्दी रुपान्तर है जो सन् 1926 ई. में सरस्वती प्रेस से प्रकाशित हुआ।
- ‘निर्मला’ इस उपन्यास में सामाजिक समस्याओं पर प्रहार करते हुए नवम्बर 1925 ई. से नवम्बर 1926 ई. तक ‘चाँद’ में क्रमश: प्रकाशित हुआ।
- ‘प्रतिज्ञा’ जो उर्दू में ‘बेवा’ नाम से लिखा गया इसका प्रकाशन जनवरी 1927 ई. से नवम्बर 1929 ई. तक में क्रमश: प्रकाशित हुआ।
- ‘गबन’ सन् 1931 ई. में सरस्वती प्रेस से प्रकाशित।‘कर्मभूमि’ का प्रकाशन अगस्त 1932 ई. में हुआ जो उर्दू में ‘मैदान अलम’ नाम से था।
- ‘गोदान’ जून 1936 ई. में सरस्वती प्रेस से प्रकाशित।
- ‘मंगलसूत्र‘ उपन्यास प्रेमचन्द जी का अधूरा उपन्यास है। इस का प्रकाशन सन् 1948 ई. में हुआ जो विद्रोह का प्रतीक है। यह कृति मुंशी जी की अंतिम रचना है जो 70 पृष्ठों में लिखी हुई है।
मुंशी प्रेमचन्द के नाटक
मुंशी प्रेमचन्द की पहली कृति जो अप्रकाशित रही वह उनका नाटक ही हो सकता है। यह रचना खुद मुंशी जी के मामा जी की पिटाई से सम्बन्धित था। उसके मामा की पिटाई प्रेम प्रसंग के कारण की गई थी। इस घटना को प्रेमचन्द जी एक नाटक के तौर पर लिखा। इस प्रकार मुंशी जी को नाटक लिखने का शौक हुआ। लेकिन नाटक विधा प्रेमचन्द जी की कहानियों से कम ही है। मुंशी प्रेमचन्द के नाटक है -- ‘सग्राम’ यह पहला नाटक जनवरी सन् 1923 ई. में हिन्दी पुस्तक एजेन्सी से प्रकाशित हुआ था।
- कर्बला।
- प्रेम की वेदी।
मुंशी प्रेमचन्द के संपादन पत्र
प्रेमचन्द ने लेखन कार्य के अतिरिक्त अनेक पत्रों का भी संपादन किया। प्रेमचन्द इतने निडर थे कि अंग्रेजों की धाक-धमकियों के बावजूद भी प्रेमचन्द नाम से ही अपना साहित्य लिखते थे। श्री आनन्द कौशल्यायन को उन्होंने भारतीय परिषद के बारे में लिखा था- ‘क्या आप समझते हैं, अंग्रेजों की गुलामी से भारतीय परिषद मुक्त है, जब काँग्रेस की सारी लिखा-पढ़ी अंग्रेजी में होती है तो भारतीय परिषद तो उसी का बच्चा है। मुंशी प्रेमचन्द के संपादन पत्र है -- जमाना।
- मर्यादा।
- माधुरी।
- जागरण।
- हंस
मुंशी प्रेमचन्द के अनुवाद
मुंशी प्रेमचन्द ने कथा, उपन्यास और संपादन के साथ अनेक ग्रंथों का अनुवाद करके साहित्यिकता को साकार किया है। उन्होंने हिन्दी और अन्य दूसरी भाषाओं में लिखित रचनाओं का अनुवाद भी किया है।- अहंकार।
- हड़ताल।
- आजाद कथा।
- न्याय।
- चाँदी की डिबिया।
- सृष्टि का आरम्भ।
- पिता का पत्र पुत्री के नाम।
- सूरदास।
- शबेतार।
मुंशी प्रेमचन्द के बाल उपयोगी साहित्य
प्रेमचन्द जी ने लगभग सभी का साहित्य सृजन करके हिन्दी के भण्ड़ार को भरा है। सामाजिक, ऐतिहासिक और समसामयिक समस्याओं को, बच्चों हेतु भी अनेक कहानियों और दूसरी प्रकार की रचनाओं का सृर्जन किया।- महात्माशेखसादी, सन् 1981 ई. में प्रकाशित।
- मनमोहक, सन् 1924 में प्रकाशित।
- जंगल की कहानियाँ।
- कुत्ते की कहानी।
- रामचर्चा, सन् 1929 ई. में प्रकाशित।
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