रात्रि में ठण्डी हुई भूमि से जब आर्द्र वायु सम्पर्क में
आती है तो स्वयं भी क्राीतल होने लगती है। इससे आर्द्र वायु में भूमि के निकट
संलग्न की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। सर्दियों में जब रातें लम्बी होती है। तथा
तापमान तेजी से नीचे गिरते हैं तो वायु में उपस्थित जल वाष्प धुआँ या धूल के
कणों (नाभिक) के चारों ओर जल कण के रुप में एकत्रित होते जाते हैं। ये जल
कण पेड़ पौधों के पत्तों व घास पर ठहरने लगते है। ऐसा तभी होता है जब
तापमान और नीचे गिरते जाते है। यह ओस कहलाती है।
वेल्स 1818 के अनुसार
रात्रि में ठण्डे धरातल के सम्पर्क में आने वाली वायु की आर्द्रता के कण धरातल
पेड पाध्ै ाांे व अन्य वस्तुओं पर जल बिन्दुओ के रुप में बठै जाते है। जो ओस कहलाते
है। ओस के लिए निम्न परिस्थितीयाँ आवक्रयक है। स्वच्छ आकाश, शान्त व ठहरी
हुई वायु, वायुमण्डल में आर्द्रता की अधिकता, और लम्बी रातें। जिस तापमान पर
ओस का जमना प्रारम्भ होता है, उसे ओसांक कहते है।
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