राजपूत वंश के प्रमुख शासकों का वर्णन

राजपूत शब्द संस्कृत के ‘राजपुत्र’ का बिगड़ा हुआ स्वरूप है। प्राचीन काल में राजपुत्र शब्द का प्रयोग राजकुमारों तथा राजवंशों के लोगों के लिए होता था। प्रायः क्षत्रिय ही राजवंश के होते थे, इसलिए ‘राजपूत’ शब्द सामान्यतः क्षत्रियों के लिए प्रयुक्त होने लगा। जब मुसलमानों ने भारत में प्रवेश किया तब उन्हें राजपुत्र शब्द का उच्चारण करने में कठिनाई हुई, इसलिए वे राजपुत्र के स्थान पर राजपूत शब्द का प्रयोग करने लगे। 

राजपूत वंश के प्रमुख शासक

राजपूत वंश के प्रमुख शासकों का वर्णन इस प्रकार है- 

बप्पा रावल

यह राजपूत शासक अपने धर्म और संस्कृति की मजबूती और गौरव के लिए जाना जाता था। यह गहलोत राजवंश का आठवां शासक था। मेवाड़ राज्य की स्थापना उसी के द्वारा 734 ईस्वी में की गयी थी जोकि वर्तमान में राजस्थान है। आठवीं सदी में उसने अरब आक्रमणकारियों के खिलाफ युद्ध लड़ा था और उन्हें पराजित किया था।

राणा कुंभा

यह महाराणा कुम्भकर्ण के नाम से भी चर्चित था। वह सिसोदिया वंश से संबंधित था। उसके पिता का नाम राणा मोकल और माता का नाम सोभाग्या देवी था। उसे गुजरात और दिल्ली के शासकों के द्वारा हिन्दू-सुरत्न की उपाधि दी गयी थी।

पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान (1168 ईस्वी-1192 ईस्वी) चौहान वंश का प्रमुख शासक था। उसने 12वीं सदी के दौरान उत्तरी भारत के अधिकांश भागों पर अपना राज्य स्थापित किया था और शासन कार्य किया था। वह कथित तौर पर दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला दूसरा अंतिम हिंदू राजा था। जब वह 1179 ईस्वी में सिंहासन पर बैठा तब वह पूरी तरह से नाबालिग था।

शहरों के शहर दिल्ली में स्थित किला राय पिथौरा का नामकरण उसी के नाम पर किया गया था। वह वास्तव में एक बहादुर योद्धा था। उसने संयोगिता (कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी) के साथ विवाह किया था जैसा कि अनेक किताबों में पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता कथा का रोमांचक वर्णन किया गया है। इस कथा को भारत की सबसे रोमांचक कथाओं के रूप में वर्णित किया गया है।

राव मालदेव राठौर 

राजपूतांे के सबसे लोकप्रिय शासको में से एक, राव मालदेव राठौर वंश से संबंधित थे। शेरशाह सूरी के शासन के समय, मारवाड़ में राठौर एक प्रसिद्ध नाम था। राव मालदेव ने अपने क्षेत्र का विस्तार से दिल्ली से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी तक किया था। इसे संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है। वह मेवाड़ का शासक था। उसकी सत्ता का उत्थान दिल्ली साम्राज्य के पतन के पश्चात शुरू हुआ। उसने गुजरात और मालवा के मुस्लिम राजाओं के साथ भी युद्ध किया था। 

राणा सांगा और लोदी शासको के बीच संपन्न युद्ध अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उसे अपने राज्य मेवाड़ से बहुत प्यार था। उसने मेवाड़ को अत्यंत समृद्ध और संपन्न बनाया। साथ ही उत्कर्ष की चोटी तक पहुंचाया।

महाराणा प्रताप

राजपूत शासको में महाराणा प्रताप एक महत्वपपूर्ण और शक्तिशाली शासक थे। वे बहादुर और महान राजपूत राजाओं में से एक थे। अपने कार्यों के कारण ही वे अविस्मरणीय थे। महाराणा प्रताप ने अधिकांश राजपूत शासकों को  मुगल शासकों के  पंजों से मुक्त करवाया और अनेक क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र अमर सिंह ने भी मुगलों से अनेक युद्ध किए। अमर सिंह ने मुगलों के अनेक आक्रमणों का सामना किया और उनके विरुद्ध 17-18 युद्ध लड़े।

गुर्जर प्रतिहार

गुर्जरात्र (गुजरात) प्रदेश में निवास करने के कारण गुर्जर तथा 7 वीं से 11 वीं शताब्दी के मध्य विदेशी आक्रमणों से भारत की पश्चिमी सीमाओं की रक्षा करने के कारण प्रतिहार कहलाये। कर्पूरमंजरी तथा काव्य मीमासं ा के लेखक राजशेखर ने गुर्जर प्रतिहार वंश के बारे में जानकारी दी है राजपूताने में पश्चिमी भूभाग पर गुर्जर प्रतिहार राजवंशों का एकाधिकार स्थापित हुआ। सर्वप्रथम 8 वीं शताब्दी में गुजरात राज्य में इस राजवंश की स्थापना हुई। यह राजवंश भगवान श्री राम के भाई लक्ष्मण का वंशज होना स्वीकार करता था। अनेक इतिहासकारों ने इन्हें सूर्यवश्ं ाी होना माना।

ग्वालियर के शिलालेख में इस वंश के शासक वत्सराज को क्षत्रिय बताया गया है। ठीक इसी प्रकार राजशख्े ार ने गुर्जर प्रतिहार वंश के राजा महेंद्र पाल को रघु कुल बताया गया है।

अनेक इतिहासकारों ने गुर्जर प्रतिहार राजवंश के राजाओं को सर्वप्रथम मारवाड़ होना बताया। मारवाड़ के पश्चात उन्होंने उज्जैन तथा कन्नौज पर अपना एकाधिकार स्थापित किया। जोधपुर के शिलालेख से ज्ञात होता है कि छठी शताब्दी में इस वंश के राजाओं ने अपना राज्य स्थापित किया जिसे ‘गुर्जरत्रा’ कहा जाता था।

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